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कोरोना वैक्सीनेशन यानी मौत की तरफ बढ़ते लंबे डग

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कोरोना वैक्सीनेशन यानी मौत की तरफ बढ़ते लंबे डग

गिरीश मालवीय

जिन लोगों को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वैक्सीनेशन का कोविड के प्रसार से सीधा-सीधा रिश्ता है, वो एक बार जरा दक्षिण अमेरिकी देश उरुग्वे के आंकड़े देख ले. उरुग्वे को कोविड 19 की पहली लहर में एक मॉडल देश माना गया था. 31 दिसम्बर, 2020 तक वहां केवल 200 मौते रिकॉर्ड हुई थी और संक्रमण भी बेहद कम था लेकिन यह वैक्सीनेशन अभियान के शुरू होने के पहले की बात हैं. वैक्सीनेशन के बाद में वहां संक्रमण दर में काफी तेजी से वृद्धि हुई और मौतों में भी. 18 मई तक वहां 3,520 से अधिक मौतों की पुष्टि हो चुकी है.

उरुग्वे में 27 फरवरी से वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया गया 35 लाख की कुल आबादी वाले देश में यह तेजी से शुरू किया गया लेकिन उसी के साथ संक्रमण भी बढ़ा और कोविड से मौतें भी. ग्लोबलडाटा द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ हफ्तों में, छोटे दक्षिण अमेरिकी देश की 17.11 प्रति मिलियन जनसंख्या की कोविड -19 मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक थी. देश ने 16 मई को विश्व स्तर पर प्रति मिलियन जनसंख्या पर सबसे अधिक नए मामले (प्रति मिलियन जनसंख्या पर 958 मामले) दर्ज किए. उरुग्वे में वैक्सीनेशन अभी भी जारी है और अभी तक 28 प्रतिशत जनता का वैक्सीनेशन कंप्लीट हो गया है.

अभी तक आप ऐसी ही मालदीव, मंगोलिया ओर सेशेल्स की कहानी सुन चुके हैं. भारत के बारे में बताने की जरूरत नही है, कल एक ओर दक्षिण अमेरिकी देश चिली की ऐसी ही कहानी सुनिएगा.

सवाल उठता है कि क्या वैक्सीनेशन ही कोरोना वायरस के प्रसार ओर म्यूटेशन का जरिया बन गया है ? यह सवाल बार बार हम सबके दिमाग में आता है लेकिन वैज्ञानिक बिरादरी से जुड़ा हुआ कोई भी शख्स इसकी पुष्टि करना तो दूर, इस पर बात तक नहीं करता. लेकिन अब एक ऐसे वायरोलॉजिस्ट सामने आए हैं जिन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कह दिया है कि कोविड का टीकाकरण ही नए वेरिएंट के उत्पन्न होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण है.

हम बात कर रहे है फ्रांस के जाने माने वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर ल्यूक मॉन्टैग्नियर (Prof. Luc Montagnier) की. मॉन्टैग्नियर कोई छोटे-मोटे वायरोलिस्ट नहीं हैं. इन्होंने एचआईवी वायरस की खोज के लिए फ्रांकोइस बर्रे-सिनौसी और हेराल्ड ज़ूर हॉसन के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में 2008 का नोबेल पुरस्कार जीता था इसलिए आप उनकी बातों को आसानी से खारिज नहीं कर सकते.

दरअसल मॉन्टैग्नियर ने ये बड़े खुलासे इस महीने के शुरुआत में दिए एक साक्षात्कार में किए लेकिन चर्चा में नहीं आ पाए. इस साक्षात्कार के क्लिप को अमेरिका के आरएआईआर फाउंडेशन ने विशेष तौर पर ट्रांसलेट किया, जिसके बाद उनका वीडियो अब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. ल्यूक मॉन्टैग्नियर ने इसमे साफ-साफ कहा है कि – ‘ये टीकाकरण ही है, जिसके कारण वेरिएंट उत्पन्न हो रहे हैं.’

वीडियो में जब कि मॉन्टैग्नियर से सवाल पूछा गया कि टीकाकरण शुरू होने से बाद से जनवरी से नए मामले और मौत के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं, खासतौर पर युवाओं में. तो इस पर आप क्या कहते हैं ?

इसके जवाब में मॉन्टैग्नियर ने कहा, ‘यह एक ऐसी वैज्ञानिक, मेडिकल गलती है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. इसे इतिहास में दिखाया जाएगा क्योंकि टीकाकरण ही नए वेरिएंट उत्पन्न कर रहा है.’

चीनी वायरस के लिए एंटीबॉडी हैं, जो वैक्सीन से आती है. तो वायरस क्या करता है ? क्या वो मर जाता है ? या कोई और रास्ता ढूंढता है ?

