भारत के आजादी के दीवानों में जवाहर लाल नेहरू का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है, जिन्होंने अपने जिन्दगी के अनेकों साल ब्रिटिश हूकूमत के जेलों में काटे हैं. परन्तु, आज उन लोगों ने जो अंग्रेजों की दलाली किया करते थे और अंग्रेजों की जासूसी कर, फर्जी गवाही देकर देश के क्रांतिकारियों को मौत के घात उतरवाते थे या फिर उन्हें जेलों में सजा दिलवाने में अग्रिम भूमिका निबाहते थे, भगत सिंह, चन्द्रशेखर तक इनके गद्दारी के शिकार हुए हैं और गांधी की बजाप्ता गोली मार कर हत्या तक कर दी, वे आज देशभक्ति को ढोल जोर-जोर से पीट रहे हैं और देशप्रेमियों के खिलाफ फर्जी आरोप लगाकर हमला बोल दिये हैं. उन गद्दारों ने जो आज देश की सत्ता को लगातार झूठ बोलकर हथिया लिया है, अब अपना फर्जी ज्ञान झाड़ रहे हैं.
गांधी के बाद अब जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ फर्जी आरोप लगा रहे हैं और देश की हर समस्याओं के लिए नेहरू का नाम इस्तेमाल कर अपने पाप व नाकामी को ढकने की कोशिश कर रहे हैं. जिनके एंटायर डिग्री का कोई पता नहीं चल रहा है, वे जवाहरलाल नेहरू की खोज कर रहे हैं. एनडीटीवी के एंकर और पत्रकार रवीश कुमार की यह आंखों खोलने वाली रिसर्च यहां प्रस्तुत है.
भारत ने अपनी समस्याओं को पहचान लिया है. सारी समस्याओं का एक ही नाम है, नेहरू. भारत में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसकी जड़ में नेहरू नहीं हैं. अगर नेहरू नहीं हैं तो वह समस्या नहीं हैं. दुनिया के पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने अकेले दम पर इतनी समस्याएं पैदा की हैं. ट्रैफिक सिग्नल पर गाय दिख जाए, आपको कहना चाहिए कि नेहरू दोषी हैं. हार्वर्ड वालों को रिसर्च में हार्डवर्क करना चाहिए कि क्या कोई ऐसी समस्या है, जिसके लिए नेहरू निर्दोष हैं. दोषी नहीं हैं. जो कोई भी ऐसी समस्या खोज कर लाएगा जिसके लिए नेहरू ज़िम्मेदार नहीं हैं तो मैं उसे अपने खर्चे से नारियल दूंगा, जिसका नाम होगा नेहरू नारियल. राजनीति के रामगढ़ में नेहरू फंस गए हैं. इसलिए आज जवाहर लाल हाज़िर हैं. हम मुकदमा चलाएंगे. नेहरू को सज़ा नहीं मिली तो गब्बर सिंह नेहरू को सजा देगा. 2014 के बाद पब्लिक डिबेट में नेहरू ने ऐसी वापसी की है जैसे कभी किसी ज़माने में दो तीन साल के गैप के बाद अचानक अंशुमान गायकवाड़ की टीम इंडिया में वापसी हो जाती थी. चीन ने मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित नहीं किया तो इसमें भी नेहरू का नाम आ गया.
चीन से कोई गुस्सा नहीं. चीन की पिचकारी को भी कुछ नहीं कहा मगर रविशंकर प्रसाद ने नेहरू को ज़िम्मेदार बता दिया. अरुण जेटली ने तो अपने ट्वीट में क्या नहीं कहा. जेटली ने ट्वीट कर इतना ही कहा कि तुम्हारे दादा की गलती से हुआ. भारत आपके परिवार की गलतियों को दुरुस्त कर रहा है. कश्मीर और चीन दोनों के लिए एक ही व्यक्ति जिम्मेदार है.
