यह है भारत के संविधान की प्रस्तावना, जिसे तत्कालीन मनीषियों ने शब्दों में पिरोया था, जिसपर भारत की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को निर्मित किया गया था, जो आज की तारीख में न केवल एक शब्द बनकर रह गया है, अपितु वर्तमान शासक इस शब्दों को भी खत्म कर देने पर आमादा है. आज भारतीय संविधान की इस प्रस्थापनाओं पर निर्मित तमाम संस्थायें न केवल खत्म कर दी गई है, वरन इस पर मंजे हुए गुंडे काबिज हो गये हैं. आइये, एक नजर भारतीय संविधान की इस प्रस्थापना पर डालते हैं, जिसपर भारत की विशाल इमारतें खड़ी की गई है –
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं.
भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुखिया नरेन्द्र दामोदार दास मोदी के नेतृत्व में संविधान की धज्जियां किस तरह उड़ाई जा रही है, इसका कुछ उदाहरण हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं.
उदाहरण संख्या – 1 : भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बने संविधान के चौथे स्तभ दलाल मीडिया का नंगा स्वरूप –
टीआरपी स्कैम में गिरफ्तार बार्क के सीईओ पार्थो दासगुप्ता का मुंबई पुलिस को दिया गया हस्तलिखित बयान –
मैं अर्नब गोस्वामी को 2004 से जानता हूं. हम टाइम्स नाउ में एक साथ काम किया करते थे. मैंने 2013 में बार्क के सीइओ का पदभार संभाला. अर्नब गोस्वामी ने साल 2017 में रिपब्लिक टीवी लॉन्च किया. रिपब्लिक टीवी लॉन्च करने से पहले भी वह मुझसे चैनल लॉन्च करने की योजनाओं पर चर्चा करते थे. वह परोक्ष रूप से हिंट दिया करते थे कि मैं उनके चैनल को अच्छी रेटिंग दिलाने में मदद करूं. गोस्वामी को ये अच्छी तरह पता था कि मैं ये जानता हूं कि टीआरपी सिस्टम कैसे काम करता है. उन्होंने मुझे इस बात का प्रलोभन दिया कि वह भविष्य में मेरी मदद करेंगे.
मैंने अपनी टीम के साथ काम करके ये सुनिश्चित किया कि रिपब्लिक टीवी को 1 नंबर रेटिंग मिले. ये 2017 से 2019 तक चला होगा. इस दौरान 2017 में अर्नब गोस्वामी लोअर परेल स्थित सेंट रेजिस होटल में मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले और मेरे परिवार की फ्रांस एवं स्विट्जरलैंड ट्रिप के लिए 6000 अमेरिकी डॉलर दिए. इसके बाद 2019 में लोअर परेल स्थित सेंट रेजिस होटल में अर्नब व्यक्तिगत रूप से मिले और मेरे परिवार की स्वीडन एवं डेनमार्क यात्रा के लिए 6000 अमेरिकी डॉलर दिए. 2017 में ही अर्नब गोस्वामी आईटीसी होटल में मुझसे मिले और बीस लाख रुपये दिए, 2018 और 2019 में भी गोस्वामी मुझसे मिले और हर बार 10 लाख रुपये दिए.
इतनी बड़ी साजिश को अंजाम देने के बाद भी अर्नब गोस्वामी जिसतरह कानून के सिकंजों से बाहर है, और छोटे छोटे मामलों में बड़े बड़े पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, लेखकों आदि को जेलों में सड़ाया जा रहा है. यहां तक कि स्टेन स्वामी, वरवर राव जैसे मृत्यु शैय्या पर जा चुके समाजसेवी व अन्तर्राष्ट्रीय कवियों को भी जेल से रिहा नहीं किया जा रहा है, वहीं अर्नब गोस्वामी जैसे अन्तर्राष्ट्रीय भांड, जो सारी दुनिया में बदनाम हुआ है और अपनी कुकृत्यों के लिए विदेशी संस्थानों से 280 बार रिकॉर्ड माफी मांग चुका है, को रिहा करने में पल भर की देरी महाप्रलय का संकेत देने लगता है. यह एक बड़ा सवाल है, जो महापतन को ही इंगित करता है, जो बगैर केन्द्रीय सत्ता के अभूतपूर्व पतन के संभव नहीं है.
