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अथ वीर सावरकर कथा

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अथ वीर सावरकर कथा

वीर सावरकर सिर्फ नाम से ही वीर नहीं थे. जिगर और कलेजे से भी वीर थे. फिरंगी उनके नाम से ही थर-थर कांपते थे और हमेशा पैंट के अंदर डायपर पहनते थे. हिंदुस्तान में व्यापार करने के लिए अंग्रेज वीर सावरकर को ₹60 महीना रंगदारी देते थे. देखा जाए तो वीर सावरकर हिंदुस्तान के पहले हफ्ता वसूली करने वाले भाई थे.

फिरंगी जब वीर सावरकर के घर के आगे से गुजरते थे तो जूते चप्पल उतार कर हाथ में ले लेते थे और दूर जाकर पहनते थे. बड़े-बड़े ऑफिसर अंग्रेजों की वाइफ भी वीर सावरकर के सामने आने से बचती थी, न जाने कब किस पर वीर सावरकर का दिल आ जाए इसलिए अंग्रेज लोग अपनी वाइफों को लंदन में ही रखते थे.

जब भी लंदन से क्वीन विक्टोरिया हिंदुस्तान रहने आती थी तो उसकी ड्यूटी थी रोजाना खाना बनाकर वीर सावरकर को पहुंचाना. कहते हैं वीर सावरकर जब मूत्र विसर्जन करते थे तो धार 10 मीटर दूर तक जाती थी.

सावरकर के शरीर का हर अंग वीर था. लोग कहते हैं सावरकर ने कभी भी अखरोट तोड़ने के लिए दांतों का इस्तेमाल नहीं किया.

वीर सावरकर के घर में सैकड़ों अंग्रेज नौकर-चाकर थे. ‌वीर सावरकर ने अपनी पालकी उठाने के लिए चार फिरंगी कहार रखे हुए थे. वीर सावरकर के हाथ में हर वक्त चाबुक रहती थी. इतिहासकार लिखते हैं जब भी वीर सावरकर की चाबुक लहराती थी, तो अंग्रेजों की तशरीफ़ लाल कर देती थी.

इतिहास बताता है, वीर सावरकर ने कितने ही फिरंगियों को अंडमान निकोबार (काले पानी) की जेलों में सड़ा रखा था. फिरंगी रोज़ सैकड़ों माफ़ीनामें लिखते थे. आख़िर फिरंगियों ने वीर सावरकर की ताक़त के आगे हथियार डाल दिए और अपना व्यापार हिंदुस्तान से समेट कर उन्हें इंग्लैंड भागना पड़ा. लेकिन सावरकर की यह वीरगाथाएं विरोधी मीडिया कभी नहीं बताएगी.

  • नदीम

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