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कोरोना महामारी से लड़ने का बिहारी मॉडल – ‘हकूना मटाटा’

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कोरोना महामारी से लड़ने का बिहारी मॉडल - 'हकूना मटाटा'

कोरोना महामारी से लड़ने का बिहारी मॉडल – ‘हकूना मटाटा’

गिरीश मालवीय

अमेरिकी डॉक्टर वित्तीय लाभ के लिए महामारी से मौत के बारे में झूठ बोल रहे हैं. यदि आपका दिल खराब है या आप कैंसर पीड़ित हैं तो भी डॉक्टर उनकी मौत को कोरोना से हुई बताते हैं. क्योंकि यदि आप कोविड-19 से मरते हैं तो डॉक्टरों को ज्यादा पैसा मिलता है.

– डोनाल्ड ट्रम्प (अमेरिकी राष्ट्रपति)

जैसा कि आपको कहा ही था कोरोना की देश में दूसरी लहर आने को है. तो जैसे-जैसे बिहार चुनाव का प्रचार समाप्ति की ओर जा रहा है, वैसे-वैसे कोरोना की दूसरी तथाकथित लहर नजदीक आती जा रही है. 7 नवंबर को बिहार चुनाव का आखिरी चरण है. इसके पहले 5 नवम्बर को चुनाव प्रचार खत्म हो जाएगा, तब तक दूसरी लहर की आमद की घोषणा हो जाएगी, ऐसा लग रहा है.

कल एम्स दिल्ली के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने चेतावनी दी है कि कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो गई है. दिल्ली के लिए उनका कहना है कि यह कोरोना की तीसरी नहीं बल्कि दूसरी ही लहर है, जो एक बार फिर से बढ़ गई है. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि जिस तरह से दिल्ली में केस बढ़े हैं ऐसे में देश के बाकी हिस्सों में एक और लहर आ सकती है.

यूरोप में कोरोना की दूसरी लहर दिख भी रही हैं. वहांं भी एक बार फिर लॉकडाउन की चर्चा है लेकिन वहांं होने वाले लॉकडाउन में ओर भारत में पिछली बार किये गए ड्रेकोनियन लॉकडाउन में बहुत अंतर है. यूरोप में लॉकडाउन के दौरान नागरिक अधिकृत आउट-ऑफ-होम यात्राएं काम पर जाने के लिए, चिकित्सा नियुक्ति के लिए, सहायता प्रदान करने, खरीदारी करने या यहांं तक कि हवा लेने के लिए भी कर सकता है लेकिन हमारे हिंदुस्तान में पिछली बार सरकार ने क्या हाल किये थे, हमें अच्छी तरह से पता है.

कोरोना के प्रसार को लेकर एक ओर महत्वपूर्ण खोज भी सामने आई है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने को लेकर अभी तक यही कहा जा रहा था कि यह खांसने या छींकने से निकलने वाली बूंदों की कारण तेजी से फैलता है लेकिन अब यह दावा गलत साबित होता दिख रहा है.

एक नए अध्ययन में पता चला है कि खांसने अथवा छींकने के बाद हवा के संपर्क में आने वाली एयरोसोल माइक्रोड्रॉपलेट्स (हवा में निलंबित अतिसूक्ष्म बूंदें) कोरोना वायरस संक्रमण फैलाने के लिए खास जिम्मेदार नहीं होतीं. बंद स्थान में बूंदों का खास प्रभावी नहीं है. जर्नल ‘फिजिक्स ऑफ फ्ल्यूड’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक बंद स्थान में सार्स-सीओवी-2 का एयरोसोल प्रसार खास प्रभावी नहीं होता है.

अनुसंधानकर्ताओं ने एक बयान में कहा, ‘यदि कोई व्यक्ति ऐसे स्थान पर आता है जहां कुछ ही देर पहले कोई ऐसा व्यक्ति मौजूद था जिसे कोरोना वायरस संक्रमण के हल्के लक्षण थे तो उस व्यक्ति के संक्रमण की जद में आने की आशंका कम होती है.’

इंदौर के अरविंदो हस्पताल के डॉक्टरों ने भी कुछ ऐसी ही रिसर्च की है. उन्होंने एक प्रयोग किया. अस्पताल में भर्ती कोरोना के मरीजों से उन्होंने बिना मास्क के फलों और सब्ज़ियों पर खांसने के लिए कहा. तकरीबन आधे घंटे तक सब्ज़ियों को मरीजों के सामने रखा गया. कुछ मरीजों ने तो सब्ज़ियों और फलों को अपने मुंह में भी रखा. इसके बाद सब्ज़ियों और फलों को सूर्य की रोशनी के बिना सिर्फ प्राकृतिक हवा में रखा गया. एक घंटे बाद इन सब्जियों और फलों की सतह का सैंपल लिया गया.