वह इसका उत्तर देते हुए आगे कहते हैं, ‘तब नए तरह के वेरिएंट उत्पन्न होते हैं और ये टीकाकरण का परिणाम है.’

वैक्सीन एंटीबॉडी बनाती हैं, जो वायरस को कोई दूसरा रास्ता खोजने या मरने पर विवश करती हैं और इसी के चलते नए वैरिएंट उत्पन्न होते हैं.

वे कहते हैं कि आप देख सकते हैं, ये हर देश में एक जैसा ही है. टीकाकरण का ग्राफ मौत के ग्राफ के साथ चल रहा है (Vaccination Creates Variants). मैं नजदीक से इसका अनुसरण कर रहा हूं और संस्थानों में मरीजों के साथ प्रयोग कर रहा हूं. जो वैक्सीन लगने के बाद संक्रमित हुए हैं. इससे पता चलता है कि वो ऐसे वेरिएंट बना रहे हैं, जिन पर वैक्सीन कम प्रभावी है.’ उन्होंने बताया कि इस घटना को एंटीबॉडी-डिपेंडेंट एनहैंसमेंट’ (Antibody Dependent Enhancement (ADE) कहा जाता है.

वे कहते हैं कि महामारी विज्ञानियों को वैक्सीन से जुड़े तथ्यों के बारे में पता है लेकिन फिर भी वे खामोश हैं.

दरअसल WHO समर्थित वैज्ञानिक समुदाय
को पसंद नहीं करता है क्योंकि उन्होंने पिछले साल अप्रैल 2020 में फ्रेंच चैनल CNews को दिए गए एक साक्षात्कार के दौरान दावा किया था कि ‘वायरस, जो COVID-19 संक्रमण का कारण बनता है, एक चीनी प्रयोगशाला में एचआईवी के खिलाफ एक टीका बनाने के प्रयास का परिणाम था.’

मॉन्टैग्नियर ने कोरोनावायरस के जीनोम में एचआईवी के तत्वों और यहां तक ​​कि ‘मलेरिया के रोगाणु’ के तत्वों की उपस्थिति की ओर भी इशारा किया था. उन्होंने कहा कि नए कोरोनावायरस की ऐसी विशेषताएं स्वाभाविक रूप से उत्पन्न नहीं हो सकती हैं. एचआईवी आनुवंशिक अनुक्रमों को वायरस में डाला गया था. यह अत्यधिक परिष्कृत कार्य है.’

अगर कोई एड्स वायरस पर ही शोध करते हुए नोबेल पुरस्कार जीतता है और वो इस तरह का दावा करता है तो उसे सीरियसली लेना चाहिए. लेकिन उनकी बातों को खारिज कर दिया गया और अब उन्होंने कोरोना वायरस के नए वेरियंट बनने के बारे यह दावा किया है. आपको याद होगा कि बेल्जियम के एक बड़े वायरोलॉजिस्ट गुर्ट वांडन बुशा ने दावा किया था ‘कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ जो मास वैक्सीनेशिन अभियान चलाया है वो एक तरह का ब्लंडर साबित होने जा रहा है.’

उनका भी मानना था कि एक महामारी के दौरान मानव हस्तक्षेप – जैसे मास वैक्सीनेशन – हमेशा मददगार नहीं होते हैं, या यहां तक ​​कि प्रतिशोधी भी होते हैं. उन्हें ऐसे वेरिएंट के उद्भव के पक्ष में माना जाता है जो मूल वायरस की तुलना में बहुत अधिक खतरनाक और संक्रामक हैं.

बड़े पैमाने पर टीकाकरण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करेगा और वायरस के उत्परिवर्तन को तेज करेगा. इस घटना का नाम ‘immune escape’ है.

गुर्ट वांडन बुशा का मानना था कि महामारी के बीच मास वैक्सीनेशिन अभियान बेहद खतरनाक है. ‘बड़े पैमाने पर टीकाकरण से, वायरस तेजी से उत्परिवर्तन की रणनीति को अपनाएगा और युवा आबादी में प्रसार को बढ़ाएगा.’ उन्होंने यह भी कहा था कि ‘these immune escapes could cause an infectious wave unstopable and cause the death of an important part of humanity. (ये प्रतिरक्षा पलायन एक संक्रामक लहर को अस्थिर कर सकता है और मानवता के एक महत्वपूर्ण हिस्से की मृत्यु का कारण बन सकता है.)

यानी यह दोनों बड़े वायरोलॉजिस्ट लगभग एक जैसी ही बातें कह रहे हैं, लेकिन कोई मान नहीं रहा है. सब वैक्सीनेशन के पीछे पड़े हैं. मॉन्टैग्नियर सही कह रहे हैं कि इतिहास ही बताएगा कि कौन सही कह रहा था.

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