जनवरी, 2018 को त्रिपुरा के एक चुनावी रैली को सम्बोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था, ‘जितना ज्यादा हिंसा का कीचड़ फैलेगा, उतना ही बेहतर कमल खिलेगा.’ स्पष्ट है कि हिंसा के कीचड़ पर ही भाजपा-आरएसएस का अस्तित्व टिका है. जितनी ज्यादा हिंसा भड़केगी उतना ही ज्यादा भाजपा-आरएसएस को फायदा होगा. गौरतलब हो कि उस वक्त अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष थे परन्तु हिंसा के जबरदस्त पैरोकार थे.
2019 की लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने साफ तौर पर देश को आगाह करते हुए कहा था कि ‘अगर भाजपा चुनाव जितती है तो अमित शाह देश के गृहमंत्री बनेंगे और देश इसका परिणाम भुगतेगा.’ भविष्य के बारे में इतना सटीक विश्लेषण शायद ही किसी और ने किया था. आज देश में हू-ब-हू वही हो रहा है.
मोदी-शाह की आपराधिक जोड़ी ने दूसरी बार देश की सत्ता सम्भालते ही सबसे पहले अमित शाह को देश का गृहमंत्री बना दिया. जिस व्यक्ति को देश की अदालत ने समाज में रहने लायक नहीं माना था, आज वह देश का गृहमंत्री बन गया है और देश को हिंसा और आग के हवाले कर दिया है.
देश के गृहमंत्री का पद सम्भालते ही इस व्यक्ति अमित शाह ने कश्मीर को आग के हवाले कर दिया और वहां के नागरिकों को सदा-सदा के लिए देश का दुश्मन बना लिया. वहां के नागरिकों को आतंकवादी करार देकर उसके तमाम मूलभूत अधिकार छीन लिये और बकायदा फौजी शासन के हवाले कश्मीर को धकेल दिया. मोदी-शाह की जोड़ी को उम्मीद था कि इससे देशभर में हिंसा फैलेगी, परन्तु, उसकी नापाक मंशा पूरी नहीं हुई.
इसके तुरन्त बाद ही राम मंदिर जैसे मामले में सुप्रीम कोर्ट को सामने रख कर बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर वहां राम मंदिर बनाने का फैसला करा दिया गया. मोदी-शाह की जोड़ी को इससे भी उम्मीद थी कि देश में जबरदस्त हिंसा भड़केगी. परन्तु उसकी यह मंशा भी अधूरी रह गई और हास्यास्पद तरीके से देश को अलर्ट पर रखने की कोशिश भी महज मसखरापन ही साबित हुआ और खुद सुप्रीम कोर्ट भी मजाक की पात्र बन गई.
इसके आगे बढ़़कर मोदी-शाह की इस आपराधिक जोड़ी ने असम में एनआरसी लागू किया जो अपने ही देश के 19 लाख नागरिकों को बेवतन करने का कारनामा कर खुद ही हास्यास्पद हो गया. इस फर्जी एनआरएसी को एक बार फिर से लागू करने की कोशिश के रूप में सीएबी को देश की सांसद से पारित करा लिया और देश भर में एनआरसी लागू करने की कोशिश कर रहा है. इसके विरोध में देश की जनता घरों से निकलकर सड़क पर निकल आयी.
परन्तु, एक बार फिर मोदी-शाह की आपराधिक जोड़ी यह देखकर सन्न रह गई कि देश में कोई हिंसा नहीं भड़क रही है, उल्टे लाखों की तादाद में देशवासी सड़कों पर उतर आई है. हिन्दु-मुसलमानों ने एक बार फिर अपनी अटूट एकजुटता का परिचय दिया और शांतिपूर्ण तरीके से सड़कों पर उतर आई.
इन विशाल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के कारण देश को खून की नदियों में डूबों देने की साजिश रचने वाली मोदी-शाह की नाकाम जोड़ी ने नया पैतरा अपनाया और आरएसएस-भाजपा के गुण्डों को भीड़ में भेज कर आगजनी करवाने लगा. पुलिस के बीच में अपने गुण्डों को भेजकर अथवा पुलिस को ही आदेश देकर देशभर में हिंसा और आगजनी करना शुरू कर दिया. इस बात को पूरी तरीके से और दावे के साथ कहा जा सकता है कि देश में जहां कहीं भी हिंसा और आगजनी की बारदातें हुई है, उसमें तमाम में संघी गुण्डे और पुलिस की मिलीभगत से हुई है, या सीधे तौर पर पुलिस ने हिंसा किया है. पुलिस ने आगजनी की है. दिल्ली की सड़कों पर पुलिस द्वारा एक बस को आग लगाने की कोशिश का विडियों चारों तरफ वायरल हो चुका है. यहां तक कि एबीवीपी के एक गुण्डे को बकायदा पुलिस के साथ मिलकर छात्रों पर लाठी बरसाते तस्वीर देखा जा सकता है.
मोदी-शाह की यह जोड़ी मनुस्मृति जैसे घृणित ग्रंथों को देश की जनता के ऊपर थोपने की गहरी साजिश तब तक सफल नहीं हो सकती जबतक देश को खून की नदी में न डुबोया जाये क्योंकि समाज कभी भी पीछे की ओर की नहीं जाता. वक्त का पहिया कभी भी पीछे नहीं जाता और वक्त के इस पहिया को पीछे की ओर ले जाने के लिए यह जरूरी है कि खून की नदियां बहायी जाये. इसके लिए मोदी-शाह की यह आपराधिक जोड़ी पूरी ताकत के साथ जुट गई है. देश में एक बार फिर दास-मालिक समाजव्यवस्था को लागू करने की कोशिश की जा रही है, जिसका आधार ग्रंथ मनुस्मृति है.
मनुस्मृति साफ तौर पर कहता है कि ब्राह्मण ही सर्वश्रेष्ठ है औैर सारी दुनिया केवल ब्राह्मणों के लिए ही है. शुद्र, ब्राह्मण की सेवा के लिए है और उसे पढ़ने-लिखने का कोई अधिकार नहीं है. इसी कारण मोदी-शाह की जोड़ी संविधान द्वारा दी जा रही आरक्षण को खत्म करने पर तुली हुई है ताकि कोई शुद्र (दलित, पिछड़ा, अछूत), महिला, अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश न मिल सके. हर साल शिक्षा पर खासकर उच्च शिक्षा पर बजट घटाया जा रहा है, जिस कारण शिक्षण संस्थान या तो बर्बाद हो रहे हैं अथवा उसकी फीसें इतनी ज्यादा कर दी गई है कि इन तबकों के लोग शिक्षा ही हासिल न कर सके. ठीक उसी तरह स्वास्थ्य का भी बजट कम किया जा रहा है ताकि इन तबकों का स्वास्थ्य भी ठीक न रह सके.
विज्ञान की न्यूनतम समझदारी से भी परहेज रखने वाला यह आपराधिक जोड़ी वक्त का पहिया पीछे की ओर घुमाने की कोशिश कर रहा है. शायद इसे पता नहीं है कि विज्ञान समस्त गतिविधियों को आधार है, और बीत चुका वक्त का पहिया किसी भी सूरत में पीछे की ओर नहीं जा सकता, चाहे इसके लिए देश को खून में ही क्यों न डुबा दिया जाये.
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