लेकिन आरटी पीसीआर जांच के बाद एक भी फल या सब्जी में कोरोना का संक्रमण नहीं मिला. लिहाज़ा डॉक्टर इस निष्कर्ष पर पहुंच सके कि सब्ज़ियों और फलों में कोरोना का संक्रमण नहीं फैलता. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने अपने शोध के दौरान अलग-अलग उम्र के दस पॉज़िटिव मरीजों के साथ यह एक्सपेरिमेंट किया. अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के जो डॉक्टर इस प्रयोग में शामिल रहे हैं, उनमें न्यूरोलॉजिस्ट अजय सोडाणी, राहुल जैन और डॉ. कपिल तैलंग शामिल हैं. उनकी यह रिसर्च इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन में भी प्रकाशित हुई है.

इस रिसर्च से इस वायरस के एयरबोर्न होने पर भी गम्भीर सवाल खड़े होते हैं. भारत में बीमारी की शुरुआत में ICMR के डॉक्टर गंगाखेड़कर ने वायरस के एयर बोर्न होने पर आशंका प्रकट करते हुए कहा था कि यदि ऐसा होता तो एक मरीज से परिवार के सभी सदस्यों में यह फैल जाता. यही नहीं, अस्पतालों में आस-पास भर्ती लोगों में भी यह वायरस पहुंच जाता, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं देखा गया है ?

जुलाई में WHO ने फिर एक बार कहा कि यह वायरस एयरबोर्न है. अगर ये एयरबोर्न है तो आज करोड़ों नहीं अरबों की संख्या में पेशेंट होने चाहिए थे. भारत में तो टेस्टिंग ही कम हो रही है लेकिन टेस्टिंग का मौतों से क्या ताल्लुक अगर यह डिसीज इतनी तेजी से फैल रही है तो लाखों की मौत हो जानी चाहिए, लेकिन ऐसा भी नहीं हो रहा है. अगर यह एयर बोर्न है तो विश्व में इतनी में भी मौत बहुत ज्यादा होनी चाहिए थी.

कोरोना की विश्व में आमद को अब 10 महीने गुजर चुके हैं लेकिन अभी तक इसे लेकर बहुत सी बातें साफ नहीं हो पाई है. उसके बावजूद बात बात में लॉक डाउन की बात कर हमें डराया जाता है और देश को आर्थिक तबाही के रास्ते पर ढकेला जा रहा है.

बिहार चुनाव के पहले चरण में मतदान का प्रतिशत आप देखिए, पिछले चुनाव जितना ही है न्यूज़ चैनल्स बिहार चुनाव के मद्देनजर लगातार बिहार के गांंव, शहरों और कस्बों में घूम रहे हैं और ग्राउंड रिपोर्ट दिखा रहे, नेताओं के अलावा आम आदमी बमुश्किल ही मास्क लगाए दिख रहा है.

बिहार में तमाम गाइडलाइन्स का जमकर उल्लंघन हो रहा है, नेताओं की रैलियों में लोगों की भारी भीड़ जमा हो रही है, जबकि कोरोना संक्रमण को लेकर अब तक विशेषज्ञ यह कहते आए हैं कि भीड़भाड़ वाला माहौल इस संक्रमण के फैलने के लिए सबसे मुफीद है तो फिर बिहार में कोरोना कहांं गायब हो गया ?

बिहार के बारे में एक बात तो हम सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि यहांं स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर है, इसके बावजूद इतनी संक्रामक बीमारी पांव-पसार पाने में नाकाम है. बिहार में अब तक कोरोना के मात्र ढाई लाख केस आए है, इसमें से 95.6 फीसदी लोग ठीक भी हो गए है. बिहार में कोरोना संक्रमण से हुई मौतों का आंकड़ा भी काफी कम है. यहां अब तक 1000 के आसपास लोगों की मौत इस संक्रमण की वजह से हुई है. इसका मतलब यह है कि यहां प्रत्येक 200 संक्रमित मरीजों में से सिर्फ 1 व्यक्ति की मौत हो रही है. इतने लोगों पर मौतों का राष्ट्रीय औसत 1.5 प्रतिशत है.

तो इसके क्या कारण है और यह सिर्फ बिहार की ही बात नहीं है ? अभी तक हम ये देख रहे हैं कि ये बीमारी या विकसित देशों में तेजी से फैली है या विकासशील देशों में जो उन जगहों पर जो वहां व्यापारिक गतिविधियों के केंद्र रहे हैं, जैसे भारत में मुम्बई, दिल्ली, पुणे और इंदौर जैसे शहर.