मुझे लगा था कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में नेहरू का सारा सिलेबस पूरा हो गया है. लेकिन चीन वाले एंगल मार्केट में नया-नया-सा लगा. रविशंकर प्रसाद ने ‘हिन्दू’ अखबार में छपे शशि थरूर की किताब पर एक लेख का हवाला देते हुए कहा कि नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की सीट चीन को दे दी. शशि थरूर को इंकार करने के लिए सात ट्वीट करने पड़े हैं. थरूर ने कहा कि ‘चीन तो 1945 से ही सुरक्षा परिषद का सदस्य था. 1949 में जब माओ-त्से तुंग की कम्युनिस्ट सरकार बनी तब चांग-काई शेक ताईवान चले आए, जिसे निर्वासित सरकार के रूप में मान्यता मिली. यह सरकार खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना कहती थी. नेहरू को लगा कि छोटे से द्वीप को सुरक्षा परिषद का सदस्य कैसे बनाया जा सकता है. नेहरू ने अन्य स्थायी सदस्यों से कहा कि कम्युनिस्टों के प्रभाव वाले चीन को शामिल किया जाए. अमरीका ने मना कर दिया और भारत से कहा कि वही सदस्यता ले ले. नेहरू को लगा कि यह गलत होगा. चीन के साथ एक और नाइंसाफी होगी. भारत अपने दम पर एक दिन स्थायी सदस्यता लेगा.’ थरूर ने लिखा है कि ‘वैसे भी भारत चीन को हटाकर सदस्य नहीं बन सकता था, जब तक कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में बदलाव नहीं हो सकता था. और अमरीका पहल करता भी तो रूस वीटो कर देता. इसलिए यह कहना गलत है कि नेहरू ने चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता गिफ्ट कर दी.’
1945 से 1971 तक रिपब्लिक ऑफ चाइना सुरक्षा परिषद का सदस्य था. 1971 के बाद पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना सुरक्षा परिषद का सदस्य बना. तब तक नेहरू का निधन हो चुका था. बीबीसी हिन्दी ने इस पर एक लेख प्रकाशित किया है. इस लेख में 27 सितंबर, 1955 को संसद में दिए गए नेहरू के बयान का हवाला है जिसे मैं पढ़ रहा हूं. इस दिन नेहरू जवाब देते हैं कि ’यूएन में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के लिए औपचारिक या अनौपचारिक रूप से कोई प्रस्ताव नहीं मिला. कुछ संदिग्ध संदर्भों का हवाला दिया जा रहा है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं है. संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद का गठन यू-एन चार्टर के तहत किया गया था और इसमें कुछ खास देशों की स्थायी सदस्यता मिली थी. चार्टर में बिना संशोधन के कोई बदलाव या कोई नया सदस्य नहीं बन सकता. ऐसे में कोई सवाल ही नहीं उठता कि भारत को सीट दी गई और भारत ने लेने से इंकार कर दिया. हमारी घोषित नीति है कि संयुक्त राष्ट्र में सदस्य बनने के लिए जो भी देश योग्य हैं, उन सबको शामिल किया जाए.’
रविशंकर प्रसाद के अलावा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ट्वीट में 2 अगस्त, 1955 को मुख्यमंत्रियों के नाम नेहरू के एक पत्र का हवाला दे दिया. बीजेपी ने भी 2 अगस्त, 1955 के पत्र का हवाला दिया, जिसमें उनके अनुसार लिखा हुआ था, ’अनौपचारिक रूप से अमरीका ने राय दी थी कि चीन को संयुक्त राष्ट्र में लिया जाए मगर सुरक्षा परिषद में नहीं और भारत को चीन की जगह लिया जाना चाहिए. हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि चीन से रिश्तों पर असर पड़ेगा और यह चीन जैसे महान देश के साथ अन्याय होगा कि वह सुरक्षा परिषद में न रहे.’
