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कारपोरेटपरस्त दक्षिणपंथी शासक देश को लूट रहे हैं

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कारपोरेटपरस्त दक्षिणपंथी शासक देश को लूट रहे हैं

राम चन्द्र शुक्ल

पिछले 06 साल में कारपोरेट घरानों को 12 लाख करोड़ से अधिक की छूट टैक्सों में दी गई है. उनके बड़े बड़े कर्जों को राइट आफ किया गया है. वर्तमान सरकार के कई चहेते कारपोरेट घरानों के मुखिया देश के सरकारी बैंकों से लिए गये हजारों करोड़ के लोन को बिना अदा किए विदेशों को भाग कर वहीं जाकर बस गये हैं. नीरव मोदी, विजय माल्या तथा मेहुल चौकसी जैसे शातिर इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं.

परिणामस्वरूप दिए गए लोन की अदायगी न हो पाने के कारण देश के कई राष्ट्रीयकृत बैंक डूब गये हैं. इस किरकिरी से बचने के लिए सरकार द्वारा कई राष्ट्रीयकृत बैंकों का आपस में विलय कर दिया गया है. कारपोरेट घरानों को इतनी रियायतों के बाद भी शासकों को तसल्ली नही मिली. इन कारपोरेटपरस्त शासकों ने कोरोना के नाम पर जनता को घरों के भीतर कैदकर देश के 14 करोड़ 64 लाख किसान परिवारों पर ठेका खेती जैसा काला कानून थोप दिया.

इसके साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से देश की गरीब जनता को मिल रहे सस्ते अनाज की सुविधा को खत्म करने के लिए कृषि उत्पादन विपणन अधिनियम तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम को निष्प्रभावी बना दिया गया है.

इन काले कानूनों को वापस लेने के लिए देश के किसानों को दिल्ली की पांच सीमाओं पर आन्दोलन व धरना प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस आन्दोलन में शामिल किसानों में से 200 से अधिक किसानों की मौत अब तक हो चुकी है.

वर्तमान दक्षिणपंथी शासक किसानों के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं. पर हर सब्र की एक सीमा होती है. इसके पहले कि किसानों के सब्र का बांध टूट जाए सरकारी तंत्र को सचेत हो जाना चाहिए. वर्तमान सरकार किस तरह से देश की गरीब जनता को दोनों हाथों से लूट रही है, इसका एक बेहतरीन आकलन पुण्य प्रसून वाजपेयी जी ने किया है.

‘वन नेशन वन टैक्स’ का झूठा नारा देने वाले वर्तमान दक्षिणपंथी शासकों द्वारा न तो शराब को और न ही पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में रखा है. सुरा पान करने वाले दोस्तों को कभी बोतल पर चिपकाए गये मूल्यों की सूचना पर जरूर नजर डालनी चाहिए. इससे उन्हें पता चलेगा कि शराब या बियर का वास्तविक मूल्य कितना है तथा उन पर कितने प्रतिशत टैक्स सरकारों द्वारा लिया जा रहा है ?

आज की तारीख में एक लीटर पेट्रोल 90 रूपये का मिल रहा है. इस 90 रूपये में लगभग 40 रूपये केंद्र सरकार का तथा लगभग 20 रूपये से कुछ अधिक राज्य सरकारों का टैक्स शामिल है. इस तरह से पेट्रोल की असली कीमत 30 रूपये प्रति लीटर से भी कम है. देश की जिन संवैधानिक संस्थाओं पर सरकार की निगरानी की जिम्मेदारी थी, उनके बजट में पिछले छः सालों में कई गुना बढ़ोत्तरी कर दी गयी है.

जिस सुप्रीम कोर्ट का सालाना बजट 100 करोड़ से भी कम था 2021-22 के लिए उस सुप्रीम कोर्ट का बजट बढ़ाकर लगभग 300 करोड़ कर दिया गया है. इसी तरह से निर्वाचन आयोग, सीबीआई तथा सेना, पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों के सालाना बजट में कई गुना की बढ़ोत्तरी कर दी गयी है. केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के साथ ही राज्यों के गृह मंत्रालयों के बजट में कई गुना की बढ़ोत्तरी पिछले छः सालों में कर दी गयी है.

गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत पुलिस के अधिकारी इनोवा जैसी लग्जरी कारों से चल रहे हैं तथा प्रदेशों के महत्वपूर्ण विभागों के अधिकारी प्राइवेट ट्रेवल एजेंसियों से हायर की जाने वाली खटारा टैक्सियों से जरूरी दौरे कर रहे हैं. सुने इस संबंध में पुण्य प्रसून वाजपेयी जी द्वारा प्रस्तुत किया गया लेखा जोखा.

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