दुर्गा शादीशुदा है या कुंआरी ? यदि शादीशुदा है और लोग इन्हें माता कहते है तो इनके पति का नाम क्या है ? माता तो कह दिया, पिता जी किसको कहेंगे ? यदि ये कुमारी है तो सोलह श्रृंगार इनपे क्यों चढ़ता है ? क्योंकि हिंदु धर्म में कोई कुंवारी लड़की श्रृंगार नहीं करती है. आखिर पंडे पुजारी क्या छुपा रहे हैं ? यदि किसी की मां हो और बाप का पता ही न हो, ऐसे संतानो को आप क्या कहेंगे ?
दुर्गा के ग्रंथ ‘दुर्गा सप्तशती’ के अनुसार दुर्गा की उत्पत्ति में तो दुर्गा के मां और बाप दोनों के नाम का ही पता नहीं चलता ! इस ग्रंथ में बताया गया है कि जब महिषासुर को इंद्र, ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत अन्य कोई देवता या सारे देवता एक साथ मिलकर भी नहीं हरा पाए तो महिषासुर पर विजय प्राप्त करने के लिए सब देवताओं ने मिलकर अपने-अपने तेज को सम्मिलित किया, उस विशाल तेज से एक स्त्री उत्पन्न हुई, जिसकी हजारों भुजाएं थी.
उस स्त्री से सभी देवताओं ने महिषासुर को मारने की विनती करते हुए अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र दिए और उसे दुर्गा के नाम से संबोधित किया. अब यहां सवाल उठता है कि –
- जिस महिसासुर को मारने के लिए इंद्र का वज्र, विष्णु का सुदर्शन चक्र, शंकर का त्रिशूल काम नहीं कर पाए. देवताओं, ऋषियों के श्राप उसे भस्म नहीं किये या उसकी शक्ति को क्षीण नहीं किये, सभी देवताओं की शारीरिक/बौद्धिक शक्ति उसे नहीं हरा पाई तो देवताओं को यह कैसे भरोसा हो गया कि एक स्त्री उस महिषासुर को हरा देगी ? अरे भाई ! तुम्हें तो कोई खली या दारा सिंह जैसा शक्तिशाली, बलशाली पट्ठा, पहलवान पैदा करना चाहिए था महिषासुर को हराने के लिए. शारीरिक रूप से मनुष्य से कमजोर स्त्री ही क्यों चुनी ? ये तुम्हारी शातिर बुद्धि के विचार तुम्हारी जुबान पर कभी नहीं आएंगे.
- दूसरा दुर्गा को उत्पन्न करने के लिए कोई गांव, शहर, राम व कृष्ण की तरह राजघराना क्यों नहीं ? दुर्गा के मां-बाप का नाम छुपाने का कारण ? क्या दस-बीस, पचास, सौ या अधिक देवों की शक्ति ने सीधे एक जवान स्त्री पैदा कर दी ? कोई बचपन नहीं, कोई मां नहीं, कोई बाप नहीं, क्या ऐसा आविष्कार भारत में ही हुआ है ? या विश्व की किसी अन्य सभ्यता में भी ?
क्या भारत को विश्वगुरु बनाने की वकालत कर दुर्गा की पूजा करने वाले, विश्व जगत के विद्वानों के सामने इस बात को गर्व से कह पाएंगे कि हम एक ऐसी स्त्री की पूजा करते हैं –
- जिसकी मां नहीं है.
- जिसका बाप नहीं है.
- जिसके बचपन का कोई उल्लेख नहीं है.
- जिसको कई सारे लोगों ने (देवताओं ने) अपनी शक्ति से डायरेक्ट जवान पैदा किया.
उस स्त्री को पैदा करने का उद्देश्य
एक महिसासुर नामक असुर जिसे जगत के सर्जनहार ब्रह्मा, जगत के पालनहार विष्णु, जगत के संहारकर्ता शिव समेत सभी देवताओं का राजा इंद्र और सभी देवता एक साथ मिलकर भी परास्त न कर पाए, उसे मारना था.
- उस स्त्री के हजारों हाथ थे.
- वह कुंवारी है किंतु हम उसे मां बोलते हैं !
- उसकी पूजा में विवाहित स्त्री के श्रृंगार के सामान का प्रयोग करते हैं.
- दुर्गा को कुंवारी बताते हैं किन्तु मां बोलते हैं और हमारी कुंवारी बेटी को कोई मां की संज्ञा दे तो उससे झगड़े पर उतारू हो जाएंगे.
सबसे मजेदार बात
उस स्त्री ने महिसासुर के एक ऐसे सेनापति के साथ युद्ध किया जो पांच अरब रथियों की सेना लेकर दुर्गा से लड़ने आया – दुर्गा सप्तशती
अब आप जानते ही होंगे रथी किस प्रकार के योद्धा होते हैं ? जो रथ पर चढ़कर युद्ध करते हैं. उनके रथ को चलाने वाला सारथी अलग होता है. आइये अब जरा इसका एक हिसाब लगाएं –
- इस ग्रंथ के हिसाब से उस समय पांच अरब रथी. रथों को चलाने वाले पांच अरब सारथी = 10 अरब.
- अब युद्ध में कोई बच्चे या बूढ़े तो जाते नहीं थे, जवान ही जाते थे, अर्थात इन 10 अरब लोगों को विवाहित माना जाए तो इनकी 10 अरब पत्नियां हो गईं तो कुल = 20 अरब.
- अब उन दस अरब (रथी+सारथी) के मां-बाप तो होंगे ही तो सारथी और रथी के 20 अरब मां बाप हो गए. तो कुल = 20 +20 = 40 अरब.
- अब उन रथी+सारथी के मात्र एक-एक बच्चा भी मान लिया जाए तो बच्चे हो गए 10 अरब. कुल = 40+10 = 50 अरब जनसंख्या.
दुर्गा के सामने आए एक सेनापति के हिसाब से ही हो रही है. इसके अलावा लाखों करोड़ों सैनिक इस ग्रंथ में इसके अलावा भी बताए हैं और ये जनसंख्या तो मात्र उस हिसाब से है, जो दुर्गा से लड़ने आये. जो नहीं लड़ने आये उसकी जनसंख्या कितनी होगी, यह तो केवल कल्पना ही की जा सकती है. आप जानते हैं आज विश्व की जनसंख्या कितनी है ? लगभग सात अरब. और उस समय कितनी बता दी ? केवल भारत में जहां दुर्गा से युद्ध हो रहा होगा कम से कम 50 अरब.
आज हरित क्रांति में अनाज का प्रचूर मात्रा में उत्पादन होने के बावजूद सरकार 130 करोड़ लोगों के खाने-पीने, रहने को लेकर चिंतित है. उस समय वो 50 अरब से अधिक लोग क्या खाते होंगे ?कहां रहते होंगे ? है कोई जवाब ? दुर्गा पर लिखी गई कहानियां कोरी गप्प के अलावा कुछ नहीं हैं.
- रामनन्दन भगत
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