जिला प्रशासन की ओर से स्वास्थ्य समिति के सौजन्य से जिला अस्पताल के दीवार पर टंगा यह हॉर्डिंग यह बता रहा है कि ‘अगर आप स्वस्थ हैं तो आपको मास्क पहनने की आवश्यकता नहीं है.’ वाबजूद इसके आज कोरोना वायरस के बचाव के लिए मास्क पहनने को अनिवार्य बनाया जा रहा है. मास्क न पहनने वाले लोगों से पुलिस चलान काट रहा है और पैसा बनाने का एक माध्यम बना दिया गया है.
एबीपी न्यूज के अनुसार देहरादून शहर के भीतर ही 6 हजार लोगों के चालान हुए हैं. इतना ही नहीं मास्क न पहनने वालों के खिलाफ कार्रवाई के साथ-साथ सोशल डिस्टेसिंग का पालन नहीं होने पर मुकदमे भी पंजीकृत किए जा रहे हैं. एसपी सिटी श्वेता चौबे ने जानकारी देते हुए बताया कि सभी थाना प्रभारियों को निर्देश दिए गए हैं कि एमएचए की गाइडलाइन और राज्य सरकार की तरफ से जो नियम बताए गए हैं उनका पालन कराया जाए।
यह केवल एक उदाहरण हैंं, असल समूचे देश में इस तरह की कबायद की जा रही है और लॉकडाऊन से अपने आय को लगभग बंद कर चुके लोगों से पैसे की उगाही की जा रही है. जबकि उपर्युक्त हॉर्डिंग साफ कहता है स्वस्थ व्यक्ति को मास्क पहनने की जरूरत नहीं है, वहीं 5 जून को WHO का ये कहना कि मास्क आपको COVID से नहीं बचा सकता और हमारे यहां भारत में हमारे प्रधानमंत्री का ये कहना की मास्क / गमछा पहनिए, साफ़ दर्शाता है कि ऊंट किस करवट बैठा हुआ है.
उपर्युक्त हॉर्डिंग मास्क के उपयोग के तरीके के बारे में साफ तौर पर बताता है कि –
- मास्क का उपयोग केवल कोरोनावायरस से संक्रमित या संदेहास्पद व्यक्ति ही करें.
- अगर आप संक्रमित हैं तो मास्क को नाक, मुंह एवं टोढ़ी तक ढंककर रखें.
- स्वास्थ्य संस्थानों में संचालित आइसोलेशन वार्ड, एवं चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पतालों के सैंपल कलेक्शन केन्द्र में कार्यरत कर्मी मास्क का अवश्य उपयोग करे.
- एक मास्क का उपयोग अधिकतम 6-8 घंटे तक ही करें.
- मास्क के उपयोग के उपरांत मास्क को घर में बिल्कुल ही न रखें क्योंकि उपयोग किये गये मास्क के समुचित निपटान न होने से संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है.
- मास्क को छूने के पश्चात 70% अल्कोहल युक्त सेनिटाइजर से अथवा साबुन से बहते हुए पानी में अच्छी तरीके हाथों को रगड़कर साफ करें.
एक मास्क के उपयोग पर इतनी सावधानियां और जानकारियां खुद सरकार द्वारा ही जारी करने के बाद भी मास्क को हर आम लोगों को प्रयोग के लिए बाध्य किया जा रहा है, जिससे मास्क, सेनिटाइजर का विशाल बाजार खड़ा हो गया, जो आम आदमी के औकात से बाहर हो गया है, वो भी तब जब लॉकडाऊन के कारण उसके आमदनी के माध्यम बंद हो गया है.
कोरोना के नाम पर साजिश का पर्दाफाश करते हुए सोशल मीडिया पर लिखते हुए सुमन लिखते हैं :
विज्ञान, विश्लेषण और इंसानी समझ को जिस तरह ताक़ पर रखा जा रहा है, ये दुनिया को किस तरफ़ ले जा रहा है इसे समझना कोई मुश्किल बात नहीं है.
40 सालों से दुनिया भर के लोग जो HIV AIDS के षड्यंत्र को ठीक से समझ नहीं पाए, उनसे ये COVID का षड़यंत्र न समझा जाएगा क्योंंकि मौत का डर दोनों में जोड़ा जा चुका है.
जिन टेस्टों की बिना पर COVID का पता लगाकर लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है, उनसे कभी भी किसी भी वायरस की पहचान नहीं की जा सकती.
PCR टेस्ट, जिससे आज लोगों को COVID पॉजीटिव बताया जा रहा है, उस टेस्ट के बनाने वाले वैज्ञानिक ने भी कहा था मेरा टेस्ट वायरस का पता नहीं लगा सकता, ये टेस्ट नहीं एक टैक्निकल उपकरण है जिसके प्रयोग से हम जिनेटिक मेटिरियल को एंप्लिफ़ाई करके अनगिनत काॅपियां करके बढ़ा बना देता है, जिससे कि हमें उसके अध्य्यन में मदद मिले.
लेकिन आज पूरी दुनिया में जिस प्रकार PCR जो कि एक शोध उपकरण है, उसके नाम से भ्रमित करके डर का जो माहौल बना दिया गया है, वो कितना घातक साबित हो रहा है ये तो सबको दिखाई दे ही रहा है.
