हिमांशु कुमार, गांधीवादी विचारक
भारत की जो राजधानी है. वह चारों तरफ से हिंदी भाषी इलाके से घिरी हुई है. यह हिंदी भाषी इलाका अपने आप को मुख्य भारत मानता है. अपनी धार्मिक मान्यताएं, अपना खानपान, अपने रीति रिवाज को ही यह हिस्सा पूरे भारत की मुख्य संस्कृति कहता है. हालांकि इस इलाके के बाहर धार्मिक रीति रिवाज, मान्यताएं, त्यौहार बिल्कुल अलग तरह के हैं. बाकी का भारत अलग अलग भाषाओं के आधार पर हिस्सों में बंटा हुआ है इसलिए गुजराती, तमिल, तेलुगू, मराठी, कन्नड़ कोई भी एक हिस्सा भारत की राजनीति में निर्णायक भूमिका नहीं निभा सकता.
हिंदी पट्टी ही भारत की राजनीति की दिशा का फैसला करती है इसलिए इस हिंदी पट्टी को खुश करने के लिए इसके त्यौहार, इसके रीति रिवाज, इसकी मान्यताओं को ही भारत की मुख्य धारा कहा जाता है. मैं खुद यूपी का हूं. मुझे मालूम है हम लोग किस तरह मद्रासी, बंगाली, उत्तर पूर्वी लोगों का मजाक बनाते थे. अधिकांश लोग आज भी बनाते हैं.
हम पूरे बचपन यह मानते थे कि हमारा धर्म, हमारे त्योहार, हमारे रीति रिवाज पूरे भारत में मनाए जाते हैं और जो लोग नहीं मनाते वह लोग सच्चे हिंदू नहीं हैं या अच्छे भारतीय नहीं हैं. यह बात तो पक्की है कि हमारे पास ऐसा कोई ठेका या दुकान या कोई अधिकार नहीं था कि हम इस तरह का सर्टिफिकेट बांट सकते हैं लेकिन हम आज भी कौन सच्चा हिंदू है, कौन सच्चा भारतीय है, इस तरह का सर्टिफिकेट बांटते घूमते हैं.
इस तरह राजनीति के रंगमंच पर एक तरफ तो मांस खाने ना खाने की बहस चलाकर राजनीति की बहस को एक बहुत छोटे से मुद्दे पर समेट कर सारा ध्यान उधर ले आया जाता है. दूसरी तरफ राजनीति का जो असली काम है, वह पर्दे के पीछे चलता रहता है.
देश की खदानें, समुद्र तट, पहाड़, हवाई अड्डे, एयरलाइंस, रेलवे लाइंस, ट्रेनें सब सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी पूंजीपतियों को देती जाती है. इन इलाकों के लोग विरोध करते हैं. पुलिस उन को पीटती है, जेल में डालती है, गोली से उड़ा देती है. लेकिन भारतीय राजनीति के मंच पर इस सब की चर्चा नहीं होती. पूरी राजनीतिक चर्चा को हिजाब, बुर्का, तीन तलाक, पाकिस्तान, मुसलमान के शोर शराबे में दबा दिया जाता है.
देश के असली मुद्दों पर बोलने वाले, लिखने वाले, काम करने वाले बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया है. वे लोग आज भी जेलों में पड़े हैं. भारत की अदालतें इस समय अमित शाह और मोदी के दरवाजे पर बंधे हुए पालतू कुत्ते जैसा बर्ताव कर रही हैं. सैकड़ों मुसलमान छात्र जेलों में सड़ रहे हैं, जिन्होंने सीए- एनआरसी आंदोलन में भाग लिया था.
पत्रकार जेलों में पड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट इन लोगों को जमानत तक नहीं दे रहा है. लेकिन भारत की राजनीतिक स्टेज पर इस सब की कोई चर्चा नहीं है.
भारत का मतलब ना तो सिर्फ हिंदू है, न सिर्फ हिंदी बोलने वाले हैं, न सिर्फ उत्तर भारत के लोग हैं, ना ही भारत का कोई एक धर्म है, ना एक भाषा है, ना एक संस्कृति है. यहां सैकड़ों भाषाएं हैं. अनेकों धर्म है. अनेको संस्कृतियां हैं. ना कोई धर्म, भाषा, संस्कृति किसी से कम है, ना कोई किसी से बेहतर है. यही संविधान है. यही कानून है. इसी आधार पर राजनीति चलाई जानी चाहिए.