उदाहरण – 2 : संविधान के स्तम्भ व्यवस्थापिका और एक पार्टी के रूप में भाजपा/आरएसएस के पतन का एक शानदार उदाहरण है, गौरक्षक दल के रूप में –
कल एक महत्वपूर्ण खबर दब गयी. दरअसल कल मध्यप्रदेश की बालाघाट पुलिस ने बूचड़खाने में ले जाने के लिए गाय-बैलों की तस्करी कर रहे कुछ लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया. विवेचना में पता लगा कि इनमें बीजेपी की छात्र इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) के स्थानीय नेता भी शामिल हैं. मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने कहा, कि ‘मुख्य आरोपी मनोज और अरविंद गायों और अन्य जानवरों की मौबाजार (बालाघाट में पशुबाजार) से खरीद करते थे. बाद में ये चरवाहों की मदद से मवेशियों को महाराष्ट्र सीमा पर मौजूद बोदालकासा गांव में ले जाते थे. यहां से एक व्यापारी पशुओं को महाराष्ट्र के बूचड़खानों में भेजता था.’
बालाघाट पुलिस के एसपी अभिषेक तिवारी ने कहा, ‘हम मामले की जांच कर रहे हैं. यह गायों की तस्करी का संगठित गिरोह है. पुलिस आरोपियों को पकड़ने की कोशिश में है.’ मनोज परधी भाजयुमो का एक महासचिव बताया जाता है. शायद आपको याद हो कि मशहूर पत्रकार निरंजन टाकले ने लगभग दो साल पहले अनेक पत्रकारों के सामने अपने एक उद्बोधन में यह खुलासा किया था कि संघ से जुड़े बजरंग दल के लोगों द्वारा चलाया गया जबरन वसूली नेटवर्क पशु व्यापारियों से पैसे कैसे वसूलता है.
इस सच्चाई का पता लगाने के लिए, उन्होंने खुद को लगभग 3 महीने तक रफीक कुरैशी नाम के एक मुस्लिम पशु व्यापारी के रूप में पेश किया और स्वयं इस नेटवर्क का हिस्सा बनकर राजस्थान और गुजरात के जानवर मंडी से मवेशियों को लाने ले जाने में शामिल रहे. इस तीन महीनों के दौरान उन्होंने यह देखा कि बजरंग दल ट्रकों को रोककर जबरन वसूली में लगा है. अगर गाय का ट्रक लेकर पार करना है, तो साढ़े चैदह हजार से पंद्रह हजार तक देना होता है. भैंस का ट्रक पार करने के लिए साढ़े छह हजार और पारों के लिए पांच हजार तक की रकम देनी पड़ती है.
निरंजन टाकले ने यह भी खुलासा किया कि जैसे बजरंग दल के नेता और उनके लोग अपनी इस उगाही को कायम रखने के लिए बीच-बीच में किसी को भी मार देते हैं, ताकि इस व्यापार पर उनका कब्जा बना रहे, लोगों में डर बना रहे और उनका कारोबार चलता रहे. यह है इन तथाकथित गौसेवकों की सच्चाई.
उदाहरण – 3 : सड़ रही न्यायपालिका और उसके बलात्कारियों के पक्ष में पतन
देश की सर्वोच्च न्यायपालिका के पतन का उदाहरण तो आये दिन देश की जनता के सामने आती ही रहती है, परन्तु न्यायपालिका के बलात्कारियों के संग एकजुट होने का आश्चर्यचकित करने वाला उदाहरण भी अब देश के सामने आ रहा है. पहले भी आरएसएस के प्रवक्ता कहते आये हैं कि हिन्दू धर्म में बलात्कार करना कोई अपराध नहीं है. अब न्यायपालिका खुलकर बलात्कारियों के पक्ष में आ गया है, जिसमें बांबे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच का फैसला भौंचक कर देने वाला है.
