देश की सत्ता पर विराजमान शासक को सदैव दूरदर्शी होना चाहिए. दूरदर्शी होने का प्रथमिक शर्त ही होता है अहंकार रहित और सीखने वाला होना. भारत के इतिहास में एसे भी शासक हुए हैं जो कभी भी शिक्षा हासिल नहीं कर पाये, परन्तु उन्होंने विद्वानों का न केवल सदैव सम्मान ही किया अपितु अपने चारों तरफ उनको रखा, और देश को नई ऊंचाई तक ले गये. मुगल बादशाह अकबर इसका एक बेहतरीन उदाहरण है.
इसके विपरीत आज का शासक नरेन्द्र मोदी, जो असल में एक लोकतांत्रिक देश के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं, परन्तु वे खुद को शासक या बादशाह से कम नहीं समझते हैं, भारत के सम्पूर्ण इतिहास में एक ऐसा शासक बनकर उभरे हैं जिन्होंने अपने चारों ओर चापलूसों और गुंडों का न केवल जमावड़ा ही लगा रखा है बल्कि खुद की मूर्खता को छिपाने के लिए तरह-तरह के करतब करने के लिए कुख्यात हो चुके हैं.
कभी वे खुद को स्कूली शिक्षा से दूर बताते हैं तो कभी एम ए की फर्जी डिग्री लिकर लहराने लगते हैं. अपनी अयोग्यता और निकम्मापन का ठिकरा सदैव दूसरों के सर फोड़ने में माहिर हैं और इसमें वे किसी भी प्रकार का लज्जा का अनुभव भी नहीं करते. इनके कुछ पसंदीदा सिर हैं, जिसपर ये अपनी नाकामी का ठिकरा फोड़ते हैं , मसलन, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मुसलमान, पाकिस्तान वगैरह.
जनता के टैक्स से दिये पैसों का दुरुपयोग कर इन्होंने मीडिया का मूंह पैसों से भर दिया है, जो दिन रात नरेन्द्र मोदी का गुणगान करता रहता है. उसके उल्टे सीधे कामों को नया नया अर्थ प्रस्तुत कर देश की जनता को मूर्ख बनाता रहता है, देश में हमेशा नफरत का वातावरण बनाकर दंगा करवाता रहता है. परिणाम यह निकलकर आया है कि यह आत्ममुग्ध ‘शासक’ अपने नाक के आगे नहीं देख पाता और विद्वानों को मूर्ख बताकर देश को महामारी और भूखमरी के कुंंड में डाल दिया है.
हम बात कर रहे हैं कोरोना जैसे वायरस पर राहुल गांधी की चेतावनी पर मूर्ख ‘शासक’ नरेन्द्र मोदी और उसके गिरोहों द्वारा उपहास उड़ाया जाना. दुनिया का किसी उपग्रहों की भांति चक्कर काटने वाला यह ‘शासक’ कोरोना वायरस की भयंकरता को भांप नहीं पाया और देश को दोनों हाथों से केवल लूटने और कॉरपोरेट घरानों का खजाना भरने में करता रहा.
खुद को 56 ईंची सीना का तमगा देने वाले इस मूर्ख ‘शासक’ का पोल तब और खुल गया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी से डर कर आनन-फानन में कोराना वायरस के लिए दी जाने वाली दवाईयों को अमेरिका के लिए निर्यात कर दिया और देशवासियों को मरने के लिए छोड़ दिया. यह तो गनीमत है कि कोरोना वायरस की भयंकरता देश में थोड़ी कम है, वरना अबतक करोड़ों लोग मर चुके होते या मरने का इंतजार कर रहे होते.
खैर, महामारी के मुसीबत की इस घड़ी में यह अहंकारी और दुष्ट शासक नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष के नेताओं से सलाह मांगा है. मोदी के इस मांग पर पूर्व प्रधानमंत्री शहीद राजीव गांधी की पत्नी और विपक्ष की सांसद सोनिया गांधी ने अपना सुझाव भेजा है. सोनिया गांधी ने इससे पूर्व भी 25 मार्च और 26 मार्च को पत्र लिखा था, जिस पर इस अहंकारी मूर्ख ने संभवतः कोई ध्यान नहीं दिया. सोमवार को सोनिया गांधी द्वारा मोदी को कोरोना महामारी के संदर्भ में लिखे पत्र का मजमून इस प्रकार है –
श्री नरेंद्र मोदी,
माननीय प्रधानमंत्री, लोक कल्याण मार्ग,
नई दिल्ली-110001
मैं इस चुनौतीपूर्ण समय में आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूंं. सांसदों का वेतन 30 प्रतिशत कम करने के केंद्रीय मंत्रीमंडल के निर्णय का हम समर्थन करते हैं. कोविड-19 की महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए फंड एकत्रित करने में सादा व अतिसंयमित खर्च आज के समय की मांग है. इसी सकारात्मक भावना से मैं आपको पांच ठोस सुझाव देती हूंं. मुझे विश्वास है कि आप इन्हें लागू करेंगे.