लेकिन खुलेआम हिंदू धर्म, हिंदी भाषा और उत्तर भारत की संस्कृति को मुख्यधारा की संस्कृति घोषित करके उसके आधार पर बदमाश नेता अपनी राजनीति चला रहे हैं. हिंदी पट्टी से बाहर का भारत जानबूझकर पूरी बातचीत से गायब कर दिया गया है.
इतना ही नहीं पूरी बातचीत से मुसलमानों को बाहर निकाल दिया गया है. दलितों को बाहर निकाल दिया गया है. आदिवासियों को बाहर निकाल दिया गया है. सेक्यूलर लोगों को बाहर निकाल दिया गया है.
बदमाश नेता ऐसा करें तो समझ में आता है लेकिन अदालतें इस बदमाशी को सपोर्ट कर रही हैं और इस तरह के फैसले दे रही हैं जो मुसलमानों के खिलाफ है. आदिवासियों के खिलाफ हैं. बुद्धिजीवियों के खिलाफ है. यह बहुत हैरानी की बात है.
भारत का संविधान बनाते समय अदालतों को सरकार से अलग रखा गया था ताकि वह सरकार के दबाव में ना आए और सरकार के गलत कामों को रोक सके. लेकिन बदमाश नेताओं की सरकारी गुंडागर्दी को अदालतें जिस तरीके से बढ़ावा दे रही हैं, समर्थन दे रही हैं, उससे तो भारत का संविधान ही खतरे में पड़ गया है.
भारत के करोड़ों लोग इस समय अपनी सांस घुटी हुई महसूस कर रहे हैं. उनकी जिंदगी खतरे में है. आजीविका खतरे में है. ज़मींनें खतरे में है. उनकी जिंदगी को जहन्नुम बना दिया गया है लेकिन भारत की अदालतें उस तरफ देखने की भी जहमत नहीं कर रही.
कर्नाटक की एक मुस्लिम लड़की ने पाकिस्तान के गणतंत्र दिवस पर अपने व्हाट्सएप पर एक मैसेज डाला – ‘पूरी दुनिया में हर देश में समृद्धि एकता और सद्भावना होनी चाहिए.’ उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई. गिरफ्तार कर लिया गया और एक दिन जेल में रखा गया. असलियत में तो उसे परेशान करने वाले हिंदुत्ववादी संगठन के शिकायतकर्ता को और पुलिस अधिकारी को जेल होनी चाहिए.
क्या पुलिस को यह मालूम नहीं है कि सद्भावना संदेश कोई अपराध नहीं है ?पाकिस्तान को भारत सरकार ने दुश्मन देश का दर्जा नहीं दिया हुआ है. गांधी जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी संत विनोबा भावे ने कहा था ‘जय हिंद’ का नारा पुराना हो चुका है. आने वाले युग में ‘जय जगत’ का विचार ही दुनिया को बचाएगा. यानी सिर्फ मेरे देश की जय नहीं सारी दुनिया की जय. आज जय जगत की बात करने वालों को जेल में डाला जा रहा है.
बदमाश शिकायतकर्ता, बदमाश पुलिस वाले से ज्यादा दिक्कत तो हमें बदमाश न्याय तंत्र से है. नए तंत्र अगर संविधान की रक्षा नहीं करेगा, कानून की रक्षा नहीं करेगा तो कौन करेगा ? उमर ख़ालिद की ज़मानत ख़ारिज करने के फ़ैसले में अदालत सारी बात मान रही है लेकिन ज़मानत देने को तैयार नहीं है. यानी आरोपी बिना सज़ा के सज़ा काटने को मजबूर है !
कोई बात नहीं हम चुप नहीं बैठेंगे, लड़ा जाएगा. चाहे हमें गाली दो, जेल में डालो, गोली से उड़ा दो, हम इन तौर-तरीकों का पर्दाफाश करते रहेंगे.
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