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि 12 साल की नाबालिग बच्ची को निर्वस्त्र किए बिना, उसके ब्रेस्ट को छूना यौन हमला (sexual assault) नहीं कहा जा सकता. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यौन हमले की परिभाषा में शारीरिक संपर्क प्रत्यक्ष होना चाहिए या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए.
इससे पहले भी न्यायपालिका का बलात्कारियों प्रति भावनात्मक रवैया दिखता रहा है. उन्नाव में रेप पीड़िता के केश में भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर को बचाने के लिए काफी प्रयास दर्ज किये जा चुके हैं, जिसमें रेप पीड़ित बच्ची के परिवारों को ही फर्जी केशों में जेल में बंद कर दिया और अंत में उसके परिवार पर ट्रक चढ़वा दिया जाने लगा. एक अन्य मामले में बलात्कारी गृहमंत्री स्वामी चिन्मयानंद के बजाय एफआईआर दर्ज पीड़ित बच्ची पर किया गया और उसे ही जेल में बन्द कर दिया.
उदाहरण – 4 : किसान आंदोलन के विरूद्ध भाजपा की केन्द्र सरकार की साजिशें –
19 जनवरी को राजधानी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले में ट्रैक्टर रखने वाले कई किसानों को नोटिस दिया गया था, जिसमें उनसे 50,000 से लेकर 10 लाख तक का पर्सनल बॉन्ड और इतने की ही श्योरिटी जमा करने को कहा गया. सीतापुर में ऐसे नोटिस सैकड़ों किसानों को दिए गए ताकि वो ट्रैक्टर रैली में शामिल होने के लिए निकल न पड़े.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी की योगी सरकार से दो फरवरी तक इस बारे में जवाब मांगा है कि आखिर किस आधार पर गरीब किसानों को ‘ब्रीच ऑफ पीस’ के यह नोटिस भेजे गए थे. दरअसल कोर्ट ने सोशल एक्टिविस्ट अरुंधति धुरु की एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने बताया है कि सीतापुर में ऐसे नोटिस सैकड़ों किसानों को दिए गए हैं.
मामले की सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच को याचिका में बताया गया है कि ‘राज्य सरकार की ओर से जारी ये नोटिस न तो बस आधारहीन हैं, बल्कि किसानों के मूल अधिकार भी छीनने वाला है क्योंकि पुलिस इन किसानों के घरों को घेरकर बैठी हुई है और वो अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.’
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया है कि पर्सनल बॉन्ड और श्योरिटी की रकम हद से भी ज्यादा थी और गरीब किसानों से नहीं मांगी जा सकती थी, वो भी इन्हें बस स्थानीय पुलिसकर्मियों के रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया था और किसानों को अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं मिला था. इस हद तक जाकर आंदोलन को कुचलने की कोशिश हो रही है.
किसानों के 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की घोषणा काफी पहले कर दिये जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार के ओर से भी एक पत्र जारी किया गया था, जो किसानों के ट्रैक्टर परेड में हिंसा फैलाने और हिंसा फैलाने के लिए अपने कार्यकत्र्ताओं अथवा गुंडों को आश्वस्त करने वाला था. 15 जनवरी, 2021 को जारी पत्र ‘राष्ट्रहित में किसान आन्दोलन संबंधी आग्रह’ शीर्षक में भाजपा की ओर से साफ शब्दों में कहा गया था कि –
सभी कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों को सूचित किया जाता है कि किसान नेता और सरकार के बीच हो रही बातचीत का, किसान संगठनों के जिद्दी और अड़ियल रवैया की वजह से, कोई परिणाम नहीं निकलता देख हमें खुद को राष्ट्रहित हेतु मजबूत करना होगा. कहीं भी सरकारी सम्पति के नुक्सान (मोबाइल टाबर, दुकान, बीजेपी कार्यालय आदि) और सरकार विरोधी गतिविधियों और भाषणों को वर्जित करना होगा. किसान संगठनों द्वारा दिल्ली में की जा रही 26 जनवरी, 2021 की ट्रैक्टर रैली का विरोध करते हुए इन देशद्रोहियों की हर कोशिश नाकाम करने का प्रयतन करना होगा.
