भाड़े के एजेंट दीपक चौरसिया शाहीन बाग के प्रदर्शकारी महिलाओं को आतंकवादी, गुंडा और जेहादी कहता है, सिर्फ इसलिए कि वह मोदी-शाह की दलाली में अपना ईमान तक गिरवी रख दिया है. दीपक चौरसिया केवल शाहीन बाग की प्रदर्शनकारी महिलाओं को ही नहीं अपितु जेएनयू के छात्रों के खिलाफ भी अनाप-शनाप बोलते हुए टीवी स्टूडियो पर देखा जा सकता है, पर उसे जेएनयू के छात्र रामा नागा ने बड़ी बेरहमी से बहस में नंगा कर दिया था. दीपक चौरसिया दलाल पत्रकारिता का एक विद्रुप नमूना है, जो देश की जनता को ही देशद्रोही और गुंडा गिरोह कहने का दुस्साहस कर सकता है. शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को शुक्रिया कहना चाहिए कि उसने एक बार फिर इस दलाल पत्रकार को देश के सामने नंगा कर दिया है.
शाहीन बाग ही नहीं, देश की तमाम जनता अपनी आवाज उठाने के लिए पत्रकारिता का सम्मान करती है. यही कारण है कि इसी शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के बीच जब मैग्सेसे पुरस्कार विजेता रवीश कुमार पहुंचते हैं तो वहां के तमाम लोग उनके सम्मान में खड़े हो जाते हैं. उन्हें पीने के लिए पानी देते हैं और अपनी तकलीफ को वयां करने के लिए तमाम प्रदर्शनकारी महिलायें उनके सामने आ जाते हैं, जबकि यही प्रर्दशनकारी महिलायें भाजपा के भाड़े के दलाल एजेंट दीपक चौरसिया से बात तक करने को तैयार नहीं होते हैं, और उन्हें वहां से बाहर निकाल कर ही दम लेती है. अपूर्व भारद्वाज, जो दीपक चौरसिया को करीब से जानते हैं, उनकी टिपण्णी इस प्रकार है –
दीपक चौरसिया इंदौर के है, वो होलकर कालेज में मेरे सीनियर रहे है इसलिए मैं उन्हें 1998 से फॉलो कर रहा हूं. होलकर कालेज और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से आधुनिक पत्रकारिता की पूरी एक जनरेशन निकली है, जिसमें सुमित अवस्थी, अखिलेश शर्मा और सिद्धार्थ शर्मा जैसे टीवी पत्रकारिता के बड़े नाम निकले है. इंदौर की पत्रकारिता भारत को बहुत बड़े हस्ताक्षर दिये है लेकिन कल जो दीपक चौरसिया के साथ हुआ उसके बीज वो बरसों पहले बो चुके थे.
एक समय दीपक चौरसिया बहुत प्रतिभावान पत्रकार थे और एस. पी. सिंह के साथ काम करने के बाद उनके काम में और निखार आया था लेकिन दीपक इंदौर के पास बहुत ही छोटे कस्बे से आते हैं. उनकी आंखों में बड़े सपने थे. वो पत्रकारिता को शुरू से एक पेशा मानते थे. वो कहते थे कि पत्रकारिता से कभी क्रांति नहीं आ सकती है. भारत का पत्रकार शुरू से ‘राजपूत’ रहा है अर्थात जिसकी सरकार उसी का पत्रकार.
दीपक गलत नहीं थे. उन्हें मीडिया की ताकत पता थी. वो रूपर्ट मर्डोक को फॉलो करते थे और मीडिया को काॅरपोरेट जैसा चलाने के हिमायती रहे हैं. दीपक को खबर की नब्ज पकड़ना आती थी इसलिए अटलजी की सरकार के दौरान ‘आजतक’ से शुरु हुआ उनका सफर ‘स्टार न्यूज’ से ‘डीडी न्यूज’ तक परवान चढ़ा. उनकी रिपोर्टिंग में धार थी. संसद पर हुए हमले के दौरान उनकी रिपोर्टिंग शानदार थी. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दीपक पत्रकारिता के अर्श से फर्श पर आ गए ?
मैंने दीपक चौरसिया के बारे में उनके बैचमेट और मेरे सीनियरों से बहुत जाना और समझा है. दीपक ब्रांड बनना चाहते थे. वो प्रभु चावला को अपना आदर्श मानते थे इसलिए वो अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कोई भी समझौता करने के लिए तैयार थे. और उसमें वो बहुत हद तक सफल भी रहे.
जब दीपक चौरसिया ‘इंडिया न्यूज’ जैसा चैनल को रिलांच किया तो एक समय उसकी टीआरपी बहुत हाई थी. यह दीपक की मेहनत का परिणाम था लेकिन धीरे-धीरे लालच ने उनकी पत्रकारिता को खत्म कर दिया और गोदी मीडिया के एक पक्षीय पत्रकार बन कर रह गए.
दीपक चौरसिया की कहानी हर उस गांव-कस्बे के खांटी पत्रकार की कहानी है, जो टीवी की चकाचैंध में पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों को भूल गया है. कल शाहीन बाग में दीपक चौरसिया की नहीं भारत की भटकी हुई पत्रकारिता पीटी है, जिस पर आंसू बहाने के अलावा मेरे पास अब कुछ नही बचा नहीं है.
भारत के पत्रकारिता जगत में दलाल पत्रकारों का यह कड़वा सच है कि वह समूचे विश्व में बदनाम हो गया है. आज इसके पास सत्ता की चाकरी के सिवा और कोई काम नहीं रह गया है. वह सत्ता की दलाली करते हुए समाज में नफरत और हिंसा फैलाने का औजार बनकर रह गया है. न केवल दीपक चौरसिया ही बल्कि इसके साथ साथ अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप, अमिश देवगन वगैरह कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने पत्रकारिता को बदनाम कर दिया है. उनके लिए पत्रकारिता महज एक व्यवसाय बनकर रह गया है, जो सत्ता के ईशारे पर समाज को केवल घृणा फैला रहे हैं और लोगों को बरगला कर हिंसक बना रहे हैं.
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कुमार सौवीर
April 8, 2023 at 11:23 am
बेहतरीन
कुमार सौवीर
दोलत्ती डॉट कॉम
लखनऊ