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और अदानी के इशारे पर पुलिस ने गुड्डी कुंजाम को घर से निकालकर हत्या कर दी

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और अदानी के इशारे पर पुलिस ने गुड्डी कुंजाम को घर से निकालकर हत्या कर दी

पेड़ बचाने गये गुड्डी कुंजाम की पुलिस ने हत्या कर दी

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ता
 
गुड्डी मेरे बच्चों के भविष्य के लिए मरा. पेड़ कट जायेंगे तो मेरे बच्चे भी मर जायेंगे. गुड्डी पेड़ नहीं बचा रहा था, वो मेरे बच्चों को बचा रहा था. गुड्डी आपके बच्चों को भी बचाने के लिए मरा. ये आज के समय के स्वतन्त्रता सेनानी हैं.

गुड्डी मर गया ! गुड्डी क्यों मरा ? गुड्डी इसलिए मरा क्योंकि वह पेड़ों और पहाड़ को बचाना चाहता था. गुड्डी पेड़ों और पहाड़ को बचाना चाहता था ? तो ऐसे अच्छे इंसान को किसने मारा ? ज़रूर किसी ऐसे ने मारा होगा जिसे पेड़ों और पहाड़ों से प्यार नहीं है. क्या बात करते हैं, ऐसा भला कौन होगा जिसे पेड़ों और पहाड़ों से प्यार ना हो ? जो पेड़ों और पहाड़ से प्यार नहीं करता, फिर वो किससे प्यार करता है ? वो कागज़ के रुपयों से प्यार करता है ?

कौन है वो जो कागज़ के रुपयों से इतना ज़्यादा प्यार करता है कि वो पेड़ों और पहाड़ों को बचाने वाले को मार सकता है ? मरने वाले का नाम गुड्डी है. मारने वाले का नाम अडानी है.

क्या कह रहे हैं अडानी किसी को कैसे मार सकता है ? अडानी खुद नहीं मारता. अडानी की तरफ से सरकार और पुलिस अडानी और रूपये के बीच में आने वाले को मार देती है. अडानी को बस्तर में एक पहाड़ का लोहा खोद कर बेचने के लिए दिया गया. वही अडानी, मोदी जी का दोस्त जिसे लेकर वह आस्ट्रेलिया गये थे और वहां ठेका दिलाया भारत में. अरहर की दाल आयात करके दो सौ रूपये बिकवाई और स्टेट बैंक को बड़ा कर्ज़ा देने के लिए कहा था. तो अडानी ने पहाड़ मिलते ही अपने लोगों को पहाड़ के पेड़ काटने के लिए भेज दिया. अडानी के लोगों ने दो हज़ार पेड़ काट कर जला दिए.




पास में ही गुड्डी रहता था. गुड्डी पढ़ा-लिखा तो था नहीं. उसे फेसबुक, ट्विटर चलाना भी नहीं आता था, जो अडानी के खिलाफ पोस्ट लिख कर अपने फर्ज़ को पूरा समझ लेता. गुड्डी ने गांव के आदिवासियों को इकट्ठा किया और अडानी के लिए पेड़ काटने वाले लोगों के पास गया और उनसे पेड़ काटना बंद करने के लिए कहा. अडानी के लोगों ने गुड्डी को धमकाया और वहां से भाग जाने के लिए कहा.

गुड्डी के साथ गये आदिवासी, अडानी के लोगों से भिड़ गये और उन्हें वहां से भगा दिया. अडानी का पेड़ काटने का काम बंद हो गया. अब अगर अडानी का काम बंद हो जाएगा तो पूरी भारत सरकार ही हिल जायेगी. वही हुआ. सरकार हिली. सरकार ने पुलिस से कहा. एसपी ने सिपाहियों को भेजा. सिपाही गये और गुड्डी को गोली मार दी. सरकार ने कहा ‘गुड्डी नक्सलवादी था.’

जब मैं यह लिख रहा हूं तो मेरी आंखें भरी हुई हैं. गुड्डी मेरे बच्चों के भविष्य के लिए मरा. पेड़ कट जायेंगे तो मेरे बच्चे भी मर जायेंगे. गुड्डी पेड़ नहीं बचा रहा था, वो मेरे बच्चों को बचा रहा था. गुड्डी आपके बच्चों को भी बचाने के लिए मरा. जब मैं यह लिख रहा हूं ठीक इसी समय जेल में सुधा भारद्वाज और अन्य कई सामाजिक कार्यकर्ता इस गर्मी में बिना पंखे के छोटी-छोटी कोठरियों में बंद हैं क्योंकि इन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों की ज़मीनें इन पूंजीपतियों के लिए छीनने का विरोध किया.

ये सामाजिक कार्यकर्ता जेल में हैं क्योंकि इन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों को सरकार द्वारा मारे जाने का विरोध किया था. सरकारी शिक्षिका सोनी सोरी ने जब यह मुद्दा उठाया तो एसपी ने थाने में ले जाकर सोनी सोरी को बिजली के झटके दिए और उसके गुप्तांगों में पत्थर भर दिए.




बस्तर के आदिवासी पत्रकार लिंगा कोड़ोपी ने जब पुलिस वालों द्वारा आदिवासियों के घर जलाने और लड़कियों से बलात्कार का वीडियो यू ट्यूब पर डाला तो पुलिस ने लिंग कोड़ोपी को एसपी के घर ले जाकर एक लकड़ी का डंडा सरसों के तेल में भिगा कर लाल मिर्च पाउडर में लपेट कर लिंगा के मलद्वार में घुसा दिया. उससे लिंगा की आंत फट गई. आज तक लिंगा कोड़ोपी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाया है.

ये आज के समय के स्वतन्त्रता सेनानी हैं. याद कीजिये भगत सिंह ने क्या कहा था ? भगत सिंह ने कहा था कि ‘अंगरेज़ भले ही चले जायें लेकिन उनकी जगह भारतीय पूंजीपति किसानों और मजदूरों का शोषण करते रहेंगे. और जब तक यह शोषण है. तब तक जनता इसके खिलाफ संघर्ष करती रहेगी.’ भगत सिंह ने यह भी कहा था ‘अमीरों के लिए सरकार ने एक युद्ध छेड़ा हुआ है. हम सिर्फ उस युद्ध का जवाब दे रहे हैं.’

भगत सिंह के शब्द आज भी प्रासंगिक हैं. युद्द जारी है. अमीरों के लिए जंगलों पर कब्ज़ा करने के लिए हज़ारों सिपाही जंगलों में भेज दिए गये हैं. वो आदिवासियों को मार रहे हैं. औरतों से बलात्कार कर रहे हैं. निर्दोषों को जेलों में ठूंस रहे हैं. गुड्डी इस देश को बचाने के लिए मारा गया. ये पहाड़, ये पेड़, ये आदिवासी ही तो देश हैं.

गुड्डी के लिए कोई नहीं लिखेगा. वो अनाम मर जाएगा और वो जिनके लिए मरा, वो उसके लिए ज़रा भी दुखी ना होंगे. मेरी कलम कहती है मैं उनकी कथा लिखूं जो अकथ ही रहेंगे, ठीक वैसे ही जैसे हजारों वो लोग जो हमारे लिए मारे गये और जिनकी कहानियां हम कभी नहीं सुन पाए.

(लेखक गांधीवादी कार्यकर्ता हैं और आजकल हिमाचल प्रदेश में रहते हैं)




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