Home गेस्ट ब्लॉग चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की हत्या पर पुण्य प्रसून वाजपेयी

चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की हत्या पर पुण्य प्रसून वाजपेयी

11 second read
0
0
1,139

[ चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद भारत के क्रांतिकारी इतिहास के एक महान क्रांतिकारी बुद्धिजीवी थे. सरकारी अमलों द्वारा ठंढ़े दिमाग की से गई उनकी हत्या यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि क्यों भारत सरकार शिक्षा को बजट लगातार कम कर रही है, और देशवासियों को मूर्ख बनाये रखने के लिए उन तमाम बुद्धिजीवियों की हत्या कर रही है, जो देश की जनता को शिक्षित करने, उसमें जागृति लाने के लिए थोड़ा भी प्रयास करता नजर आता है.

भारत की सामंती मिजाज यह सरकार शिक्षा और शिक्षण को एक खास तबके तक ही सीमित रखना चाहती है, ताकि देश की विशाल आबादी पढ़-लिख कर इस काबिल ही न हो सके कि वह सरकार से सवाल पूछने के लिए उठ खड़े हो सके. हम चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद जैसे क्रांतिकारी बुद्धिजीवियों की हत्या को इसी तौर पर देखते हैं. इसके साथ पेरियार, लंकेश आदि की सरकारी हत्या को भी जोड़ते हैं.

पाठकों के लिए चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद के द्वारा लिखित विभिन्न आलेखों के संग्रह का पीडीएफ प्रति यहां प्रस्तुत कर रहे हैं. हलांकि उनका यह आलेख अंग्रेजी में लिखा गया है, जिसका हिन्दी अनुवाद अभी नहीं किया जा सका है.

चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की हत्या पर पुण्य प्रसून वाजपेयी का आलेख प्रस्तुत है. हालांकि यह लेख अब काफी पुरानी हो चुकी है, पर आजाद से जुड़ी तमाम यादें व रचना हमेशा ही हमारे देश और समाज में प्रासांगिक बनें रहेंगे. ]

चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की हत्या पर पुण्य प्रसून वाजपेयी

नागपुर का आंनद होटल. सुबह का नाश्ता करने सीताबर्डी के इसी होटल में किसी ने आजाद को बुलाया था. यहीं पर आजाद के साथ हेम पांडे भी था. और जिस तीसरे शख्स ने इस होटल को सुबह बातचीत और नाश्ते के लिये चुना, वह जानता था कि इस गली से निकलने के सिर्फ दो ही रास्ते हैं. करीब दो सौ मीटर की इस सड़क के बीचोंबीच ही यह होटल है और होटल में कौन जा रहा है कौन निकल रहा है, इस पर गली के दोनों सिरे से ही नज़र रखी जा सकती है. यानी होटल में घुसते-निकलते व्यक्ति को अंदाज ही नहीं हो सकता कि उस पर कोई नज़र रखे हुये है. सुबह के वक्त इस होटल के अलावा अगर कोई दुकान खुली रहती है, तो वह मैगजीन कॉर्नर है.

अब सवाल है कि वह तीसरा व्यक्ति कौन है, जिसने आजाद को बुलाया. आजाद के साथ नाश्ता किया और उसके बाद वह गायब हो गया. और सीताबर्डी से डेढ़ किलोमीटर दूर स्टेशन रोड पर स्थित बस स्टैंड से बस पकड़कर आजाद को गढ़चिरोली रवाना होना था. वहीं इस सीताबर्डी सड़क का मुहाना सीधे उस वर्धा रोड से मिलता है, जो सड़क सीधे नागपुर के बाहर से ही वर्धा होते हुये चन्द्रपुर, गढ़चिरोली होते हुये आंध्र प्रदेश की सीमा में घुस जाती है. और जिस गाड़ी में आजाद को ले जाया गया, वह गाड़ी कार थी. यानी सरकारी पुलिस जीप नहीं थी. सबकुछ योजना के तहत हुआ.

