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देश आर्थिक आपातकाल के बेहद करीब

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देश आर्थिक आपातकाल के बेहद करीब

प्रधानमंत्री मोदी ने आज की सर्वदलीय बैठक के बाद इस बात के साफ संकेत दिए हैं कि लॉकडाउन आगे भी जारी रहेगा. कब तक ? स्पष्ट नहीं कहा जा सकता, पर अप्रैल पूरा लॉकडाउन के हवाले हो सकता है.

इस बीच CII और ASSOCHEM ने मोदी सरकार से 200-300 अरब डॉलर का प्रोत्साहन मांगा है. दोनों का कहना है कि अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए इतना तो करना ही होगा. लॉक डाउन से मोदी सरकार खुद भी चिंतित है. फैक्टरियां बंद पड़ी हैं. दफ़्तर बंद हैं. काम पूरा ठप है.

सरकार के पास इस तिमाही यानी अप्रैल-जून का खर्च चलाने की दिक्कत है. वित्त मंत्रालय ने सरकारी विभागों में 15-20% कटौती के आदेश दे दिए हैं. बिना काम के घर बैठे अर्थव्यवस्था नहीं चलती. मोदी सरकार अभी भी कोरोना के खतरे को ठीक से भांप नहीं पाई है.

मोदीजी ने 24 मार्च को बड़े जोर-शोर से राज्यों के साथ बिना परामर्श किए पूरे देश को 21 दिन के लॉकडाउन में धकेल तो दिया, पर अब सोच रहे होंगे कि इससे देश को बाहर कैसे निकालें इसलिए, क्योंकि चक्रव्यूह में घुसने के बाद से ही कोरोना वायरस लगातार अपना शिकंजा कसता चला जा रहा है.

दिक्कत यह है कि अगर लॉकडाउन आगे बढ़ाया तो मोदी सरकार को खजाने में से और ज्यादा रकम स्टिम्युलस पैकेज के रूप में देनी होगी. अभी सरकार ने जीडीपी का केवल 0.8% ही राहत के रूप में दिया है, जबकि कोरोना से प्रभावित बड़े देश 7-15% तक खर्च कर चुके हैं.

मोदी सरकार ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि केंद्र और राज्यों के राजस्व संकलन में 60-70% तक गिरावट आई है. पेट्रोल-डीजल की बिक्री 90% तक गिरी है. शराब और पेट्रोल-डीजल केवल एमपी ही नहीं, दिल्ली की भी कमाई का प्रमुख स्रोत है.

तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के पास अगले महीने अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लाले पड़े हैं. कुछ राज्यों ने किस्तों में तनख्वाह बांटनी शुरू कर दी है. यह देश में आर्थिक आपातकाल के बेहद करीब की स्थिति है.

तमिलनाडु ने राज्यों पर बाजार से कर्ज की सीमा को 33% बढ़ाने की छूट मांगी है. ऐसा करने पर राज्य के जीडीपी का 3% कर्ज की भेंट चढ़ जाएगा. यह किसी भी राज्य के कर्ज के भंवर में डूबने की जोखिमपूर्ण स्थिति है. मोदी को लिखे पत्र में कई राज्यों ने कोविड फंड बनाने का सुझाव दिया है. इसके लिए 1 लाख करोड़ मांगे जा रहे हैं.

सरकार पर सबसे ज्यादा दबाव कंस्ट्रक्शन सेक्टर का है. जून से देश में बारिश शुरू हो जाती है. अगर लॉकडाउन बढ़ता है तो फिलहाल 20% की क्षमता पर काम कर रहे इस क्षेत्र में मजदूरों का अभाव प्रोजेक्ट्स को साल भर तक के लिए रोक देगा. यह खरबों का नुकसान है.

लॉकडाउन ने बेतहाशा बेरोजगारी बढ़ाई है. CMIE का 23% वाला आंकड़ा केवल ट्रेलर है. इसमें पलायन कर चुके प्रवासी मजदूरों की संख्या को नहीं जोड़ा गया है. इन्हें जोड़ने पर करीब 50 करोड़ बेरोजगारों की अभूतपूर्व फौज खड़ी होने की आशंका है.

लॉकडाउन आगे बढ़ेगा तो भूख से कमजोर लोगों को कोरोना या फिर कोई और बीमारी आराम से निगल लेगी. यह मैं नहीं, ICMR की फरवरी की स्टडी कहती है. शायद मोदीजी के कार्यकाल की यह सबसे भीषण अग्निपरीक्षा है.

वहीं, डॉलर के मुकाबले रुपया ऐतिहासिक रूप से गिरकर 76.33 पर आ गया. ये सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की उम्र से भी नीचे गिर चुका है. सीएम मोदी ने तब के पीएम मनमोहन सिंह के बारे में यही कहा था. RBI ने मौद्रिक नीति की रिपोर्ट जारी करते हुए रुपये के और गिरकर 77 तक पहुंचने की आशंका जताई है.

RBI ने लोगों की घटती खपत पर चिंता जताई है. कच्चे तेल के दाम में गिरावट और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें मुद्रास्फीति पर संकट खड़ा कर रही हैं. मोदी पिछले साल ही 5 ट्रिलियन ईकोनोमी का जुमला फेंक गए थे. RBI ने एक साल में इसकी हवा निकालते हुए कह दिया है कि खबरदार जो इस साल किसी ने जीडीपी की बात की तो.

RBI शर्मसार है. उसमें कुछ पढ़े-लिखे लोग हैं लेकिन मोदी सरकार मस्त है. कोरोना के नाम पर जमात की फुटबॉल खेली जा रही है. सरकार उछालती है, भांड मीडिया शाम को जनता की तरफ उछाल देती है.

कोरोना संक्रमण का रुझान अगर अमेरिका की तरह है तो समझें अभी फ़िल्म शुरू हुई है बाकी की फ़िल्म बेहद डरावनी होगी पर ब्लूमबर्ग जॉन होपकिन्स स्कूल का ताजा रिसर्च पढ़ते ही उम्मीद बंध जाती है.

यह रिसर्च कहती है कि भारतीयों की इम्युनिटी इतनी ज्यादा है कि कोरोना का असर नहीं पड़ने वाला. इधर कुआं, उधर खाई. हम सब बीच में फंसे हैं, शायद इम्युनिटी के सहारे. भारत में हर सामान्य, ग़रीब इंसान इम्युनिटी और BCG जैसे टीकों के सहारे ही तो ज़िंदा है !

कोई बात नहीं लेकिन अब सरकार को पिछली हड़बड़ियों से सबक लेकर राशन के सप्लाई चेन को दुरुस्त करना चाहिए. रोटी-भात, दाल-सब्जी भी सभी को चाहिए. कोरोना से लड़ने के लिए ये भी जरूरी है.

सप्लाई चेन तभी दुरुस्त होगी, जब आवश्यक वस्तुओं के ट्रक बेरोकटोक लगातार आ-जा सकें. बिना इस प्रबंध के, भूखा समाज लूट मचा सकता है, फिर सामाजिक दूरी की सभी अवधारणाएं ध्वस्त हो जाएंगी.

– सौमित्र राय

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