Home गेस्ट ब्लॉग बुलडोजर चलाना आपसे लोकतंत्र छीन लेने की शुरुआती प्रक्रिया है

बुलडोजर चलाना आपसे लोकतंत्र छीन लेने की शुरुआती प्रक्रिया है

4 second read
0
0
263
बुलडोजर चलाना आपसे लोकतंत्र छीन लेने की शुरुआती प्रक्रिया है
बुलडोजर चलाना आपसे लोकतंत्र छीन लेने की शुरुआती प्रक्रिया है
कृष्ण कांत

किसी आरोपी पर बुलडोजर चलाना न्याय करने का क्रूर, अत्याचारी, बर्बर और मध्ययुगीन तरीका है. मध्य प्रदेश के बड़वानी में 10 अप्रैल को सांप्रदायिक झड़प, दंगा और आगजनी हुई. पुलिस ने तीन बदमाशों के खिलाफ FIR दर्ज की. पुलिस ने इनकी पहचान शहबाज़, फकरू और रऊफ के रूप में की. कहा गया कि इन तीनों ने दंगों के दौरान दो मोटरसाइकिलों को आग लगाई है. इनमें से एक शहबाज का घर भी तोड़ दिया गया. फिर पाया गया कि ये तीनों पांच मार्च से हत्या के प्रयास के मामले में जेल में बंद हैं.

पुलिस से पूछा गया कि जेल में बंद अपराधी बिना जेल से छूटे दंगा कैसे कर गए ? पुलिस ने कहा, जांच करके बताएंगे. मजे की बात कि इन तीनों के खिलाफ दोनों मामले उसी थाने में दर्ज हैं. यह सही है कि ये लड़के पहले से अपराध में लिप्त हैं और जेल में भी बंद हैं लेकिन बुलडोजर न्याय के ​तहत क्या हुआ ? पुलिस को यह भी नहीं मालूम है कि वह खुद उन्हें जेल में डाल चुकी है, लेकिन जाकर घर गिरा दिया.

बिना जांच के, बिना अदालती प्रक्रिया के, बिना कानून का पालन किए अगर सुल्तानों की तरह न्याय किया जाएगा तो ऐसा करने वाले चौपट राजाओं की अंधेर नगरी में कोई सुरक्षित नहीं रहेगा. कल आप पर किसी ने दुर्भावनावश आरोप लगा दिया, आपका घर ढहा दिया, आपका एनकाउंटर हो गया और बाद में पता चलेगा कि आपको जिसकी सजा मिली, वह आपने किया ही नहीं था.

दुनिया भर में लोकतांत्रिक न्याय व्यवस्था सदियों की विकास यात्रा का परिणाम है जो कहती है कि 100 अपराधी छूट जाएं, लेकिन एक निर्दोष व्यक्ति को सजा नहीं मिलनी चाहिए. मौजूदा भाजपा सरकारें इस सार्वभौमिक सिद्धांत को ताक पर रखकर बेतहाशा दमन करना चाहती हैं. यह इस देश के हर नागरिक के लिए बेहद खतरनाक है.

बुलडोजर किसी का घर नहीं, संविधान की उस इमारत को ढहा रहा है जिसके दम पर यह लोकतंत्र 70 सालों से निर्बाध चल रहा है. यह न सिर्फ अदालतों की तौहीन है, बल्कि एक तरह से न्याय व्यवस्था को खत्म कर देने जैसा अपराध है जिसके मूल में गुंडई है.

सीएए-विरोधी आंदोलन के समय ही मैंने सवाल किया था कि सरकार किस अधिकार से किसी का घर गिरा सकती है ? सरकार हो या चुना हुआ नेता, उसे किसी को दंड देने का अधिकार नहीं है. अपराधियों और गुंडों के केस में अगर वे लंबे समय तक अदालत में हाजिर नहीं होते हैं तो उनकी संपत्ति अदालती आदेश पर कुर्क की जाती है, नष्ट फिर भी नहीं जाती. यह अधिकार भी सिर्फ अदालत को है. अदालत वही संपत्ति कुर्क करने का आदेश देती है जो अपराधी के नाम हो. बाप का घर नहीं गिरवाती.

