पीयूडीआर (पीपुल्स यूनियन डेमोक्रेटिक फॉर राइटस) के छह सदस्यीय टीम ने 13 और 15 दिसंबर, 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के परिसर में हुई पुलिस की बर्बरता की घटनाओं की 16-19 दिसंबर, 2019 तक चार दिवसीय जांच पड़ताल की. विरोध प्रदर्शनों के दौरान क्रूरताएंं हुईं. पीयूडीआर की रिपोर्ट इसी जांच पर आधारित है, जो पुलिस आतंक की तस्वीर प्रदान करती है और पुलिस को असहमति व्यक्त करने के लिए कानूनन बल के रूप में मंजूरी दी जाती है.
पीयूडीआर ने परिसर में कई छात्रों, शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों से बात की. डॉक्टरों, घायल छात्रों, उनके माता-पिता के साथ-साथ स्थानीय निवासियों और उनके कर्मचारियों, विभिन्न घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी लोगों के साथ बातें की और परिसर का दौरा किया, जहां उन्हें उस रात के विनाश के कई अन्य दिखाई दिये संकेतों के बीच टूटे हुए ताले, खाली आंसू-गैस के गोले, टूटी हुई खिड़कियां और फर्नीचर, फर्श पर खून पाया. यह रिपोर्ट 15 दिसंबर को परिसर में होने वाली हिंसा के संदर्भ को फ्रेम करने के लिए 13 दिसंबर से घटनाओं के पाठ्यक्रम का एक व्यापक विवरण प्रदान करती है.
रिपोर्ट में पाया गया है कि 15 दिसंबर की घटना से पहले, 13 दिसंबर को दंगा गियर में दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ इसी तरह की कार्रवाई की गई थी, जब पुलिस ने हजारों छात्रों और पड़ोस के निवासियों सहित सीएए और एनआरसी के विरोध में शांतिपूर्ण निकाली गई एक रैली को रोकने का प्रयास किया था. उस समय, दिल्ली पुलिस ने अनधिकृत और अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया ताकि रैली को आगे बढ़ने से रोका जा सके. अंधाधुंध लाठीचार्ज करके पुलिस ने परिसर में और आस-पास की सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया. उस समय भी, दिल्ली पुलिस ने अनाधिकृत रूप से परिसर में प्रवेश किया और छात्रों के साथ मारपीट की व संपत्ति को नष्ट कर दिया. इसके साथ ही गैरकानूनी रूप से कई लोगों को हिरासत में लिया. 15 दिसंबर को हुई तबाही दिल्ली पुलिस द्वारा अंधाधुंध बल के जरिए छात्रों पर काबू पाने की उसी रणनीति का एक विस्तार था.
मथुरा रोड की ओर बढ़ने से प्रदर्शनकारियों की एक हजार-मजबूत रैली को नियंत्रित करने के लिए रविवार को, पुलिस ने फिर से अत्यधिक लाठीचार्ज और अशांति का सहारा लिया. डीजीपी (दक्षिण पूर्व) का दावा है कि प्रदर्शनकारियों की हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यह आवश्यक था लेकिन हिंसा के दौरान अस्पतालों में भर्ती होने वालों के तौर-तरीकों और चोटों की प्रकृति अन्यथा ही इंगित करती है. 400 आंसू गैस के गोले, चोटें मुख्य रूप से सिर, चेहरे या पैरों पर लगी हुई थीं, जो कि मारने का इरादा दिखाती हैं या अधिकतम नुकसान पहुंचाती हैं.
रिपोर्ट में पाया गया है कि परिसर के अंदर दिल्ली पुलिस द्वारा बल प्रयोग पूरी तरह से अनधिकृत और अनुचित था. रिपोर्ट में पुलिस की भीषणता का विवरण है कि फाटकों पर ताले तोड़कर, गार्डों पर हमला करके, सीसीटीवी कैमरों को तोड़कर, अंधाधुंध लाठीचार्ज, आंसू-गैस के गोले फेक कर, मारपीट, सांप्रदायिक रूप से दुर्व्यवहार करने और हर एक व्यक्ति-पुरुषों को अपमानित करने के लिए पुलिस ने बलपूर्वक परिसर में प्रवेश किया. फिर पुस्तकालयों, मस्जिदों, बाथरूम, बगीचों आदि में विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों और श्रमिकों पर अकारण हमले शुरू कर दिया.