1. सरकार एवं सरकारी उपक्रमों द्वारा मीडिया विज्ञापनों- टेलीविज़न, प्रिंट एवं ऑनलाईन विज्ञापनों पर दो साल के लिए रोक लगा कर यह पैसा कोरोनावायरस से उत्पन्न हुए संकट से जूझने में लगाया जाए. केवल कोविड-19 बारे में एडवाईज़री या स्वास्थ्य से संबंधित विज्ञापन ही इस बंदिश से बाहर रखे जाएं. केंद्र सरकार मीडिया विज्ञापनों पर हर साल लगभग 1,250 करोड़ रु. खर्च करती है. इसके अलावा सरकारी उपक्रमों एवं सरकारी कंपनियों द्वारा विज्ञापनों पर खर्च की जाने वाली सालाना राशि इससे भी अधिक है. सरकार के इस प्रयास से कोरोना वायरस द्वारा हुए अर्थव्यवस्था व समाज को होने वाले नुकसान की भरपाई में एक बड़ी राशि जुटाने में मदद मिलेगी.
2. 20,000 करोड़ रु. की लागत से बनाए जा रहे सेंट्रल विस्टा’ ब्यूटीफिकेशन एवं कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट को स्थगित किया जाए. मौजूदा स्थिति में विलासिता पर किया जाने वाला यह खर्च व्यर्थ है. मुझे विश्वास है कि संसद मौजूदा भवन से ही अपना संपूर्ण कार्य कर सकती है. नई संसद व उसके नए कार्यालयों के निर्माण की आज की आपातकालीन स्थिति में जरूरत नहीं. ऐसे संकट के समय में इस खर्च को टाला जा सकता है. इससे बचाई गई राशि का उपयोग नए अस्पतालों व डायग्नोस्टिक सुविधाओं के निर्माण तथा अग्रिम कतार में रहकर काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्शन ईक्विपमेंट (पीपीई) एवं बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए किया जाए.
3. भारत सरकार के खर्चे के बजट (वेतन, पेंशन एवं सेंट्रल सेक्टर की योजनाओं को छोड़कर) में भी इसी अनुपात में 30 प्रतिशत की कटौती की जानी चाहिए. यह 30 प्रतिशत राशि (लगभग 2.5 लाख करोड़ रु. प्रतिवर्ष) प्रवासी मजदूरों, श्रमिकों, किसानों, एमएसएमई एवं असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को सुरक्षा चक्र प्रदान करने के लिए आवंटित की जाए.
4. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राज्य के मंत्रियों तथा नौकरशाहों द्वारा की जाने वाली सभी विदेश यात्राओं को स्थगित किया जाए. केवल देशहित के लिए की जाने वाली आपातकालीन एवं अत्यधिक आवश्यक विदेश यात्राओं को ही प्रधानमंत्री द्वारा अनुमति दी जाए. विदेश यात्राओं पर खर्च की जाने वाली यह राशि (जो पिछले पांच सालों में केवल प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय मंत्रियों की विदेश यात्रा के लिए 393 करोड़ रु. है) कोरोना वायरस से लड़ाई में सार्थक तौर से उपयोग की जा सकती है.
5. पीएम केयर्स फंड की संपूर्ण राशि को ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत फंड’ (‘पीएम-एनआरएफ) में स्थानांतरित किया जाए. इससे इस राशि के आवंटन एवं खर्चे में एफिशियंसी, पारदर्शिता, जिम्मेदारी तथा ऑडिट सुनिश्चित हो पाएगा. जनता की सेवा के फंड के वितरण के लिए दो अलग-अलग मद बनाना मेहनत व संसाधनों की बर्बादी है. पीएम-एनआरएफ में लगभग 3800 करोड़ रु. की राशि (वित्तवर्ष 2019 के अंत तक) बिना उपयोग के पड़ी है. यह फंड तथा ‘पीएम-केयर्स की राशि को मिलाकर उपयोग में लाकर, समाज में हाशिए पर रहने वाले लोगों को तत्काल खाद्य सुरक्षा चक्र प्रदान किया जाए.
कोरोना के हमले से लड़ने में हर भारतीय ने व्यक्तिगत रूप से त्याग किया है. उन्होंने आपके कार्यालय तथा केंद्र सरकार द्वारा दिए गए हर सुझाव, निर्देश एवं निर्णय का पालन किया है. अब विधायिका एवं सरकार द्वारा लोगों के विश्वास व भरोसे पर खरा उतरने का समय आ गया है.
देश के समक्ष उत्पन्न हुई कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने में हमारा संपूर्ण सहयोग आपके साथ है.
सादर,
कृते.
(श्रीमती सोनिया गांधी)
देश के ‘शासक’ नरेन्द्र मोदी कि पिछला रिकॉर्ड देखते हुए यह कहा जा सकता है कि विपक्ष की नेता सोनिया गांधी द्वारा दिया गया यह सुझाव मोदी और उसके गिरोहों के गले नहीं उतरेगी. इसका जल्द ही उल्टा असर दिखने लगेगा, मसलन एक बार फिर सोनिया गांधी का मजाक उड़ाया जायेगा और उन्हें विदेशी महिला कहकर दलाल मीडिया के माध्यम से उनके सुझावों को कूड़ेदान में फेक दिया जायेगा. कुछ हद तक तो इसकी शुरुआत भी हो चुकी है.
सोनिया गांधी के पत्र में दिये गये सुझाव में जिन 3800 करोड़ रुपये की पीएम-एनआरएफ फंंड में बिना उपयोग पड़ेे होनेे की बात कही गई है, असल मेंं वह राशि कब की निकाल ली गई है और अब वहां शून्य राशि ही है, जो लोगों का मूंह चिढ़ा रही है.
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