लेकिन तीसरा व्यक्ति कौन था और उस पर अगर आजाद को भरोसा था तो फिर वह व्यक्ति उसके बाद से गायब क्यों है ? यह आजाद की मौत के बाद नागपुर में तैनात नक्सल विरोधी पुलिस (एंटी नक्सल आपरेशन) की अपनी रिपोर्ट है. अपनी पहल पर नागपुर के एंटी नक्सल ऑपरेशन की यह रिपोर्ट कई मायने में महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट तैयार करने का मतलब है कि समूचे रेड कारिडोर में सिर्फ नागपुर ही वह जगह है, जहां एडीजी रैंक के आईपीएस की तैनाती एंटी नक्सल ऑपरेशन के तहत है, और वही जांच करा रहे है कि नागपुर से आजाद को बिना उनकी जानकारी के कैसे उठा लिया गया. यानी एंटी नक्सल आपरेशन भी मान रहा है कि आजाद को नागपुर से आंध्रप्रदेश के अदिलाबाद में ले जाया गया. रिपोर्ट के अंश यह भी संकेत दे रहे हैं कि हाल के दौर में आंध्र प्रदेश की एसआईबी महाराष्ट्र पुलिस या एंटी नक्सल ऑपरेशन के अधिकारियों को जानकारी दिये बगैर दो दर्जन से ज्यादा ज्यादा लोगों को उठा चुकी है.

इससे पहले महाराष्ट्र के इस एंटी नक्सल आपरेशन ने कभी आंध्र प्रदेश पुलिस की ऐसी कारर्वाइयों के लेकर कोई पहल की नहीं. लेकिन आजाद के एनकाउंटर के बाद जब राजनीतिक तौर पर इसे फर्जी बताते हुये इसकी जांच की मांग की जा रही है तो एंटी नक्सल ऑपरेशन के सामने यह भी सवाल खड़ा हुआ है कि इसमें उसकी भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े हो सकते हैं. इसलिये एक अपनी रिपोर्ट तैयार की गयी है. महाराष्ट्र में इस एंटी नक्सल आपरेशन का महत्व क्या है, इसे इस रुप में भी समझा जा सकता है कि यहां एडीजी रैंक के आईपीएस की तैनाती नब्बे के दशक से है. नब्बे के दशक में जब आंध्र में सक्रिय नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप ने आंध्र की सीमा से सटे महाराष्ट्र के विदर्भ में पैर पसारे तो उस दौर में महाराष्ट्र सरकार को लगा कि नक्सल अभियान को फैलने से रोकने के लिये एक आईपीएस की तैनाती अलग से होनी चाहिये और 1990 में पहले भंडारा इसका केन्द्र बना. क्योंकि तब नक्सलियों ने सिर्फ चन्द्रपुर, गढ़चिरोली और भंडारा में पैर पसारे थे. लेकिन 1992 में नक्सल विरोधी अभियान के कमिश्नर का हेडक्वाटर नागपुर बनाया गया. लेकिन पिछले नौ महीने छोड़ दें तो 18 साल में ऐसा कभी मौका नहीं आया कि नागपुर में तैनात नक्सल विरोधी अभियान के पुलिसकर्मियों की जानकारी के बगैर कोई माओवादी आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ या झारखंड पुलिस के घेरे में आया हो. या फिर दूसरे राज्य की पुलिस ने बिना महाराष्ट्र की पुलिस के सहयोग के महाराष्ट्र में अपने काम को अंजाम दिया हो.

Azad_Book

रिपोर्ट बताती है कि नागपुर से आजाद को पकड़ने से लेकर उसके एनकाउंटर की खबर आने के बाद तक महाराष्ट्र की नक्सल विंग को कोई जानकारी नहीं थी कि आंध्र प्रदेश एसआईबी कैसे महाराष्ट्र में बिना जानकारी के घुसी. कैसे नागपुर में आकर उसने अपने ऑपरेशन को अंजाम दिया. कैसे महाराष्ट्र के चार जिलों को पार कर आंध्र के अदिलाबाद तक आजाद को बिना जानकारी ले जाया गया. रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि आंध्र एसआईबी के अधिकारी 27 जून को ही नागपुर आ गये थे. यह दिन रविवार का था. यानी उन्हें आजाद के नागपुर पहुंचने की जानकारी पहले से थी. और इसके लिये पहले से व्यूह रचना की गयी. जितनी गाड़ियों ने महाराष्ट्र की सीमा पार की और नागपुर से आंध्र की सीमा पर कदम रखने से पहले दो जगहों पर टोल टैक्स दिया, उसमें आंध्र की किसी पुलिस जीप के नंबर का कोई जिक्र नहीं है. अन्य गाड़ियों को लेकर जांच रिपोर्ट ने सिर्फ तीन वाहनों पर संदेह जाहिर किया है, जिसमें टाटा इंडिका कार, बुलेरो और टाटा सूमो हैं. लेकिन इन गाडियां के नंबरों की वैधता पर जांच रिपोर्ट में संदेह किया गया है. जो रिपोर्ट महाराष्ट्र के गढचिरोली से आयी है, उसमें इन तीनों गाड़ियों के फर्जी नंबर होने के संकेत भी दिये गये हैं. यानी संकेत यह भी है कि जिन तीन गाड़ियों के नंबर प्लेट संदेहपूर्ण पाये गये, उन्हीं को जांच के दायरे में लाया गया है.

