हिमांशु कुमार
जी. एन. साईबाबा दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे. वे दलित हैं. पोलियो के कारण उनके दोनों पांव काम नहीं करते थे. व्हील चेयर पर रहते थे. उन्होंने आदिवासियों की जमीन छीनने और उनके दमन के खिलाफ लिखा, सभा में बोले. सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया और कहा – यह माओवादी समर्थक है और 2017 में उन्हें उम्र कैद की सजा दे दी गई.
उनके पास से कोई हथियार नहीं मिला, कोई सबूत नहीं मिला. कोई गवाह नहीं मिला जो यह साबित करता कि ये माओवादी हैं. निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील पेंडिंग पड़ी है. इस पर कोई फैसला तो क्या सुनवाई तक शुरू नहीं हुई है.
नियम से उन्हें जमानत पर रिहा किया जा सकता है ताकि मुकदमे का फैसला आने पर उन्हें सजा दी जा सके. उन्हें पैरोल दी जा सकती है लेकिन बार-बार उनकी जमानत और पैरोल की अर्जी ठुकरा दी जाती है.
उन्हें अंडा सेल में रखा गया है. यानी अकेले रखा गया है. चारों तरफ से बारिश का पानी, धूल मच्छर भीतर आता है. ऊपर टीन की छत है और नागपुर का गर्म मौसम. जैसे किसी जंतु को किसी प्रेशर कुकर में रखकर आप चूल्हे के ऊपर रख दे, वैसा हाल होता है. वे घिसट-घिसट कर लैट्रिन जाते हैं और वापस आते हैं. इस सब की वजह से उनका पहले बायां हाथ पैरालाइज हुआ, अब दायां हाथ भी 50% से ज्यादा लकवा ग्रस्त हो चुका है.
वे चम्मच से मुश्किल से खाना खा पाते हैं. हाथ कांपता रहता है. क्या इस देश के किसी दलित संगठन ने इस मामले पर आज तक कोई बयान कोई सार्वजनिक सभा कोई निंदा प्रस्ताव कोई विरोध प्रदर्शन किया है ? आखिर भाजपा दलितों पर अत्याचार करने में क्यों डरे ?जब उसे डराने वाला ही कोई नहीं है.
संजीव भट्ट आईपीएस ऑफिसर हैं. वह जेल में हैं. इस देश के आईपीएस ऑफिसर्स के किसी संगठन ने उसके विरोध में कोई प्रस्ताव भी पारित किया है क्या ? जज लोया की हत्या के खिलाफ भारत के जजों को कोई गुस्सा आया क्या और उन्होंने हत्यारे के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की कोई पहल की क्या ?
सुधा भारद्वाज, सुरेन्द्र गार्डिंग, अरुण फरेरा जैसे वकील जेलों में डाल दिए गए, क्या भारत के बार एसोसिएशन ने इसके खिलाफ कोई निंदा प्रस्ताव भी पारित किया क्या ? पत्रकार सिद्धिक कप्पन हाथरस बलात्कार की रिपोर्टिंग करने जा रहे थे. उनके ऊपर यूएपीए लगा दिया गया. दो साल हो गये सुप्रीम कोर्ट उन्हें जमानत नहीं दे रहा है. देश भर के पत्रकारों के किसी संगठन ने कोई कार्यक्रम इसके खिलाफ आयोजित किया क्या ?
देश में जो विपक्षी पार्टियां हैं, क्या उनको मालूम नहीं है कि यह सारे मुद्दे राजनीतिक मुद्दे हैं और इन पर उनको बोलना चाहिए, कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, विरोध प्रदर्शन करने चाहिए ? क्या चुनाव के समय सिर्फ भाजपा के खिलाफ बोलकर आप खुद को सत्ता में ला पाएंगे ?
भाजपा अकेली इस देश की राजनीति तय कर रही है. वह चाहती है कि सब लोग सिर्फ हिंदू मुसलमान पर बात करें तो सब उसी पर बात करते हैं. अगर इस देश की राजनीतिक पार्टियों के पास इतनी भी समझ नहीं है कि वह वैकल्पिक राजनीतिक चर्चा खड़ी कर सकें जिससे राजनीति बदले तो सत्ता में आने की इनकी क्या योग्यता है ?
