हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्त्ता
राजनीति दो तरह की हो सकती है. पहली असली राजनीति. असली राजनीति का मतलब है जनता की समस्याओं को दूर करने वाली राजनीति, जैसे रोज़गार, शिक्षा, मजदूरों को शोषण से मुक्ति, किसान की बेहतरी, महिलाओं की समानता, जाति, सम्प्रदायवाद से समाज को मुक्त करने की राजनीति वगैरह।
एक दूसरी राजनीति होती है. मूर्ख बनाने वाली राजनीति. उस राजनीति में किसी एक धर्म की इज्ज़त के नाम की राजनीति होती है.
कुछ जातियों की श्रेष्ठता को आधार बना लिया जाता है. फर्जी राष्ट्रवाद के नारे लगाए जाते हैं. काल्पनिक दुश्मन खोजे जाते हैं. फालतू में नफरत फैलाई जाती है. सेना के नाम पर उत्तेजना का निर्माण किया जाता है. कुछ सम्प्रदायों को दुश्मन घोषित किया जाता है.
पहली वाली राजनीति से समाज की प्रगति होती है, जीवन सुखमय होता जाता है लेकिन दूसरी वाली राजनीति से समाज में भय, नफरत और हिंसा बढ़ती ही जाती है. दूसरी वाली राजनीति में लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दे पर काम नहीं होता, सिर्फ जुमले छोड़े जाते हैं.
दूसरी वाली राजनीति का एक लक्षण यह है कि इसमें धीरे-धीरे कट्टरपन बढ़ता जाता है. नए गुंडे पुराने गुंडों को उदारवादी बता कर सत्ता अपने हाथ में लेते जाते हैं और धीरे-धीरे पूरी तरह मूर्ख और क्रूर नेता सबसे बड़ा बन जाता है. इसके बाद इस राजनीति का निश्चित अंत होता है क्योंकि हिंसा तो नाशकारी है ही, यह आग तो सभी को जलाती है.
मान लीजिये भारत में संघ की मनमानी चलने दी जाय तो ये ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेंगे ? ये मुसलमानों, ईसाईयों, कम्युनिस्टों, सेक्युलर बुद्धिजीवियों को मिलाकर मार ही तो डालेंगे ? बुरे से बुरे हाल में ये भारत में आठ दस करोड़ लोगों को मार डालेंगे.
लेकिन उससे ना तो दुनिया से मुसलमान समाप्त होंगे ना इसाई, ना कम्युनिस्ट विचारधारा समाप्त होगी, ना ही नए बुद्धीजीवी पैदा होने बंद हो जायेंगे लेकिन उसके बाद हिंदुत्व की राजनीति ज़रूर हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगी. उसके बाद भारत ज़रूर दुनिया के अन्य सभी देशों की तरह ठीक से अपना काम काज करता रहेगा.
हिटलर ने यही तो किया था. उसने खुद को आर्य कहा और अपनी नस्ल को दुनिया की सबसे श्रेष्ठ नस्ल घोषित किया. इसके बाद हिटलर ने यहूदियों को अपने देश के लिए समस्या घोषित किया.
हिटलर ने एक करोड़ बीस लाख औरतों, बच्चों, जवानों, बूढों को घरों से निकाल-निकाल कर बड़े-बड़े घरों में बंद कर के ज़हरीली गैस छोड़ दी. उसने भी सिर्फ यहूदियों को नहीं मारा, बल्कि कम्युनिस्टों, बुद्धिजीवियों, उदारवादियों, विरोधियों, समलैंगिकों सबको मारा, अंत में हिटलर ने खुद को गोली मार ली.
हिटलर के देश जर्मनी के दो टुकड़े हो गए थे. आज भी हिटलर के देश के लोग हिटलर का नाम लेने में हिचकिचाते हैं और अगर नाम लेते हैं तो शर्म और नफरत के साथ लेते हैं.
अगर भारत में भी साम्प्रदायिकता और राष्ट्रवाद की नकली राजनीति इसी तरह बढ़ेगी तो यह अपने अंत की ओर ही जा रही है यह निश्चित है.
भाजपा राजनीति के जिस रास्ते पर बढ़ रही है वह ज्यादा दूर तक नहीं ले जाता. थोड़े ही दिन में इस तरह की राजनीति का खुद ही अंत हो जाता है. अपनी चिता में जलकर एक नया भारत निकलेगा. ये ज़रूर है कि वह राजनैतिक तौर पर एक राष्ट्र बचेगा या टुकड़ों में बंट जायेगा, यह नहीं कहा जा सकता.
Read Also –
शक्ति की परिभाषा बदलते देर नहीं लगती
सुप्रीम कोर्ट का जज अरुण मिश्रा पर गौतम नवलखा का हस्ताक्षर
मोदी, कोरोना वायरस और देश की अर्थव्यवस्था
खतरनाक संघी मंसूबे : 50 साल राज करने की कवायद
गुजरात में ट्रंप से असलियत छुपाते मोदीज
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]