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धृतराष्ट्र चुनाव आयोग और उसकी ‘‘अनोखी ईवीएम’’

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इतिहास के एक पन्ने में दर्ज है एक छोटी-सी घटना. अंग्रेजी हुकूमत देश पर राज कर रही थी और असम में गवर्नर कार्यालय को घेरे हुई थी अपनी मांगों के समर्थन में आक्रोशित लोगों का विशाल हुजूम. हकलान अंग्रेज इस समस्या से निजात पाने का तरीका सोच ही रहे थे कि गवर्नर ने एक शानदार सुझाव दिया. उसने आदेश दिया कि ‘‘जाओ, और जाकर कहो कि पांच पढ़े-लिखे आदमी जो गवर्नर के साथ बात कर सके, गवर्नर से बातचीत के लिए चलें.’’ आम जनता की विशाल हुजूम जो अपनी मांगों के समर्थन में आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन कर रही थी, दांये-बांयें देखते हुए पलक झपकते गायब होने लगी और कुछ ही देर बाद वहां कोई नहीं था. सारे लोग वहां से पलायन कर चुके थे क्योंकि उन प्रदर्शनकारियों में ‘पढ़े-लिखे’ लोग एक भी न मिले या जो होंगे भी, वे साहस नहीं दिखा पाये. सचमुच उस गवर्नर की ‘तारीफ’ की जानी चाहिए कि वगैर एक भी गोली चलाये उसने अपनी चतुराई से न केवल आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन को खत्म ही कर दिया बल्कि आगे कई वर्षों तक के लिए प्रदर्शन को होने ही नहीं दिया. ठीक यही तरीका तथाकथित आजादी के 70 साल बाद आज चुनाव आयोग दुहरा रही है.

चुनाव आयोग की ‘‘अनोखी ईवीएम’’ मशीन जिसे दुनिया के तमाम विकसित देश कबाड़ में फेंक चुकी है. अब ईवीएम केवल उन्हें देशों में प्रयोग किया जाता है, जो अविकसित है या विकास के पायदान पर सबसे नीचे है – जैसे भारत, नाईजीरिया, वेनेजुएला, युक्रेन जैसे गरीब या विकासशील देश. वहीं भूटान, पाकिस्तान, कम्बोडिया आदि अन्य गरीब देशों में इसे लगाने की योजना चल रही है. लोकतंत्र के नाम पर भद्दे मजाक का प्रर्याय बन चुके इस ईवीएम को, चुनाव आयोग किसी भी हालत में छेड़छाड़ से अलहदा मानती है. विश्व भर में नकारे जा चुके इस ईवीएम को अगर चुनाव आयोग धार्मिक गंथों की ही तरह ‘पवित्र’ मानती है तो इसके पीछे भी कुछ कारण होंगे. वह कारण बिल्कुल दिन की तरह साफ है कि ईवीएम मशीन के साथ छेड़छाड़ कर बड़ी ही आसानी से काॅरपोरेट घरानों और साम्राज्यवादी ताकतों के हाथों में खेलने वाली ऐसी मनचाही मुखौटा सरकार – एजेंट – या अन्य ऐसी ही निकायें बनाई जा सकती है, जो काॅरपोरेट घरानों और साम्राज्यवादी ताकतों के हित में लोकतंत्र और जनादेश के नाम पर करोड़ों गरीब, पिछड़े, आदिवासियों और विशाल मध्यमवर्ग का शोषण-दोहन कर काॅरपोरेट घरानों और साम्राज्यवादी ताकतों के खजाने को भर सके. काॅरपोरेट घरानों और साम्राज्यवादी ताकतों के हृदयविदारक शोषण-दोहन और जुल्म के खिलाफ उठी हर आवाज को अपने मुखौटा सरकार या एजेंट के माध्यम से खून में डुबोया जा सके.

जिस प्रकार अंग्रेज गवर्नर ने ‘पांच पढ़े-लिखे लोगों को बुलाने’ के नाम पर पूरी विरोध प्रदर्शन को ही खत्म कर दिया था और खुद की स्वीकार्यता को आगे तक के लिए सुनिश्चत कर लिया था, उसी तर्ज पर आज धृतराष्ट्र बने चुनाव आयोग ने ईवीएम विरोधी तमाम विपक्षी पार्टियों को ईवीएम हैक करने का चैलेंज देकर साबित कर दिया है कि वह उक्त अंग्रेज गवर्नर से कम कतई नहीं है. चुनाव आयोग जानता है कि ‘‘अधिकांश चुनावी पार्टियां तकनीक के मामले में निरक्षर है, वह तकनीक के पेचीदे नियमों से अच्छी तरह वाकिफ नहीं है और न ही भरोसे के लायक तकनीकि विशेषज्ञों को बुला ही सकती है.’’ ऐसे में इससे पहले भी जब ईवीएम पर सवाल उठे थे तब भी चुनाव आयोग ने यही तरीका अपनाकर कि ‘‘कोई भी पार्टी इसे हैक कर दिखा दे’’, कहकर विरोध के स्वर को दबाने का दुश्प्रयास किया था और आज भी वही प्रयास कर रही है.
हलांकि पहले भी 2009 ई. में आंध्र प्रदेश के एक विशेषज्ञ इंजीनियर श्री हरि प्रसाद ने अपने दो अमेरिकी सहयोगियों के साथ चुनाव के आयोग के सामने ही चुनाव आयोग के ही द्वारा दी गई ईवीएम मशीन को हैक कर दिखा दिया था. परन्तु चुनाव आयोग ने बजाय ईवीएम को सवाल के कठघड़े में खड़े करने के, हैक करने वाले इंजीनियर श्री हरि प्रसाद को ही गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया और उनके दोनों अमेरिकी सहयोगियों को आइंदा के लिए भारत आने पर रोक लगा दिया. मतलब यह हुआ कि आप अगर ईवीएम मशीन को हैक नहीं कर पाये तो ईवीएम को स्वीकार करो अथवा अगर हैक कर लिया तो जेल में बंद कर दिये जाने का दंश झेलो. यही कहना है चुनाव आयोग का.