मान लिया कि आपके ऊपर कोई आरोप लगा तो बिना जांच हुए, बिना अदालत के निर्णय दिए आपको दोषी कैसे मान लिया जाएगा ? यह कौन तय करेगा कि आप अपराधी हैं ? अगर आप अपराधी हैं तो उसका दंड आपका घर तबाह करना कैसे हुआ ? क्या घर मे सिर्फ वही रहता है जिसके ऊपर आरोप लगा ? कथित अपराधी के मां-बाप, भाई-बहन, पत्नी-बच्चे भी हो सकते हैं ? घर तो उनका भी है ! आप किसी विशेष परिस्थिति में ही किसी का घर गिरा सकते हैं.

यह बुलडोजर न्याय न सिर्फ मानवाधिकारों का उल्लंघन है बल्कि अदालत और कानून का मजाक बनाना है. बुलडोजर न्याय मध्ययुगीन न्याय का तरीका है जिसके तहत राजा किसी पर नाराज हुआ तो तुरंत हाथी से कुचलने या सिर काट लेने का आदेश दे दिया. भारत का कोई जनप्रतिनिधि मध्ययुगीन सुल्तान बनने की कोशिश न करे. सुल्तानों और बादशाहों को बहुत पहले दफनाया जा चुका है. नेताओं को लोकतंत्र का न्यूनतम सबक सीख लेना चाहिए.

बुलडोजर न्याय अराजकता का राष्ट्रीय प्रोजेक्ट है. अगर आप अब तक बुलडोजर न्याय देखकर खुश हैं तो खुश मत होइए. यह आपका लोकतंत्र आपसे छीन लेने की शुरुआती प्रक्रिया है. देश बुलडोजर से नहीं, कानून के शासन से चलेगा.

गरीबों को सताकर हिंदू विश्वगुरु कैसे बनेंगे ?

कर्नाटक के एक हनुमान मंदिर के सामने कुछ मुस्लिम ठेले पर फल बेच रहे थे. हिंदूवादी उपद्रवियों को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने ठेले पलट दिए, ​फल बर्बाद कर दिए, विक्रेताओं से बदसलूकी की. यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ. पुलिस देखती रही. वे फल विक्रेता हिंदुवादियों के लिए कौन-सा खतरा पेश कर रहे थे ? अगर आप हिंदू हैं तो सोचिए कि इस अधर्म से आपको, आपकी आस्था को, आपके धर्म को, आपके देवता को क्या फायदा हुआ होगा ? क्या हिंदू होने का धर्म यही है कि किसी गैर धर्म वाले को बिना कारण सताया जाए ?

कर्नाटक आजकल सांप्रदायिकता की नई प्रयोगशाला है. कभी हिजाब, कभी हलाल और झटका, कभी मुस्लिमों के खिलाफ अभियान…, जिस कर्नाटक के बेंगलोर ने दस साल पहले आईटी सेक्टर के कारण दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई थी, वह अब अपनी नफरत के कारण मशहूर हो रहा है. कुछ लोग कहते हैं कि इससे हम विश्वगुरु बनेंगे.

राम नवमी पर भी देश के कई हिस्सों में ऐसे उपद्रव किए गए. बिहार के मुजफ्फरपुर में रामनवमी शोभा यात्रा निकाली गई. शोभा यात्रा में शामिल लोग एक ईदगाह के पास पहुंचे तो ईदगाह पर चढ़ गए और गुम्बद पर भगवा झंडा फहरा दिया, इससे तनाव की स्थिति पैदा हुई. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर लोगों को शांत कराया और गुम्बद से भगवा उतारा गया. रामनवमी शोभा यात्रा के दौरान मुजफ्फरपुर में ही यह दूसरी घटना है.

