हिन्दु यानी ब्राह्मण राज्य बनाने के लिए भाजपा (आरएसएस) समूचे देश में नफरत का बीज बो दिया है. हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ, जहां मुसलमान नहीं है वहां सिख के खिलाफ, जहां सिख नहीं है वहां इसाईयों के खिलाफ, जहां इसाई भी नहीं है वहां आदिवासियों के खिलाफ, जहां आदिवासी भी नहीं है वहां शुद्रों के खिलाफ, जहां शुद्र नहीं है वहां राजपूतों, बनियों के खिलाफ नफरत का शानदार खेती किया है. इन सबमें जो सामान्य है वह है सभी जगह औरतों के खिलाफ नफरत.
भाजपा (आरएसएस) ने नफरत के लिए जिन तरीकों का इस्तेमाल किया है, वह भी बेहद सामान्य और छोटी-छोटी चीजें हैं, जिसे समझना बेहद जरूरी है. मसलन, जिस मजदूर की मजदूरी 100 रूपये है, उसको 150 रूपये पाने वाले मजदूरों खिलाफ भड़का दिया – ‘देखा, उसका मजदूरी तुमसे ज्यादा है. मारो जाकर.’ जाहिर सी बात है 100 रूपये कमाने वाले मजदूरों की संख्या ज्यादा होगी, जिसे उस 150 रूपये पाने वाले छोटे समूह के मजदूरों के खिलाफ खड़ा कर दिया.
अनपढ़ों को पढ़े-लिखे के खिलाफ भड़का दिया – ‘देखा, वह ढ़ेर पढ़ लिया है और वह तुम पर हंसता है, मारो जाकर.’ जाहिर सी बात है अनपढ़ों की संख्या ज्यादा है तो उसने अनपढ़ों को पढ़े-लिखे के खिलाफ खड़ा कर दिया और पढ़ने लिखने को अपराध बना दिया. बेरोजगारों को रोजगार वालों के खिलाफ भड़का दिया – ‘देखा, उसको सरकारी नौकरी मिल गया है. वहां वह कुछ भी नहीं करता है खाली बैठकर पैसा कमाता है. मारो उसको.’ जाहिर है बेरोजगारों की तादाद ज्यादा है, तो उसे रोजगार वालों के खिलाफ खड़ा कर अब रोजगार वालों को पहले पेंशन खत्म किया और अब नौकरी. इसे देखकर बेरोजगारों में खुशी की लहर दौड़ जाती है.
इसी तरह भाजपा (आरएसएस) ने समाज के तमाम अशिक्षित, अर्ध-शिक्षित, बेरोजगारों का विशाल फौज खड़ा कर लिया और उन तमाम लोगों को निशाना बनाने लगा, जो समाज में किसी भी हद तक भाजपा (आरएसएस) के समर्थन में नहीं हैं या विरोध में हैं. आज भाजपा (आरएसएस) के खेमों में ऐसे ही अनपढ़ों, बेरोजगारों को शामिल कर लिया है और उसके माध्यम से देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया है और अब इन अनपढ़ों और बेरोजगारों के हाथों में हथियार थमाकर हत्या, बलात्कार जैसे तमाम कुकृत्यों को अंजाम दे रहा है.
इसमें यह जानना बेहद महत्वपूर्ण है कि ऐसे लोग जिसे भाजपा ने हिन्दुत्व यानी ब्राह्मणों के राज्य के लिए भड़काया है, वे अधिकांश शुद्र हैं, जो अपने ही पांव में गुलामी की जंजीरों को पहनने के लिए मर या मार रहा है. तत्कालिक तौर पर तो अभी उसके समर्थन में राजसत्ता के तमाम संवैधानिक संस्थानों – पुलिस और न्यायपालिका खासकर सुप्रीम कोर्ट – को खड़ा कर दिया है, लेकिन आगे अगर प्रतिरोध की शक्तियां खत्म हो गई और यह गिरोह अनुपयोगी साबित हो गये तब एक-एक को चुन-चुनकर खत्म किया जायेगा.
ऐसे ही अनपढ़ों, बेरोजगारों को हिन्दु राष्ट्र के नाम पर एकजुट कर अब बकायदा अपना हथियारबंद गिरोह बनाने के की कोशिश में जा जुटा है, जैसा कभी हिटलर ने एसएस जैसे आदमखोर निजी सैन्य गिरोह का निर्माण कर किया था. इसकी तैयारी के लिए इन बेलगाम लोगों को कभी प्रशासनिक अधिकारी बनाकर देश के महत्वपूर्ण संस्थानों में बगैर प्रतियोगिता परीक्षा पास किये भर्ती कर लिया है तो वहीं इन अनपढ़ों-बेरोजगारों को सैन्य ट्रेनिंग देने के लिए सेना में महज तीन साल के कन्ट्रैक्ट पर बहाल करने का फरमान जारी कर दिया है ताकि जब ये गिरोह सेना में सैन्य प्रशिक्षण लेकर बाहर आयेगा तो एक मजबूत प्रशिक्षित निजी सैन्य गिरोह का निर्माण किया जा सकेगा, जो बगैर किसी हिचक के आदेशों पर किसी भी विरोधियों की हत्या करेगा और ब्राह्मणों के स्वर्णिम युग के निर्माण में अपना और अपने ही जैसे विरोधियों का खून बहायेगा.