भाजपा के अलावा बाकी की राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय ही जनता के बीच सक्रिय होती हैं लेकिन भाजपा के सहयोगी संगठन हमेशा सक्रिय रहते हैं. भाजपा ने सैंकड़ों संगठन बनाए हुए हैं. उसके पास हज़ारों सरस्वती शिशु मंदिर हैं. एकल विद्यालय हैं. शबरी विद्यालय हैं. आईएएस, आईपीएस की ट्रेनिंग के लिए संस्थान हैं. उसके पास फौजी ट्रेनिंग देने वाले भी संस्थान हैं.
भारत की किसी भी राजनीतिक पार्टी का एक भी स्कूल देश में चलता है क्या ? सभी पार्टियां तो सत्ता में रह चुकी हैं. आपने क्यों नहीं जनता के बीच ऐसे संस्थान खड़े किए जहां से आप की विचारधारा वाले बच्चे और नौजवान निकलते ?
आज भारत की बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीएसआर फन्ड का 90% से ज्यादा पैसा भाजपा, आरएसएस और उसके सहयोगी संगठन ले रहे हैं. भाजपा को जिताने के लिए इन संगठनों संस्थानों में लाखों कार्यकर्ता दिन-रात काम कर रहे हैं. यह लोग हिंदू मुस्लिम वाली मानसिकता नफरत फैलाने वाली मानसिकता फैलाने के लिए ही काम करते हैं. और 5 साल बाद भाजपा के लिए चुनाव में जीतने का रास्ता बनाते हैं.
भाजपा का एक पन्ना प्रभारी होता है. नौकरियों से रिटायर्ड लोगों को इस काम में लगाया जाता है. वोटर लिस्ट के एक पन्ने पर जितने मतदाता होते हैं उन सब से वह संपर्क करता है. उनके घर जाता है, चाय पीता है, हिंदू संस्कृति पर कितना खतरा है, मुसलमान कितना बड़ा खतरा है, ऐसी डराने वाली फर्जी बातें करता है और चुनाव के समय भाजपा के लिए वोट डलवाता है.
भाजपा के अलावा किसी पार्टी ने कभी मतदाताओं से बिना चुनाव के संपर्क किया है ? यह विचार जयप्रकाश नारायण ने अपनी किताब में लिखा था, इसे उन्होंने मतदाता मंडल कहा था. बाकी किसी पार्टी ने उस पर अमल नहीं किया, भाजपा ने कर लिया. जिस दिन भाजपा की सरकार बनती है वे अगला चुनाव जीतने की रणनीतियां बनाने उस पर काम करने में लग जाते हैं.
याद कीजिए जब भाजपा विपक्ष में थी तो प्याज का रेट बढ़ने पर, गैस का रेट बढ़ने पर या पेट्रोल का रेट बढ़ने पर किस तरह यह लोग सड़कों पर उतर कर धरने प्रदर्शन करते थे, आज महंगाई बढ़ने पर या किसी भी मुद्दे पर आपको कोई राजनीतिक पार्टी सड़क पर दिखाई देती है क्या ? खाली भाजपा को दोष देने से आप चुनाव नहीं जीत पाएंगे.
रणनीति बनाइये, मेहनत कीजिए, सक्रिय बनिये, सड़क पर उतरिये, जनता के बीच जाइए. हमारी विपक्षी राजनीति की एक दिक्कत यह भी है कि आज ज्यादातर ऐसे नेता है जो वंश परंपरा के कारण अपनी-अपनी पार्टियों के प्रमुख बने हुए हैं. जो भी हो इस हालत का नुकसान भारत के आदिवासी, दलित, मुसलमान, गरीब, नौकरी पेशा, मजदूर उठा रहे हैं. इनकी हालत सचमुच बहुत खराब है और इन पीड़ित तबकों को राजनीति बदलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है.
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