आई. जे. राय, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ता
आज भी संघ-भाजपा जैसी साम्प्रदायिक शक्तियां और गोदी मीडिया भगतसिंह के विचारों पर पर्दा डालकर खुलेआम हिन्दू-मुस्लिम दंगे करवाकर उनके विचारों का क़त्ल कर रहे हैं. युवा भी अब भगतसिंह को पढ़ने की बजाय उन्हें पूजने में लगे हुए हैं. ऐसे में क्रांतिकारियों के खिलाफ फैलाए गए दुष्प्रचार के जाल से लोगों को निकालने के लिए भाजपा और संघ की खिलाफत करने की सख्त जरूरत है.
आरएसएस की स्थापना करने वाले डॉ. हेडगवार ने आज़ादी की लड़ाई के समय युवाओं को भगत सिंह के प्रभाव से बचाने के लिए खूब मेहनत की थी. उनके बाद दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने भी भगत सिंह के आंदोलन को कोसा था. संघ के पास ऐसे साहित्य की भरमार है जो युवाओं को भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के बताए राह पर चलने से रोकता है. संघ के तीसरे प्रमुख बालासाहब देवरस ने खुद एक ऐसे किस्से के बारे में लिखा है, जिसमें डॉ. हेडगेवार ने उन्हें और दूसरे युवाओं को भगत सिंह और उनके विचारों के प्रभाव से बचाने के लिए प्रपंच रचा था.
‘कॉलेज की पढ़ाई के समय हम (युवा) सामान्यतः भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के आदर्शों से प्रभावित थे. कई बार मन में आता कि भगत सिंह का अनुकरण करते हुए हमें भी कोई न कोई बहादुरी का काम करना चाहिए. हम आरएसएस की तरफ कम ही आकर्षित थे क्योंकि वर्तमान राजनीति, क्रांति जैसी जो बातें युवाओं को आकर्षित करती हैं, पर संघ में कम ही चर्चा की जाती है. जब भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी, तब हम कुछ दोस्त इतने उत्साहित थे कि हमने साथ में कसम ली थी कि हम भी कुछ खतरनाक करेंगे और ऐसा करने के लिए घर से भागने का फैसला भी ले लिया था. पर ऐसे डॉक्टर जी (हेडगेवार) को बताए बिना घर से भागना हमें ठीक नहीं लग रहा था, तो हमने डॉक्टर जी को अपने निर्णय से अवगत कराने की सोची और उन्हें यह बताने की जिम्मेदारी दोस्तों ने मुझे सौंपी.
हम साथ में डॉक्टर जी के पास पहुंचे और बहुत साहस के साथ मैंने अपने विचार उनके सामने रखने शुरू किए. ये जानने के बाद इस योजना को रद्द करने और हमें संघ के काम की श्रेष्ठता बताने के लिए डॉक्टर जी ने हमारे साथ एक मीटिंग की. ये मीटिंग सात दिनों तक हुई और ये रात में भी दस बजे से तीन बजे तक हुआ करती थी. डॉक्टर जी के शानदार विचारों और बहुमूल्य नेतृत्व ने हमारे विचारों और जीवन के आदर्शों में आधारभूत परिवर्तन किया. उस दिन से हमने ऐसे बिना सोचे-समझे योजनाएं बनाना बंद कर दीं. हमारे जीवन को नई दिशा मिली थी और हमने अपना दिमाग संघ के कामों में लगा दिया. (देखें- स्मृतिकण- परम पूज्य डॉ. हेडगेवार के जीवन की विभिन्न घटनाओं का संकलन, आरएसएस प्रकाशन विभाग, नागपुर, 1962, पेज- 47-48)
साल 2018 त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद बीजेपी समर्थकों ने साउथ त्रिपुरा में बुलडोज़र से व्लादमीर लेनिन की मूर्ति को तोड़ दिया. मूर्ति गिरने के बाद भाजपा के नेता लेनिन के विचारों को भी निशाना बनाने लगे. अब इन मूर्खों को यह कौन समझाए कि लेनिन ने दुनिया भर के क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्त्रोत थे और भगत सिंह भी उनके विचारों को मानते थे. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर चल रहे मुक़दमे की एक सुनवाई 21 जनवरी को थी. इसी दिन लेनिन की पुण्यतिथि भी होती है.
उस समय के अख़बारों की रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भगत सिंह और उनके साथी 21 जनवरी, 1930 को अदालत में लाल रुमाल बांध कर हाजिर हुए थे. जैसे ही मजिस्ट्रेट ने अपना आसन ग्रहण किया उन्होंने “समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद,” “कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिन्दाबाद,” “जनता जिन्दाबाद,” “लेनिन का नाम अमर रहेगा,” और “साम्राज्यवाद का नाश हो” के नारे लगाये. इसके बाद भगत सिंह ने अदालत में तार का मजमून पढ़ा और मजिस्ट्रेट से इसे तीसरे इंटरनेशनल को भिजवाने का आग्रह किया.
लेनिन दिवस के अवसर पर हम उन सभी को हार्दिक अभिनन्दन भेजते हैं, जो महान लेनिन के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी कर रहे हैं. हम रूस द्वारा किये जा रहे महान प्रयोग की सफलता की कमाना करते हैं. सर्वहारा विजयी होगा. पूंजीवाद पराजित होगा. साम्राज्यवाद की मौत हो. भगत सिंह ने कोर्ट में एक नारा लगाया था, “पूंजीवाद पराजित होगा.” लेकिन हमारे प्रधानसेवक इसी नारे के उलट पूंजीपतियों की गोद में जाकर बैठ गए हैं. कभी उनका अरबों-खरबों का क़र्ज़ माफ़ करते हैं, तो कभी बैंकों के कर्जदारों को देश से ही भगा देते हैं.
मोदी और संघ परिवार धर्म और भगवान के नाम पर जनता को गुमराह करते हैं, उनको आपस में लड़ाते हैं, दंगे करवाते हैं और फिर वोटों की भीख भी मांगते हैं. इसी के उलट भगत सिंह ने कहा था – “इन ‘धर्मों’ ने हिन्दुस्तान का बेड़ा गर्क कर दिया है. और अभी पता नहीं कि यह धार्मिक दंगे भारतवर्ष का पीछा कब छोड़ेंगे. इन दंगों ने संसार की नज़रों में भारत को बदनाम कर दिया है, और हमने देखा है कि इस अन्धविश्वास के बहाव में सभी बह जाते हैं. इन दंगों के पीछे साम्प्रदायिक नेताओं और अख़बारों का हाथ है.”
आज भी संघ-भाजपा जैसी साम्प्रदायिक शक्तियां और गोदी मीडिया भगतसिंह के विचारों पर पर्दा डालकर खुलेआम हिन्दू-मुस्लिम दंगे करवाकर उनके विचारों का क़त्ल कर रहे हैं. युवा भी अब भगतसिंह को पढ़ने की बजाय उन्हें पूजने में लगे हुए हैं. ऐसे में क्रांतिकारियों के खिलाफ फैलाए गए दुष्प्रचार के जाल से लोगों को निकालने के लिए भाजपा और संघ की खिलाफत करने की सख्त जरूरत है.
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