अफ्रीका जैसे महाद्वीप में जहांं बड़े-बड़े देश हैं, वहांं ये बीमारी नहीं फैली. वहांं मौतें भी बहुत कम है. अफ्रीका के बारे में तर्क दिया जाता है कि वहांं आबादी दूर-दूर बसी है, लेकिन बिहार में तो ऐसा नहीं है. बिहार भारत का दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है. बिहार की आबादी इस वक्त 12.5 करोड़ के आसपास है. प्रत्येक 10 लाख लोगों में से 1800 लोग कोरोना संक्रमित हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 1 मिलियन लोगों में 6,000 लोगों के कोरोना संक्रमित होने का है.

कोई बताएंं कि ऐसा क्यों है कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जहां बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं, वही कोरोना के सबसे ज्यादा मरीज आए हैं. और जहांं बदतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, वहांं यह बीमारी लगभग एग्जिस्ट ही नही कर रही ?

हम लोग कुछ बातों को बहुत जल्दी भूल जाते हैं. आपको याद नहीं होगा इसलिए याद दिला देता हूंं कुछ महीनों पहले जब सरकार प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य में भेज दिए जाने से इनकार कर रही तो तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया था. सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने जवाब दिया था कि इन मजदूरों के कोरोना संक्रमित होने की बहुत ज्यादा संभावना है, इसलिए इनका अपने अपने गांवों में लौटना सही नहीं होगा.

इस दौरान दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से बड़ी संख्या में मजदूर और दिहाड़ी कामगार बिहार और उत्तर प्रदेश स्थित अपने गांवों की ओर पैदल ही निकल पड़े थे. इस अप्रत्याशित स्थिति का देश के किसी भी व्यक्ति को अंदाजा नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि इनको रोका नहीं जा सकता.

देश भर में लागू लॉकडाउन की स्थिति में झुंड बनाकर चल रहे इन मेहनतकशों की तस्वीरों ने देश के सामने कुछ गहरे सामाजिक-आर्थिक सवाल तो खड़े किये ही थे, साथ ही पब्लिक हेल्थ की दृष्टि से यह पलायन बेहद खतरनाक बताया जा रहा था !

उस दौरान बुद्धीजीवी वर्ग यही बात कर रहा था कि एक बार यह मजदूर अपने गांंव पहुंचे तो महामारी उत्तर प्रदेश और बिहार के सुदूर गांवों तक पहुंच जाएगी और तबाही मच जाएगी. बड़ी संख्या में कोरोना मरीज सामने आएंगे और बिहार की चरमराई हुई स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी, लाखों मौतें होगी !

शुरुआत के महीनो में सरकार ने इन मजदूरों की कोई मदद नहीं की, फिर भी जैसे-तैसे किसी से मदद मांग कर, कई दिनों तक पैदल चलकर ये लोग अपने अपने गांंव पहुंच गए.

बिहार में शुरुआत में कोरोना टेस्टिंग की कोई व्यवस्था नही थी, फिर धीरे धीरे इसे बढ़ाया गया और चुनाव के नजदीक आते आते टेस्टिंग को कम कर दिया गया. नतीजा यह निकला कि कोरोना मरीजों की संख्या दूसरे राज्यों की अपेक्षा वहांं बेहद कम हो गयी. आज बिहार राज्य में कोरोना संक्रमित लोगों का रिकवरी रेट 94.36 फीसदी पहुंच गया है, यह सभी राज्यों में शायद बेस्ट रिकवरी रेट है.

अब आते हैं आज की स्थिति पर. मैं आज तक चैनल पर बिहार चुनाव से सम्बंधित बेगूसराय की ग्राउंड रिपोर्ट देख रहा था. मैं आश्चर्यचकित था देखकर कि वहां जनजीवन अपनी वही पुरानी रफ्तार पर है. कैमरे को जहांं-जहांं घुमाया जा रहा था, जहांं तक नजर जा रही थी एक व्यक्ति ने भी मास्क नहीं पहना हुआ था. ऐसा लगा कि बिहार में जैसे कोरोना एग्जिस्ट ही नहीं कर रहा है.

अब आप ये बताइये कि लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर बिहार वापस पहुंचे. जैसा सरकार ने कहा था कि हर 10 में से तीन मजदूर कोरोना संक्रमित है तो कोरोना बिहार में दिख क्यों नहीं रहा ?

कोरोना के सारे मॉडल फेल है सिर्फ बिहार मॉडल ही सफल है. अब तक कोरोना के भीलवाड़ा मॉडल, धारावी मॉडल, केरल मॉडल, आगरा मॉडल की चर्चा होती आयी हैं लेकिन अभी तक इन सबसे अधिक सफल बिहार मॉडल ही सफल रहा है.

बिहार का मॉडल ‘हकूना मटाटा’ मॉडल है, जिसका मतलब ये कि आप सारी चिंताओं और परेशानियों को पोटली में बांधकर एक तरफ पटक दें और मस्त रहे.

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ROHIT SHARMA

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