आपका दिल्ली जल रहा है. जाफराबाद-मौजपुर सड़क पर राष्ट्रवादी गुर्गे आतंक मचा रहे हैं. तस्वीर में दिखने वाले इस गुंडे ने लगातार 8 गोलियां दागी हैं. खबर है मरने वालों में एक कांस्टेबल है, एक डीसीपी गंभीर रूप से घायल है. शाम होते-होते कितने मरने वालों की खबर आनी है मालूम नहीं. मोदी मीडिया आपको इसे दो गुटों की झड़प बताएगा. क्या आपको भी सच में लगता है ये दो गुटों की झड़प है ?
आम जनता अपनी मांगों को लेकर सड़क पर है, उसकी मांग सरकार से है, प्रधानमंत्री है. ये दूसरा गुट हर बार कहां से आ जाता है ? आरएसएस के लोग हर जगह सार्वभौमिक दूसरा गुट बन चुके हैं. आप यूनिवर्सिटी में कोई मांग करते हैं, या धरना करते हैं तो एबीवीपी के लठैत धरना स्थलों पर पहुंच जाते हैं. गाली-गलौज करके छात्रों के साथ मारपीट करते हैं. खबर आती है दो गुटों में हुई झड़प. सरकार बनाम छात्र की लड़ाई, दो गुटों की लड़ाई हो जाती है. सरकार से ध्यान हटकर छात्र बनाम छात्र दिखाया जाने लगता है. यही पैटर्न पूरे देश में दोहराया जा रहा है.
आरएसएस और एबीवीपी के गुंडे हर जगह छद्म गुट बन चुके हैं. ये गुंडे सरकार के सुरक्षा कवच का काम कर रहे हैं. इससे पहले भी सरकारें थी, इससे पहले भी संगठन थे. इससे पहले भी लोग अपनी मांगों को लेकर सड़क पर आते थे लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ था कि कांग्रेस के झंडा लेकर निकली उग्र भीड़ प्रदर्शनकारियों पर टूट पड़ती हो. आपने ऐसा कभी देखा था ?
अलीगढ़ में देख रहा हूं आर्मी के जवान अपने ही देश के नागरिकों पर बंदूक चला रहे हैं. ये ऐसा पहला और अंतिम दृश्य नहीं है. पुलिस भी कितनी ही बार लाइब्रेरियों से लेकर निहत्थी भीड़ पर आंसू गैस से लेकर पैलेट गन चला चुकी है, ऐसा करते वक्त सेना के हाथ तक नहीं कांपते हैं. इसे समझने के लिए रक्षा विज्ञान के बड़े बड़े आर्टिकल नहीं पढ़ने. न ही इस पर पीएचडी करनी है.
इस देश में जिस तरह पुलिस और सेना बलों का ऊपरी स्ट्रक्चर है, उसके ऊपरी हिस्से पर दो चार अभिजातीय जातियों को ही कब्जा है. यहां लिखते समय मैं उनके नाम की जगह कथित जातियां नहीं लिखूंगा. मुझे भय नहीं है, न सेना के ऊपर बोलने में, न ऊंची जातियों पर लिखने में. ये दो चार जातियां जाट, राजपूत, गुर्जर और ब्राह्मण भर हैं. इनके अलावा यादवों और मीणाओं की भी पर्याप्त मात्रा में संख्या पहुंच चुकी है लेकिन सेना और पुलिस बल में दलितों और मुसलमानों का हिस्सा लगभग नगण्य है. यही कारण है कि मुसलमानों और दलितों की भीड़ पर बंदूक चलाने में सेना के जवानों के हाथ नहीं कांपते.
इन गिनी-चुनी जातियों के ही अधिकारी सेना में पहुंचते आ रहे हैं. यही जनरल बनते हैं, यही लेफ्टिनेंट और कमांडेंट बनते हैं, यही लोग फिर 4-4 लाख रुपए लेकर अपनी-अपनी जातियों के गरीब नौजवानों को सेना में घुसा लेते हैं. यही हालत एयरफोर्स की है, यही हालत एसएससी के माध्यम से सेलेक्ट होने वाले BSF, CRPF, और ITBP के जवानों की है.
जाट अधिकारी होता है तो उसका अधीनस्थ बिचौलिया भी जाट ही होता है. वह जाट बिचौलिया, जाट नौजवानों को पैसे ऐंठ-ऐंठकर फौज की नौकरियों में घुसा देते हैं. यही हालत राजपूत अधिकारियों और बिचौलियों की है. आजादी के बाद से ही इन लोगों का कब्जा सेना पर बना हुआ है, जो टूटने में नहीं आ रहा. सेना में पहुंच का मसला, जातियों के वर्चस्व से जुड़ा मसला भी है, जब तक मुसलमान और दलितों की पहुंच सेना में नहीं होती, तबतक दलितों और मुसलमानों की भीड़ पर गोली चलाने वाले हाथ नहीं कापेंगे.
आप मानिए, मत मानिए, जाति इस देश का सबसे नंगा सच है. जिसे राष्ट्रवाद और देशभक्ति का पर्दा डालकर भी ढका नहीं जा सकता. अलीगढ़ की घटना अंदर से अत्यधिक ही घृणा भर रही है, जो आगे चलकर खून की एक एक बूंद का हिसाब लेगी. हर चीज का अंत है, इस आतंक का भी अंत भी होगा एक दिन. सरकार बनाम आम जनता के बीच में आने वाले इन सब दलालों का हिसाब होगा, जरूर होगा.
- श्याम मीरा सिंह
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