अंत : जरूरत पड़ने पर जुल्म के बदले की गयी हिंसा पर कोई भी कानूनी करवाई न होने का भरोसा दिलाते हुए, आने वाली रणनीति के लिए हम अपने सभी कार्यकर्ता और स्वयंसेवको को अपने प्रदेश अध्यक्ष/नजदीकी कार्यालय से संपर्क में रहने का आग्रह करते हैं.
सधन्यवाद,
भवदीय
(पराजेश भाटिया)
महामंत्री एवं प्रदेश मुख्यालय प्रमुख, भारतीय जनता पार्टी, दिल्ली प्रदेश
संघी कार्यकर्ता नकली पुलिस बनकर किसानों पर हमला किया
किसान आंदोलन के विरूद्ध भाजपा की ओर से जारी यह पत्र इस बात के लिए अपने गुंडों को आवश्वस्त करने वाला, किसान आन्दोलन को बदनाम करने और उसके विरूद्ध साजिश रचने का अथक प्रयास किया है, जिसका परिणाम किसी न किसी रूप में सामने आया भी है. यहां तक कि पुलिस का पोशाक पहनकर संघी गुण्डों ने किसान आन्दोलन पर हमला किया, किसानों का खून बहाया, उनकी हत्या की और दलाल मीडिया के माध्यम से किसान आन्दोलन को बदनाम करने का एक मुहिम छेड़ दिया.
उपरोक्त चंद उदाहरण यह बताने के लिए पर्याप्त है कि देश का संविधान महज चंद सालों में आरएसएस के नियंत्रण में महज एक शब्द बनता जा रहा है. देश का तमाम संवैधानिक संस्थान एक-एक कर धारासायी होता जा रहा है. इस बुनियादी तथ्य को नहीं भुलाना चाहिए कि आरएसएस ने कभी भी भारतीय संविधान का सम्मान नहीं किया है, कि उसने हर बार भारतीय संविधान को जलाया है, उसका मानमर्दन किया है, उसे बदलकर मनुस्मृति लागू करने को कृतसंकल्पित है. और यह सब कुछ भारतीय संविधान का नाम लेकर ही किया जा रहा है.
जब तमाम संवैधानिक संस्थान एक-एक कर ढ़हने लगे और जनता का विश्वास खाने लगे तो वह दिन दूर नहीं जब संविधान को ही बदल दिया जाये. विगत दिनों यही घटना सारी दुनिया ने अमेरिका में होते देखा था, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने झूठ और हथियार के बल पर संविधान को उलटने और अपनी सत्ता बरकरार रखने की घृणित साजिश की थी. किन्तु, जब अमेरिका के संविधान के साथ डोनाल्ड ट्रंप ने छेड़छाड करने की कोशिश की तो अमेरिकी संविधान की अन्य तमाम संवैधानिक संस्थायें उठ खड़ी हुई और पूरी ताकत से डट गई.
अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना और शक्तिशाली लोकतांत्रिक देश है और दुनिया के पूंजीवाद का सबसे मजबूत गढ़ भी. वहीं डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल महज 4 सालों का था, जो इतने कम समय में देश के संविधान की तमाम संस्थानों को कमजोर या खत्म नहीं कर पाया था, यही कारण है कि अमेरिकी संविधान की तमाम संस्थानों की रीढ़ की हड्डी टेढ़ी नहीं हुई थी.
परन्तु, भारत का संविधान तो महज 70 सालों का है, जिसमें भी 12 सालों का इतिहास संघियों ने सत्ता पर रहते हुए बिताया है, और पिछले 100 सालों से भी अधिक समय से आरएसएस घुन की भांति देश को खा रही है. ऐसे में भारत का चंद दशक पुराना लोकतंत्र और लगभग ढह चुकी तमाम संवैधानिक संस्थाओं का विकृत हो जाना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भारत में लोकतंत्र के दिन अब गिने-चुने रह गये हैं. भारत का लोकतंत्र और उसका संविधान खत्म होने के कागार पर है, क्योंकि इसको संभालने वाली तमाम संवैधानिक स्तम्भ अपनी निष्ठा संविधान और जनता के बीच खो चुकी है.
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