क्या सोचते हैं षड्यंत्रकारी लोग कि सारे विश्व ने अपनी अक्ल को किसी कपड़े में बांधकर पेड़ पर फेंक दिया है ?? मैं बता देना चाहता हूं बिल्कुल भी नहीं. बहुत लोग हैं जो वैज्ञानिक आधार पर इन ग़लत दिशानिर्देशों को चेलेंज कर रहे हैं.
इस षड्यंत्र का ताज़ा उदाहरण हैं तथाकथित महानायक इंकलाब श्रीवास्तव ऊर्फ अमिताभ बच्चन जो ख़ुद ही COVID की घोषणा करके अस्पताल चल दिए और आम जनता को फ़िर से डर के माहौल में छोड़ दिया हालांकि उन्हें किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं है, अभी तक तीन दिन बाद जो रिपोर्ट आई है सामने.
इसके साथ-साथ COVID षड्यंत्र का जो एक और पहलू का पर्दाफाश हो रहा है कि जैसे हर वैश्विक स्वास्थ्य संस्थान WHO से लेकर यहां अस्पतालों के डाक्टर और मीडिया में भी यही बातें रिपोर्ट की जा रही हैं कि पहले से बिमारियों के चलते जिन लोगों को COVID अपनी चपेट में ले रहा है, उनकी मौत जल्दी हो जा रही है और वैसे लोगों के लिए ये काफ़ी ख़तरनाक होता जा रहा है.
लेकिन दोस्तों आप देख ही सकते हैं अमिताभ बच्चन जो कि 78 वर्ष के हैं, उनका लिवर मात्र 25% काम करता है, अस्थमा के पुराने मरीज़ हैं,, आंतों की बिमारी से पीड़ित हैं, दो तीन और पुरानी समस्याओं से ग्रस्त हैं परंतु उनके स्वास्थ्य की अच्छी खबरें आ रही हैं.
बहुत अच्छी बात है. वो जैसे हट्टे कट्टे घर से गए हैं वैसे ही वापिस आएं ताकि लोगों को ये बात भी मालूम चल सके कि COVID नाम की कोई चीज़ इस दुनिया में नहीं है. यदि होती तो 78 साल के 5-5 6-6 बिमारियों से पीड़ित व्यक्ति के ठीक हो जाने का कोई चांस नहीं होता.
विदित हो कि ‘सदी का महानायक’ का फर्जी उपनाम धारण किये अमिताभ बच्चन पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है. एनडीटीवी के पत्रकार और मैग्सेसे अवार्ड विजेता रविश कुमार 2010 में अपने ब्लॉग में अमिताभ बच्चन को ‘सदी का महानालायक’ बताते हुए लिखते हैं :
अमिताभ बच्चन पर्दे के बाहर भी कलाकार का ही जीवन जीते हैं. पैसा दो और कुछ भी करा लो. कांग्रेस में राजीव गांधी की डुग्गी बजाने के बाद छोटे भाई अमर सिंह के साथ सैफई तक जाकर नाच आए. मुलायम सरकार ने पैसे दिये तो गाने लगे यूपी में हैं दम क्योंकि जुर्म यहां है कम.
शायद यही वो कलाकार है जिससे सिगरेट कंपनियां पैसे देकर बुलवा सकती हैं कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है. अमिताभ बोल भी देंगे कि भई पैसे मिले हैं, हम कलाकार हैं और इस विज्ञापन को भी किरदार समझ कर कर दिया है.
अमिताभ अक्सर कहते हैं कि वे राजनीति से दूर हैं. लेकिन मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह जैसे घाघ राजनेताओं की संगत में खूब जम कर रहे. अपनी पत्नी जया बच्चन को राज्य सभा में भेजा. अब जया भी अमर सिंह के साथ इस्तीफा नहीं दे रही हैं.
दरअसल वे कभी सियासत की संगत से दूर ही नहीं रहे. कभी किसान बन कर ज़मीन लेने चले जाने का आरोप लगता है तो कभी ब्रांड दूत बन कर एक प्रदेश की जनता का सेवक होने का भाव जगाते हैं.
अमिताभ इसीलिए एक मामूली कलाकार हैं. पर्दे पर मिली शोहरत की हर कीमत वसूल लेना चाहते होंगे. पर्दे पर पैसे की ताकत से लड़ने वाले किरदारों में ढल कर यह कलाकार महानायक बना लेकिन असली ज़िंदगी में पैसे की ताकत के आगे नतमस्तक होकर महानालायक लगता है.
यह बिल्कुल संभव है कि कोरोना के नाम पर बीमारी का बहाना काढ़कर बैठे इस धनलोलुप और पनामा पेपर के घोटालेबाज अमिताभ बच्चन लोगों के मन में कम होते कोरोना के डर को फिर से कायम करने के लिए, कोरोना के साजिशकर्ताओं से करोड़ों रुपए लेकर पूरा खानदान समेत बीमारी का बहाना बनाकर विज्ञापन किया हो. पैसों की यह डील कितने की होगी, इस पर केवल कयास ही लगाये जा सकते हैं, सच्चाई तो शायद कभी पता ही न चले.
बहरहाल सुमन के शब्दों में कहें तो, ‘आख़िर में इतना ही कहना चाहूंगा कि बिमारी वही होती है जो तकलीफ़ दे और हम अस्पताल पहुंच जाएं, वो नहीं कि अस्पताल पहुंच कर सोचा जाए कि यार कोई लक्षण क्यूं नहीं आए ? इसलिए असली वाले विज्ञान को आधार बनाईए, न कि बेवकूफाना दिशानिर्देशों को.’
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