क्या वाकई नेहरू ने ऐसा कहा था. हमने सलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू सेकेंड सीरीज़ वाल्यूम 29 के पेज नंबर 439, 440, 441 पेज नंबर पर इस पत्र को देखा. सलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू के सारे पत्रों और लेखों को छापा गया है. पार्ट वन में 14 वाल्यूम हैं. 60 वाल्यूम हैं सेकेंड पार्ट में.
लंबा पत्र है. इसके पैरा 3 में नेहरू लिखते हैं कि ‘जीनिवा में अमरीका और चीन के राजदूत की मुलाकात दोनों देशों के संबंधों की दिशा में छोटी शुरूआत है, फिर भी महत्वपूर्ण है. चीन में कैद अमरीकी वायुसैनिकों को रिहा किए जाने से संबंधों में काफी सुधार होगा. प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाई का भाषण भी नरम था.
इस तारीख के पत्र में तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लेकर कोई बात नहीं है. तो फिर जेटली किस पत्र का हवाला दे रहे हैं. सरकार अक्सर कहती रही है कि भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाया जाना चाहिए. क्या सरकार ने कभी नेहरू को मिले प्रस्ताव का हवाला दिया है, इस बारे में वित्त मंत्री न सही तो कम से कम कृषि मंत्री तो बता ही सकते हैं.
1929 में लाहौर कांग्रेस में नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे तब उनकी उम्र मात्र 40 साल थी. सोचिए 40 साल की उम्र का यह नौजवान आज़ादी की लड़ाई के एक महत्वपूर्ण संगठन का नेतृत्व संभाल रहा था. गांधी लाहौर कांग्रेस में नेहरू का परिचय कराते हुए कहते हैं कि ‘वह निसंदेह एक चरमपंथी हैं. जो अपने वक्त से कहीं आगे की सोचते हैं. लेकिन वह इतने विनम्र और व्यावहारिक हैं कि रफ्तार को इतना तेज़ नहीं करते कि चीज़ें टूट जाएं. वह स्फटिक की तरह शुद्ध हैं. उनकी सत्यनिष्ठा संदेह से परे है. जो भय और निंदा से परे है. राष्ट्र उनके हाथों में सुरक्षित है.’ आज़ादी की लड़ाई में नेहरू 9 बार जेल गए. 3259 दिन जेल में काटे हैं. 9वीं बार जब जेल गए तो 1051 दिन तक बंद रहे. यानी तीन साल तक लगातार जेल में काटे. आज कल के नेताओं की एंटायर डिग्री का पता नहीं चलता, मगर नेहरू ने करीब 550 पन्नों की किताब लिखी थी, डिस्कवरी ऑफ इंडिया. भारत एक खोज.
हमने यह जानकारी पीयूष बबेले की किताब नेहरू मिथक और सत्य से ली है. यह किताब हिन्दी में है और संवाद प्रकाशन ने छापी है. यह किताब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में नेहरू को लेकर फैलाए गए झूठ का जवाब देती है. हमारे नेता हर बात में नेहरू को ज़िम्मेदार मानते हैं.
कोलकाता के अखबार टेलिग्राफ ने तो कमाल का पेज बनाया है. उन आरोपों को जमा किया है जिसमें नेहरू को जिम्मेदार बताया गया है. नेहरू की विरासत को मिटा देने का सुख किसे मिल रहा है और किस कीमत पर मिल रहा है, इसे समझने का वक्त कहां है. इस बहस में एक तथ्य यह भी आ गया है कि वाजपेयी ने भी चीन के साथ तिब्बत को लेकर संधियां कर गलती की थी.
2014 के बाद व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में नेहरू के बारे में इतना झूठ बोला गया कि कई लोग उसे सही मान कर घूमते रहते हैं. उन जानकारियों को दुरुस्त करना अब असंभव है. इस प्रोजेक्ट के दो मकसद लगते हैं. नेहरू की छवि खराब करना और दूसरा यह साबित कर देना कि झूठ बोल कर लोगों को उल्लू बनाया जा सकता है.
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