केन्द्र की मोदी सरकार हिटलर की ही भांति ‘जर्मन नस्ल ही श्रेष्ठ नस्ल है’ के तर्ज पर ‘ब्राह्मण ही श्रेष्ठ है’ के नारों के साथ एक नई जनता को चुनने के लिए कृतसंकल्पित है. इसमें एक जो महत्वपूर्ण तथ्य समझ लेना चाहिए कि भाजपा (आरएसएस) को मुसलमानों से कोई ज्यादा परेशानी नहीं है. आप यह साफ तौर पर देखेंगे कि ऐसे तमाम भाजपा (आरएसएस) के नेताओं ने अपनी बेटियों की शादियां या तो मुसलमानों के यहां किया है अथवा मुसलमानों की बेटियों अपने यहां लाया है. यानी, भाजपा (आरएसएस) और मुसलमानों में बेटी-रोटी का संबंध है. असली परेशानी शुद्रों से है, जो ब्राह्मणों का गुलाम या दास था, जो आज भाजपा (आरएसएस) का रिजर्व फौज बन गया है.
ब्राह्मणों के जातिवादी आतंक से पीड़ित होकर बड़े पैमाने पर ब्राह्मणों का गुलाम या दास शुद्रों ने अपना धर्म परिवर्तन कर मुसलमान धर्म अपना लिया. जिस कारण ब्राह्मणों का गुलाम भाग गया. ब्राह्मणों को असली पीड़ा इसी बात से है. यानी भाजपा (आरएसएस) को असली पीड़ा इसी बात से है. यही कारण है कि ब्राह्मणों के गिरोह ने शुद्रों को सबक सिखाने के लिए पहले भागे हुए अपने गुलाम मुसलमानों को मार रहा है, जब मुसलमान दुरूस्त हो जायेगा तब शुद्रों को सबक सिखायेगा और असली मनुस्मृति के आधार पर ब्राह्मणों के स्वर्ण युग का निर्माण करेगा और यह शुद्र अपने ही हाथों अपने ही पैरों में गुलामी का जंजीर पहनेगा. यही भाजपा (आरएसएस) का असली मकसद है.
जिस 1857 को ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ कहा जाता रहा है और आरएसएस उसका महिमामंडन करता है, उसके उस घोषणापत्र, जिसे बेगम हजरतमहल ने शहजादा बिरजिस कद्र की ताजपोशी के समय 5 जुलाई 1857 को लखनऊ में जारी किया था, का एक अंश निम्नवत है, इस प्रकार उल्लेखित है –
हिन्दुस्तानियों की हुकूमत में कभी कोई मज़हब में नहीं दखल देता था; हर आदमी अपने दीन का कायल था और उसकी इज्ज़त उसके मुताबिक थी.
अशराफ चाहे वे मुसलमान कौम के सैय्यद, शेख, मुग़ल या पठान खानदान के हों या हिंदुओं में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और कायस्थ हों, को उनकी हैसियत के अनुसार इज्ज़त और ओहदा दिया जाता था.
कोई नीच, पाजी, चूहड़, चमार, धानुक या पासी उनसे बराबरी का दावा नहीं कर सकता था लेकिन अंगरेज़ चाहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान बेदीन होकर ईसाई बन जाएं. वे ऊंची जमात के लोगों की इज्ज़त को नीची जमात के मेहतरों और चमारों के बराबर ले आये हैं.
असलियत यह है कि अंगरेज़ नीची जातियों को ऊंचे दर्जे के मुकाबले ज्यादा तरजीह देते हैं. एक मेहतर और चमार की शिकायत पर वे नवाब और राजा को पकड़कर उसकी बेहुरमती करते हैं..’
(1857 का मिथक और विरासत-एक पुनर्पाठ’ शीर्षक अपने उस लेख से जो ‘तद्भव’-15 में प्रकाशित हुआ था और अब ‘विचारों का जनतंत्र – सं. अखिलेश’ पुस्तक में शामिल है.)
इसमें महत्वपूर्ण तथ्य यह रेखांकित करने की जरूरत है कि भारत के इतिहास में (बौद्ध काल के बाद) यह पहली बार था जब शुद्रों को अंग्रेजों ने मानव होने का दर्जा दिया था. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1857 के विद्रोह का मुख्य कारण जागीरदारों की जागीर छीनने की लड़ाई से भी महत्वपूर्ण यह कारण था कि अंग्रेजों ने शुद्रों को बराबर का अधिकार दिया था. भीमा कोरेगांव का प्रतीक स्मारक इसी का प्रतीक है, जो आज बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, समाज सेवकों को जेलों में बंद कर उनकी हत्या करने के काम आ रहा है. फादर स्टेन स्वामी की हत्या इसी की एक कड़ी है.
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