कुछ तो खतरनाक होने वाला है अर्थव्यवस्था में, नोटबन्दी और जीएसटी से भी ज्यादा खतरनाक. उर्जित इसीलिए भागा है, और इस डर से चुप है कि कहीं उसका भी “मॉर्निंग वॉक“ न करा दिया जाए. उसने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में धन्ना सेठों की लूट की व्यवस्था के प्रबंधन की पढ़ाई ज़रूर की थी, पर ऐसे छटे हुए बदमाशों के नीचे काम करने का कोई कोर्स तो वहां भी न होता शायद.
मोदी सरकार की जनविरोधी और अर्थव्यवस्था के लिए आत्मघाती कदमों से ऊब कर भाड़े का टट्टू उर्जित पटेल भी मोदी का दामन छोड़ का पलायन कर गया. पिछले 15 महीनों में उर्जित पटेल का यह तीसरा बड़ा इस्तीफा है. इससे पहले नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम इस्तीफा दे चुके हैं. उर्जित पटेल जैसे भाड़े का टट्टू भी जब मोदी का साथ छोड़कर पलायन कर चुका है, तो इसका देश के लिए साफ संदेश है कि देश की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है और यह संकट आने वाले दिनों में भयावह स्वरूप लेने वाली है.
भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के बीच पिछले दिनों आई तनाव की खबरों को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री मौरिस ओब्स्टफील्ड ने भी कहा था कि वित्तीय स्थिरता के लिए आरबीआई के संदेशों पर सरकार का ध्यान देना जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कभी नहीं चाहेगा कि सरकार अपने सियासी मकसद के लिए केंद्रीय बैंक के कामकाज में हस्तक्षेप करें. केंद्रीय बैंक के पास कहीं ज्यादा शक्तियां हैं. वह वित्तीय स्थिरता और मौद्रिक नीतियों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार है.
इसके वाबजूद मोदी सरकार द्वारा रिजर्व बैंक के कामकाज में लगातार हस्तक्षेप और उसके रिजर्व धन से 3 लाख करोड़ रूपये से अधिक की मांग को रिजर्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक कदम मान रही है. परन्तु मोदी सरकार अपने कॉरपोरेट घरानों की सेवा करने के लिए इस कदर केन्द्रीय बैंक पर दबाव डालना शुरू किया कि भाड़े का टट्टू उर्जित पटेल भी बदनामी के इस दाग को अपने गिरेवां पर लगाने को तैयार नहीं हुआ और भाग खड़ा हुआ. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों के विचार इस संबंध में इस प्रकार है.
श्रवण यादव : कुछ तो खतरनाक होने वाला है अर्थव्यवस्था में, नोटबन्दी और जीएसटी से भी ज्यादा खतरनाक. उर्जित इसीलिए भागा है, और इस डर से चुप है कि कहीं उसका भी “मॉर्निंग वॉक“ न करा दिया जाए. उसने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में धन्ना सेठों की लूट की व्यवस्था के प्रबंधन की पढ़ाई ज़रूर की थी, पर ऐसे छटे हुए बदमाशों के नीचे काम करने का कोई कोर्स तो वहां भी न होता शायद.
मरता क्या न करता. चुपचाप इस्तीफा देकर खिसक लिया. अब क्या विध्वंसक योजनाएं हैं इस रंगा बिल्ला सरकार की ? क्या अर्थव्यवस्था डूबने वाली है ? या बैंक कंगाल होने वाले हैं ? या रुपया भरभराकर क्रैश होने वाला है ? या कुछ और ? ये तो समय ही बताएगा. पर फिलहाल के लिए तो किसी संबित पात्रा, गजेंद्र चौहान, राखी सावंत, रामदेव, गुरुमूर्ति जैसे किसी को आरबीआई गवर्नर का पद सौंपा जाएगा, जो चुपचाप सब बात माने, कोई किन्तु-परन्तु न करे. अगले गवर्नर का बस एक काम होगा, “मैं धारक को दस रुपए अदा करने का वचन देता/ देती हूं“ के नीचे हस्ताक्षर करना.
मुकेश असीम : नोटबंदी को चुपचाप हजम कर जाने वाले ऊर्जित पटेल को भी इस्तीफा देना पड़ गया, मतलब कहीं तो टू-मच हो गया. आर्थिक सलाहकार वाले मामले की तरह यही समझना होगा कि पूंजीवादी आर्थिक संकट के अंतर्विरोध इतने तीव्र हो गए हैं कि उनके समाधान के लिए मोदी सरकार जिस रास्ते जाना चाहती है, वह बुर्जुआ अकादमिक जगत में थोड़ा बहुत नाम मगर मौकापरस्त चरित्र रखने वाले ’विशेषज्ञों’ के लिए भी गिरने की हद पार करने जैसा है. इसलिए ऊर्जित पटेल ने इस ’शहादत’ के जरिये अपनी इज्जत बचाने की कोशिश की है.
जैसे मौकापरस्त आर्थिक सलाहकार की जगह भक्त अर्थवेत्ता ने ली, वैसे ही मौकापरस्त रिजर्व बैंक गवर्नर की जगह भी कोई भक्त गवर्नर ही लेने वाला है, जो नोटबंदी जैसी चीजों पर सिर्फ चुप रहने के बजाय खुलकर मोदी चालीसा पढ़ने के लिए तैयार हो. नोटबंदी के दौरान रोज प्रेस वार्ता में नए-नए नियम-कायदे बताने और हवाई दावे करने वाले मोदी सिपहसालार हसमुख अधिया या शक्तिकांत दास संभवतः सबसे बड़े उम्मीदवार हैं.
आज की ही एक और खबर ध्यान देने वाली है – कोटक महिंद्रा बैंक ने उदय कोटक की शेयरहोल्डिंग के मामले में रिजर्व बैंक के आदेश को मानने से इंकार कर उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी है. शायद यह पहला ऐसा मामला है. आईसीआईसीआई, ऐक्सिस, यस, कोटक महिंद्रा सारे बड़े निजी बैंक ऐसे ही मामलों में उलझे हैं, सार्वजनिक बैंकों की हालत तो सबको मालूम ही है.
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