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ब्राह्मणवादी अहंकार की शिकार दलित युवती

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ब्राह्मणवादी अहंकार की शिकार दलित युवती

जातीय अहंकार की दुर्गंध इस देश सरजमीन से लेकर संसद तक पहुंच गई है. आजादी के बाद इस जातीय ब्राह्मणवादी अहंकार को सत्ता का संरक्षण अप्रत्यक्ष रूप में था, जो धीरे-धीरे कम होता जा रहा था. परन्तु 2014 में भाजपा-आरएसएस की कुख्यात जोड़ी ने मोदी-शाह के नेतृत्व में ब्राह्मणवादी अहंकार और निरंकुशता को पूरजोर हवा दी, जिसका परिणाम दलितों-महिलाओं पर खुल्लमखुल्ला हमला के तौर पर सामने आया.

मॉबलिंचिंग और बच्चा चोरी के नाम पर समाज में दहशत फैला दिया, जिसे केन्द्र की मोदी सरकार का खुला समर्थन था. यही कारण है कि इन जातीय दहशतगर्दों के खिलाफ पुलिस में कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं होता है. काफी जन प्रतिरोध के बाद भी जब इन दहशतगर्दों की गिरफ्तार कर जेल भेजा भी जाता है तो उसकी न केवल खातिरदारी ही की जाती थी, वरन् सत्ता की ताकत का इस्तेमाल कर जेल से जल्दी ही निकल आने के बाद बकायदा उसको मंत्रियों-विधायकों द्वारा सम्मानित भी किया जाता है. जेल में भी ऐसे दहशतगर्दोंं से मिलने मंत्री-विधायक जाते रहते हैं, जिसके उदाहरणों की कमी नहीं है.

मौजूदा वक्त में जब देश इन ब्राह्मणवादी जातीय दहशतगर्दों के दहशत में जी रहा है तभी इनके समर्थन में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला का निंदनीय बयान सत्ता की गलियारे से आती है, जो सत्ता के ब्राह्मणवादी मानसिकता को उकेड़ डालती है.

वक्त के ऐसे नाजुक दौर में जब ब्राह्मणवादी ताकतें देश की सत्ता पर काबिज हो गया है और सत्य के विभिन्न संस्थानों को हथियार बनाकर मनुस्मृति के अमानवीय नियमों के अनुसार देश को चलाना चाह रही है, तभी एक दलित बेटी को साजिश का शिकार बनाकर मार दिया गया जाता है.

दरअसल यह घटना बिहार कैमूर जिले के रामगढ़ प्रखंड के बडौरा गांव की है. घटना घटने का समय 16 जनवरी के शाम 4:00 बजे की है.

गांव वाले एवं परिजनों का कहना है कि इस बच्ची के पिता बाहर में रहते हैं, जो बच्ची के खाते में अपने कमाये पैसे डाले थे. इस पैसे को निकालने हेतु बच्ची लगभग 1 महीने से लगातार बैंक का चक्कर लगा रही थी लेकिन बैंक मैनेजर लड़की की बात नहीं सुन रहा था. इस बात से नाराज उस लड़की ने रामगढ़ थाने में एफआईआर दर्ज करा दी. इसके बाद पुलिस ने मैनेजर से पूछताछ किया और चली गई. तब मैनेजर ने लड़की और उसकी मां को बुलाया और कहा कि ‘केस वापस ले लो, हम तुम्हारा पैसा निकाल देंगे.’ लड़की उसके बात से सहमत हो गई और बोली कि ‘हम केस वापस लेने के लिए सहमत हैं.’

इसके बाद दोनों मांं और बेटी वापस जाने लगी, तभी बैंक मैनेजर ने कहा कि ‘मांं, आप मत जाइए. मैं खुद आपकी बेटी को ले जाता हूं और केस वापस करा कर आता हूं.’ तब उस मां ने कहा कि ‘हमारी बेटी को कुछ हो जाएगा तो ?’ मैनेजर ने कहा कि ‘आपकी बेटी हमारी बेटी है. इसे कुछ नहीं होगा.’

मैनेजर अपनी गाड़ी से लड़की को लेकर चला गया. लड़की केस वापस ले ली. केस वापस लेने के बाद उस लड़की को बुरी तरह पीटा और बोला कि ‘तुम चमार की इतनी औकात जो हम राजपूत पर केस कर दी.’ इसके बाद लड़की को मोहनिया वाला रोड में ले जाया जाने लगा.

गांव वाले एवं परिजनों का कहना है कि लड़की अपने भाई के मोबाइल पर फोन की थी और बोली कि ‘भैया मुझे यह लोग दूसरी ओर ले जा रहे हैं.’ तभी मोबाइल छीन लिया गया. इसके कुछ समय बाद लड़की का रेप कर उसे मोहनिया रेलवे लाइन पर फेंक दिया गया, जिसकी पहचान कर लोगों ने गांव फोन किया. परिवार वाले लड़की को बनारस हॉस्पिटल में भर्ती कराया, जहां लड़की ने दम तोड़ दिया.

दलित समाज की महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और हिंसा की यह मिसाल कोई पहली नहीं है और न ही आखिरी होगी. पर इसके साथ जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है, वह है देश की ब्राह्मणवादी अहंकार को केन्द्र की सत्ता का खुला समर्थन, जो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के रुप में देश के सामने आया है. जिसका परिणाम यह होना है कि इन जातीय दहशतगर्दोंं को खुली छूट देना, जो हिंसक घटनाओं के रूप में भी परिणत हो सकती है.

केन्द्र और राज्य की सत्ता को समय रहते पूरी प्रकरण की अविलम्ब जांच कर आरोपी बैंक मैनेजर समेत उन तमाम लोगों को गिरफ्तार करें और उसे दण्डित करें अन्यथा बलात्कार और हत्यारोपियों को सत्ता का संरक्षण प्रदान करना कहीं सत्ता के लिए चुनौती न बन जायें.

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