छात्रों के खिलाफ पुलिस का यह आक्रामक और सांप्रदायिक व्यवहार पुलिस थानों और अस्पतालों में भी जारी रहा, जहां घायलों को भर्ती कराया गया था. दिल्ली पुलिस ने व्यवस्थित रूप से उसके ईलाज में बाधा पहुंचाई और दर्जनों घायलों को आपातकालीन और आवश्यक चिकित्सा सुविधा से महरुम रखा. गैर-कानूनी रूप से 50 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया परन्तु कानूनी रूप से इनकार किया. इन सभी समयों में, छात्रों को लगातार सांप्रदायिक गालियों और धमकियों के साथ दुर्व्यवहार किया. जिसका आशय अधिकतम क्षति पहुंंचाने और विश्वविद्यालय के छात्रों को आतंकित करने के लिए प्रयोजित प्रतीत होता है.
पीयूडीआर ने नोट किया कि 15 दिसंबर के बाद से, दिल्ली पुलिस ने दिल्ली भर में प्रदर्शनकारियों और मुस्लिम इलाकों दोनों में समान रूप की क्रूरता को उजागर किया है. सभी जगह पुलिस के आक्रामक पैटर्न समान थे : लाठीचार्ज, आंसू-गैस फायरिंग, इसके बाद बड़े पैमाने पर बंदी, और बंदियों को कानूनी और चिकित्सा सहायता से वंचित करना.
13 और 23 दिसंबर के बीच, दिल्ली में सीएए-एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों से संबंधित हिंसा की आड़ में लगभग 1500 लोगों को हिरासत में लिया गया है. जामिया विश्वविद्यालय (13 और 15 दिसंबर), कला संकाय डीयू (17 दिसंबर), लाल किला और मंडी हाउस (19 दिसंबर), यूपी भवन (21 और 23 दिसंबर) और असम भवन (23 दिसंबर) को विरोध प्रदर्शन किया गया. सीलमपुर-जाफराबाद, दरियागंज और सीमापुरी (20 दिसंबर) में मुस्लिम इलाकों में पुलिस के लक्षित हमले देखे गए. इनमें से सबसे क्रूर हमला दरियागंज में था, जहां लगभग 11-12 नाबालिगों को चिकित्सा और कानूनी सहायता से वंचित करने के लिए 3 बजे तक पुलिस स्टेशन में हिरासत में रखा गया था. पहले से ही प्रदर्शनकारियों पर क्रूर लाठीचार्ज किया गया था, जिसमें ज्यादातर लोगों के सिर पर चोट के निशान थे.
20 दिसंबर को देर रात तक, फिर से चिकित्सा या कानूनी सहायता के बिना लंबे समय तक सीमापुरी थाना पर कम से कम 1 नाबालिग को हिरासत में लिया गया था. कम से कम 40 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, जो वर्तमान में न्यायिक हिरासत में हैं.
पीयूडीआर की यह रिपोर्ट पुलिस की हैवानियत का काला चिष्ठा है, जो यह बतलाती है कि सत्ता खासकर मोदी-शाह की आततायी शासक किसी भी प्रकार का विरोध सहन करने के लिए तैयार नहीं है. वह जनता के हर विरोध को खून में डुबो देना चाहती है. पीयूडीआर की रिपोर्ट यह भी बतलाती है कि जनता को अगले आने वाले दिनों में विरोध करने पर किस भयानक क्रूरता का सामना करना पड़ सकता है. यही कारण है कि वर्तमान रंगाबिल्ला की फासिस्ट सरकार की क्रूरता का प्रतिरोध करने के नये तरीकों को भी अपनाना होगा.
जामिया मिल्लिया के छात्रों पर पुलिसिया हैवानियत की जांच रिपोर्ट (पीयूडीआर)
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