पिछले चुनाव दिनों चुनाव के पूर्वाभ्यास के दौरान भिंड में ईवीएम के किसी भी बटन को दबाने पर भाजपा की ही पर्ची निकलने के बाद चुनाव आयोग के उक्त महिला पदाधिकारी ने उल्टे खबर कवर कर रहे पत्रकारों को ही धमकी देते हुए कह दिया था कि ‘‘अगर यह खबर अखबार में छपी तो थाने में बैठा देंगे’’. यह लोकतंत्र के नाम पर चुनाव आयोग की एक गंभीर धमकी है. इससे भी आगे बढ़कर निर्लज्ज चुनाव आयोग ने बाद में इस पूरी घटना को ही फर्जी बता दिया. यह तथ्य इस बात को भी दर्शाता है कि इस तथाकथित लोकतंत्र में चुनाव के नाम पर ईवीएम जैसी फर्जी मशीन को थोपने के पीछे चुनाव आयोग इस कदर बेताब है कि एक सच्ची घटना को भी पूरी निर्लज्जता के साथ निगल जाता है और सफेद झूठ बोल जाता है.

चुनाव आयोग भली भांति जानता है कि ईवीएम मशीन के साथ न केवल छेड़छाड़ ही की जा सकती है, वरन् इसके सहारे मनचाहे नकली सरकार भी बनायी जा सकती है. चुनाव के इस पूरी प्रक्रिया में जनता के द्वारा वोट देने की बात महज दिखाबा से ज्यादा और कोई महत्व नहीं रखता. ईवीएम के जरिये चुनाव परिणाम को बैलेट पेपर की तुलना में सहज ही मनचाहे परिणाम लाये जा सकते हैं. वहीं बैलेट पेपर से चुनाव कराना ईवीएम की तुलना में सस्ता और भरोसेमंद भी होता है. ईवीएम को हर दस साल में बदलना होता है, जो बड़े पैमाने पर ई-कचरा को भी पैदा करता है जबकि बैलेट पेपर के साथ ऐसा नहीं होता. ईवीएम के साथ अगर कागज की पर्ची लगायी जायें तो इसका खर्च और भी ज्यादा बढ़ जाता है. इसलिए ये कहना कि कागज का वोट मंहगा होता है, सरासर सफेद झूठ है. इसी तरह यह भी कहना कि बैलेट पेपर में कागज बहुत लगता है, ये भी झूठ है क्योंकि 5 साल में बैलेट में जितना कागज लगता है उतना हम एक दिन में अखबार छापने में खर्च कर देते हैं. अगर कागज को बचाना ही है तो कहीं और बचाया जा सकता है. कागज बचाने के शर्त पर लोकतंत्र की हत्या की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती है.

इस सब के बावजूद अगर सचमुच चुनाव आयोग ईवीएम मशीन के साथ छेड़छाड़ के प्रति जरा भी गंभीर होता और उसे इस देश की जनता और लोकतंत्र पर जरा भी भरोसा होता तो वह स्वयं विश्व स्तर पर विशेषज्ञों को बुलाकर ईवीएम की जांच करवाता और इसकी गंभीर समीक्षा कर यथोचित कदम उठाता, न कि सम्बन्धित पार्टी संगठन को ईवीएम हैक करने की चुनौती देता. उसने ईवीएम पर सवाल उठाने वाले दलों को ही इसकी जांच करने की चुनौती देकर न केवल लोकतंत्र और चुनाव को ही मजाक बना डाला है वरन् देश की जनता और लोकतंत्र पर से खुद के भरोसे को भी खत्म कर लिया है.

संतोष की बात केवल इतना ही है कि इस बार एक ऐसी पार्टी ने ईवीएम के इस सच्चाई पर से पर्दा उठाया है जिसके पास न केवल विश्वसनीय इंजीनियरों की एक टोली ही है, वरन् वह अविश्वसनीय चुनाव आयोग के षड्यंत्र को समझते हुए जेल तक जाने का जज्बा रखता है. यही चुनाव आयोग की मुश्किलें भी है और उसकी सीमा भी.

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One Comment

  1. cours de theatre

    September 30, 2017 at 9:40 am

    I really liked your post.Really looking forward to read more. Keep writing.

    Reply

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