नवरात्र के महीने में भगवा धारण किए हुए एक शख्स मु​सलमानों को धमकी देता है कि अगर वे नहीं सुधरे तो उनकी महिलाओं का सरेआम बलात्कार किया जाएगा. हमारी आस्था में हर व्यक्ति को उसी ईश्वर ने बनाया है. जिस नवरात्रि में हमारे घरों में नारी शक्ति की पूजा हो रही है, उसी समय अपराधी मानसिकता का एक व्यक्ति महिलाओं का सरेआम सामूहिक बलात्कार करने की धमकी दे रहा है. उसके सामने खड़ी पुलिस मूकदर्शक है. भीड़ ताली बजाकर जय श्रीराम का नारा लगा रही है. इस अधर्म से क्या सच में भगवान राम प्रसन्न हुए ? इस अधर्म से देवी मां क्या प्रसन्न हुईं ? क्या जो लोग किसी दूसरे समुदाय या धर्म से ताल्लुक रखते हैं, उन्हें ईश्वर ने नहीं बनाया है ?

राजस्थान के करौली में नवसंवत्सर के मौके पर हिंदू संगठनों ने बाइक रैली निकाली. पुलिस महानिदेशक एम. एल. लाठर के मुताबिक, रैली में डीजे बजाने की अनुमति नहीं थी, इसी शर्त पर अनुमति दी गई थी लेकिन रैली में डीजे पर आपत्तिजनक गाने बजाए गए. मुस्लिम बस्ती में उकसाने वाले नारे लगाए गए. दूसरे पक्ष ने इस उपद्रव का समाधान निकालने की जगह पथराव शुरू कर दिया. पथराव करने वालों में एक निर्दलीय पार्षद भी है. वह पार्षद प्रशासन की मदद ले सकता था, लेकिन उसने हिंसा चुनी. आग लगाने वाले बस मौके की तलाश में रहते हैं.

अब यह सब रोज हो रहा है. आठ साल से जो भीड़तंत्र तैयार किया जा रहा था, वह अब घर से बाहर निकल चुका है और बार बार कानून व्यवस्था अपने हाथ में ले रहा है. यह भीड़ एक दिन आपके भी घर आएगी. मजहबी पागलपन ने आजतक दुनिया में किसी का भला नहीं किया है. जो अपने को बहुत बड़ा हिंदू समझता हो, वह ऐसी पगलाई भीड़ को रोकने या समझाने की कोशिश करके अंजाम देख सकता ह. इसे कानून और संविधान से ही नियंत्रित किया जाता है. लेकिन आजकल संविधान की जड़ खोदना सरकार में बैठे लोगों का प्रिय शगल है.

ऐसी बातों पर कुछ लोग कहते हैं कि तुम मुसलमानों का समर्थन करते हो. यह मुसलमानों का समर्थन नहीं है, यह हिंदुओं का समर्थन है. क्योंकि मुसलमानों का डर दिखाकर हिंदुओं को उल्लू बनाया जा रहा है. अगर किसी समाज का कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसे सजा देने से किसने रोका है ? लेकिन यह जो हो रहा है, इसका मकसद कुछ और है.

इस निरीह आदमी से आपके धर्म को क्या और क्यों खतरा है ? अगर है तो आप कायर हैं.

इसका मकसद समाज को बांटकर, लोगों को आपस में लड़ाकर, राजनीतिक फायदा उठाना है. वे अपनी कुर्सी के लिए देश की शांति की बलि ले रहे हैं. वे अपनी सत्ता के लिए ऐसा कर रहे हैं, लेकिन एक दिन इसका अंजाम देखकर आप सिहर जाएंगे. तस्वीर में देखिए और सोचिए कि इस निरीह आदमी से आपके धर्म को क्या और क्यों खतरा है ? अगर है तो आप कायर हैं.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…