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भारतीय फासीवाद के हजारों चेहरे

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भारतीय फासीवाद के हजारों चेहरे

आजकल गुजरात में किसी छात्र से पूछा गया यह सवाल चर्चा में है कि ‘गांधी जी ने आत्महत्या कैसे की ?’  इस सवाल से भी ज्यादा चर्चा में इस सवाल का जवाब है कि ‘गांधी जी आरएसएस से प्रभावित थे. वे उसमें शामिल होना चाहते थे. नेहरू ने उन्हें रोका इसलिए उन्होंने आत्महत्या कर ली.’

यह सवाल-जवाब हमारी उस मशीन के बारे में समझ बढ़ाने में सहायक हो सकता है, जिसे आरएसएस कहते हैं और जो केवल और केवल लोगों का ब्रेन-वॉश करके उन्हें अपनी विचारधारा के रंग में रंगती है.

लोगों के दिमाग में गांधी, नेहरू, अंबेडकर, सुभाष, भगत सिंह, लोकतंत्र, संविधान, आजादी का आंदोलन, मुसलमानों के खिलाफ जहर पिछले 50 सालों से भरा जा रहा है. पिछले 10-15 साल से एक चलन और बढ़ गया है. ये लोग जिस शिद्दत से लोगों के दिमाग में ऊपर वर्णित लोगों, संस्थाओं के खिलाफ जहर भरते हैं, उतनी ही शिद्दत से स्वयं के बारे में अमृत रस भी बरसाते हैं, सौ फीसदी सफेद झूठ बोलकर.

इन लोगों ने सरदार पटेल के बारे में यह झूठ कई दिमागों में स्थापित कर दिया है कि वे संघ के समर्थक थे. इनके प्रचार तंत्र ने सोमनाथ और अयाेध्या को एक जैसे विषय के तौर पर स्थापित करने में भी सफलता पा ली है. जबकि सच ये है कि सोमनाथ में कोई मस्जिद नहीं गिराई गई थी बल्कि खंडहर हो चुके मंदिर का जीर्णोंंद्धार किया गया था. अयोध्या में मस्जिद को ढहाया गया था. लेकिन जब ये सोमनाथ का जिक्र करते हैं, तो यूं करते हैं, जैसे वहां कोई मस्जिद थी, जिसे सरदार पटेल ने खुद ढहा दिया हो.

इनके द्वारा ब्रेन वॉश किए गए लोगों से एक बार बात कीजिए, तब समझ में आता है कि उनके दिमाग में कितने झूठे तथ्य ‘सच’ की तरह स्थापित कर दिए गए हैं. उस समय तो कलेजा ही कांप जाता है, जब ब्रेन वॉश करा चुके लोग झूठे तथ्यों को पूरे आत्म विश्वास के साथ बोलते हैं. और भी बहुत कुछ.

रणनीति उस दुष्प्रचार के खंडन की बनाइए, जिसके जरिए ब्रेन वॉश किया जाता है. समानांतर रणनीति उन लोगों के दिमाग को दुरुस्त करने की भी बनानी होगी, जिनका ब्रेन वॉश हो चुका है, लेकिन उनके मुख्यधारा में शामिल होने की संभावनाएं बरकरार हैं.

यह सही है कि फासीवाद अंतत: हारता ही है. वह जर्मनी में हारा, इटली में हारा लेकिन भारत में संघर्ष जरा कठिन है. इसका एक कारण यह है कि हमारे फासीवादी लोकतंत्र के रास्ते पर चलने की नौटंकी कर रहे हैं, तो दूसरा यह कि जर्मनी, इटली के फासी-नाजीवादियों ने जो गलती की थी, उसे हमारे देश के फासीवादियों ने सुधार लिया है.

जर्मनी-इटली वालों ने यह गलती की थी कि उनका चेहरा एक था. किसी व्यक्ति, विषय पर जो विचार वे अपनी आपसी चर्चाओं में व्यक्त करते थे, वही सार्वजनिक रूप से. इस गलती को सुधारकर हमारे फासीवादियों ने अपने कई चेहरे बना लिए हैं. रावण के तो 10 चेहरे थे, इनके तो पता नहीं कितने हैं. कभी कोई वाल्मीकि जन्म लेगा, वह गिनेगा इनके चेहरे.

फिलहाल तो स्थिति यह है कि एक व्यक्ति जब अपने लोगों के बीच होगा, तो गोडसे की जय जयकार करेगा और वही व्यक्ति जब समाज में आएगा, तो गांधी जी की जय बोलने लगेगा. चूंकि इनके हजारों चेहरे हैं, इसलिए इनसे लड़ाई कठिन है, लेकिन अंतत: आसुरी शक्तियों को हारना पड़ता है.

  • सुरेन्द्र कुमार राणा

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