लेकिन अब एंटी नक्सल ऑपरेशन के सामने नया सवाल यह है कि दस्तावेजों में जब इससे पहले कभी भी आंध्र प्रदेश की पुलिस महाराष्ट्र में घुसने से पहले अपने आपरेशन की जानकारी देती रही है तो इस बार उसने क्यों नही दी. हालांकि सीमावर्ती जिले गढ़चिरोली या चन्द्रपुर में नक्सल विरोधी कार्रवाई को अंजाम देने के लिय लिये आंध्र पुलिस ने स्थानीय स्तर पर जानकारी देकर ही काम किया है. मगर चार जिलों के पार नागपुर आकर अपनी कार्रवाई को अंजाम देने के बावजूद नागपुर के नक्सल ऑपरेशन के हेडक्वाटर को अगर इसकी जानकारी नहीं दी गयी तो क्या यह समझ-बूझ कर किसी निर्देश के तहत किया गया या फिर इसकी जानकारी ऊपरी अधिकारियों को थी और नागपुर में ही एंटी नक्सल आपरेशन को इसकी जानकारी नहीं दी गयी.

महत्वपूर्ण यह भी है कि पिछले एक-डेढ़ साल में जब से नक्सल गतिविधियों ने सीधे सरकार को चुनौती देनी शुरु की है, इसी दौर में नागपुर के एंटी नक्सल अभियान का कद छोटा किया गया है. अब एडीजी की जगह आईजी रैंक के आईपीएस की अगुवाई में डेढ़ साल से एंटी नक्सल ऑपरेशन काम कर रहा है. लेकिन आजाद के एनकाउंटर में अपनी चूक की जांच कर रहे महाराष्ट्र की एंटी-नक्सल ऑपरेशन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस टीम को अदिलाबाद के जंगलों में अपनी जांच को अंजाम देने जाने नहीं दिया गया. जबकि आंध्रप्रदेश की मानवाधिकार टीम नागपुर-अदिलाबाद का दौरा कर अपनी रिपोर्ट तैयार कर चुकी है. इस पर एंटी नक्सल ऑपरेशन की जांच रिपोर्ट में टिप्पणी भी है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में सरकारी तौर पर इजाजत ले कर जाने को मंजूरी नहीं मिलती लेकिन बिना इजाजत कोई भी कहीं जा कर किसी भी कार्रवाई को अंजाम दे सकता है. लेकिन इस रिपोर्ट का सबसे संवेदनशील पहलू यह है कि इसमें आजाद के इनकाउंटर को आंध्रप्रदेश की जगह महाराष्ट्र सीमा में ही अंजाम देने की बात कही गयी है. क्योंकि अदिलाबाद सीमा चेकपोस्ट पर तैनात फारेस्ट विभाग के एक कर्मचारी ने महाराष्ट्र एंटी-नक्सल ऑपरेशन को इसकी जानकारी दी है कि आंध्र के एसआईबी टीम की आवाजाही उसने उसी दौर में जरुर देखी, जिस दौर में आजाद के एनकाउंटर की खबर आयी.

लेकिन उसने गाड़ियों की आवाजाही में कभी किसी नये चेहरे को नहीं देखा. क्योंकि आजाद का चेहरा तो भी आंध्रवासी का है, मगर उत्तराखंड के पत्रकार हेमचंद पांडे का चेहरा किसी भी आंध्रवासी से बिलकुल अलग था और एकदम नया चेहरा आंध्र पुलिस के साथ देखा नहीं गया. गौरतलब है कि आंध्र-महाराष्ट्र पर पुलिस जांच दल या किसी सरकारी अधिकारी की गाड़ियों की चैकिंग नहीं की जाती है इसलिये रिपोर्ट इस बात के भी संकेत देती है कि सरकारी अधिकारियों की गाड़ी के अंदर अगर कोई मरा हुआ व्यक्ति भी हो तो उसके बारे में भी बाहर खड़े व्यक्ति को पता नहीं चल सकता है.

