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बजट 2020 : न लीपने का और न पोतने का

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बजट 2020 : न लीपने का और न पोतने का

गिरीश मालवीय

कम शब्दों में 2020 के इस यूनियन बजट को डिस्क्राइब करना हो तो यह कहना सही होगा कि यह बजट ‘बिल्ली का गू’ है, न लीपने का और न पोतने का.

इस बजट से सबको उम्मीदे बहुत थी. भारत गहरी आर्थिक मंदी की चपेट में है, यह बात अब बड़े-बड़े विशेषज्ञ भी कुबूल कर चुके हैं. इस बजट का बाजार बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था कि कुछ तो ऐसा हो जिससे भारत की ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था को थोड़ा-सा भी बूस्ट मिले, हम इस मंदी से निपट पाए और आगे की राह का कोई संकेत मिले, लेकिन सारे अरमान धरे के धरे रह गए. यही सबसे सही समय था, कुछ कर दिखाने का. कारोबारी माहौल में सुधार के जरूरी और निर्णायक हस्तक्षेप का, लेकिन अफसोस मोदी सरकार यह ऐतिहासिक मौका चूक गयी है.

कृषि की बात आगे करेंगे. कृषि के अलावा देश के चार सेक्टर सबसे अधिक महत्वपूर्ण है वह है रियल इस्टेट, मैन्युफैक्चरिंग , टेक्सटाइल ओर ऑटोमोबाइल. क्या इन चारों क्षेत्रों को यह बजट कुछ लाभ पुहंचाता हुआ दिख रहा है ?

वित्त मंत्री ने रिएल एस्टेट सेक्टर के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं की है जबकि यह क्षेत्र काफी समय से संकट में है. मैन्युफैक्चरिंग और कोर सेक्टर को लेकर भी कोई महत्वपूर्ण घोषणा नहीं की है. टेक्सटाइल इस देश में कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार देने वाली इंडस्ट्री है. पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र से साढ़े तीन करोड़ लोगों ने अपने रोजगार से हाथ धोया है. कोई बताए कि इस क्षेत्र को वापस से खड़ा करने के लिए सरकार ने इस बजट में क्या बड़े कदम उठाए हैं ? ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री भारत में अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही हैए उसे इस बजट में क्या राहत दी गई है ? इस बजट में किसी भी इंडस्ट्री के लिए कोई भी नया प्रावधान नहीं किया गया है. मंदी से निपटने के लिए जीएसटी स्लैब में भी बदलाव लाया जाएगाए यह कहा जा रहा था, लेकिन बजट में जीएसटी को छुआ तक भी नहीं गया है.

बार-बार कहा जाता है कि अगले पांच साल में देश की इकनॉमी 5 ट्रिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है. एक बात बताइये जब तक आपके यहां प्राइवेट इन्वेस्टर आगे आकर पैसा नहीं लगाएगा, तब तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी बनाने का लक्ष्य कैसे पूरा कर पाएंगे ? आपने उस इन्वेस्टर को प्रोत्साहित करने के लिए इस बजट में क्या कदम उठाए हैं ?

ग्रामीण क्षेत्रों मे कम होती मांग इस आर्थिक मंदी की बड़ी वजह है लेकिन इस सरकार की अक्लमंदी आप देखिए कि इसने बजट में ग्रामीण विकास विभाग के तहत विभिन्न प्रमुख योजनाओं के लिए आवंटन घटाकर 1.20 लाख करोड़ रुपए कर दिया है. इससे पिछले वित्त वर्ष में यह 1.22 लाख करोड़ रुपए था यानी जिस पर खर्च बढाना चाहिए उस पर और कम कर दिया है. इसके अलावा रोजगार गारंटी योजना मनरेगा के लिए आवंटन में पिछले साल की अपेक्षा 9,500 रुपये की कटौती की गई है.

यह तो सरकार की सोच है. सरकारी बैंकों में नए पूंजी निवेश की जरूरत है छच्। से उनकी हालत पहले ही खराब है लेकिन सरकार उसमे भी चुप्पी साधे बैठी है. अगर सरकार ने 2020-2021 में बैंकों में नया पूंजी निवेश नहीं किया तो 2014 के बाद यह पहली बार होगा जब इस क्षेत्र में नई पूंजी नहीं आएगी. छच्। के टाइम बम पर बैठे हुए बैंकों के लिए यह बात भयावह सच्चाई ही है.

इस बजट की एकमात्र अच्छी बात यह है कि बैंकों में जमा खाताधारकों की 5 लाख की रकम अब सुरक्षित होगी, पहले यह सीमा महज 1 लाख रुपये ही थी. रक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी इस बजट में कोई उल्लेखनीय प्रावधान नहीं है. कुल मिलाकर देखा जाए तो इस बजट से इंडस्ट्री भी निराश हुई है. किसान भी निराश हुआ है और रोजगार तलाशता हुआ युवा भी निराश हुआ है, 2020 के बजट से मोदी सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उसे अर्थव्यवस्था के मामले में कुछ समझ नहीं आता.

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ROHIT SHARMA

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