जाहिर है यह रिपोर्ट अपने बचाव के लिये पहले से ही महाराष्ट्र के एंटी नक्सल आपरेशन ने अपने डिपार्टमेंट के लिये किया है लेकिन इस दौर में आंध्रप्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं ने अदिलाबाद के पहाड़ी-जंगलों के इर्द-गिर्द गांवों को टटोल कर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें एनकाउंटर के कोई तथ्य यहां नहीं मिले हैं. यह कहा जा सकता है कि अगर अदिलाबाद में एनकाउंटर के चिन्ह नहीं मिले तो यह फर्जी रहा होगा. लेकिन आंध्र पुलिस की मानें तो जो मानवाधिकार कार्यकर्त्ता अदिलाबाद के जंगलों में पहुंचे वह माओवादियो के हिमायती ही है. लेकिन समझना यह भी होगा कि अगर महाराष्ट्र की एंटी नक्सल ऑपरेशन को अपनी डिपार्टमेंट इन्क्वारी के लिये अदिलाबाद के जंगलों में जाने की इजाजत नहीं मिलती लेकिन उसकी रिपोर्ट नागपुर से आजाद के तार जुड़े होने की पुष्टि करती है तो फिर एनकाउंटर सही है या नहीं, यह कोई बहुत अबूझ सवाल नहीं है.

जाहिर है ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि अगर चेरूकुरी राजकुमार उर्फ आजाद के एनकाउंटर को लेकर माओवादियों से लेकर सोशल एक्टीविस्ट स्वामी अग्निवेश और मेघा पाटकर से लेकर केन्द्रीय मंत्री ममता बनर्जी अगर जांच की मांग कर रही हैं, तो इसके पीछे सिर्फ सरकार से बातचीत को रोकने की मंशा के लिये एनकाउंटर की थ्योरी भर नहीं है. बल्कि महाराष्ट्र के एंटी नक्सल ऑपरेशन की जांच में भी इसके खुले संकेत है कि माओवादी अब अपना आधार पूरी तरह बंगाल-झारखंड के सीमावर्ती इलाके में शिफ्ट कर रहे हैं. और इसकी शुरुआत 2004 में एमसीसी के साथ पीडब्ल्युजी के गठन से शुरु हुई थी.

इसीलिये सरकार से बातचीत के दिशा-निर्देश भी सीपीआई माओवादी के महासचिव के बदले पोलित व्यूरो सदस्य किशनजी के जरिये आ रहे हैं. जबकि इससे पहले 2002 और 2004 में जब आंध्र सरकार से पीपुल्स वार ने बातचीत की थी तो उसके दिशा-निर्देश बकायदा पार्टी महासचिव के जरिए जारी किये गये थे. लेकिन नक्सल संगठनों में यह बदलाव आंध्र पुलिस के लिये एक बड़ा झटका है क्योकि बीते बीस बरस की कहानी नक्सलियों को लेकर आंध्र में यही रही है कि राज्य के बजट के बराबर केन्द्र और राज्य से उन्हें नक्सलवाद को खत्म करने के लिये आर्थिक मदद मुहैया करायी जाती रही है. और नागपुर में जिस तीसरे व्यक्ति का जिक्र रिपोर्ट में किया गया है, वह भी आंध्र प्रदेश का ही था, इसके संकेत एलआईबी दे रही है.

  • Read Also –

आन्दोलन के बीच से निकलता जनगीत
गढ़चिरौली एन्काउंटर: आदिवासियों के नरसंहार पर पुलिसिया जश्न
क्रूर शासकीय हिंसा और बर्बरता पर माओवादियों का सवाल
जनवादी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या से उठते सवाल

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

  • अफसोस है इस दोगलेपन पर

    अलीगढ़ वनाम लखनऊ लखनऊ के हत्यारे पुलिस वालों का कहना है उन्होंने आत्मरक्षा में गोली चलाई जि…
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…