केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा नागरिकता कानून में खास तरह का संशोधन करने और पूरे देश के पैमाने पर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने की घोषणा के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन फूट पड़े हैं. एक ओर भाजपा, उसके लगुए-भगुवे तथा उसका समर्थक पूंजीवादी प्रचार तंत्र (टीवी, अखबार) हिंसा के नाम पर इन विरोध, प्रदर्शनों को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी ओर भाजपा उम्मीद कर रही है कि इससे जो हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होगा वह उसके लिए फायदेमंद होगा इसलिए व्यापक और भीषण विरोध के बावजूद भाजपा सरकार सीएए और एनआरसी दोनों मुद्दों पर पीछे हटने को तैयार नहीं है.
नागरिक संशोधन कानून पास करते समय भाजपा सरकार ने यह दावा किया कि यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के पीड़ित अल्पसंख्यकों (हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को भारत में नागरिकता देने के लिए है. यह भी कहा गया कि भारत हिन्दुओं का स्वाभाविक देश है और वे कहां जाएंगे ? इस सबके पीछे यह स्थापित करने की मंशा है कि यह तीनों मुसलमान बहुसंख्या वाले देश अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करते हैं और भारत इतना उदार है कि उत्पीड़ितों को शरण देता है पर तथ्य यह है कि पड़ोसी देश बर्मा में (जो बौद्ध बहुल है) रोहिंग्या मुसलमानों का भयंकर उत्पीड़न होता है, श्रीलंका में (जो बौद्ध बहुल है) हिन्दुओं और मुसलमानों का उत्पीड़िन होता है तथा चीन के तिब्बत में बौद्धों का उत्पीड़न होता है. यही नहीं पाकिस्तान में शिया मुसलमानों, खासकर अहमदिया समुदाय का भी उत्पीड़न होता है. यदि मंशा साफ होती तो भारत में इन्हें भी नागरिकता देने की बात होती उल्टे यहां से रोहिंग्या मुसलमानों को भगाया जा रहा है.
जैसा कि लोगों द्वारा बार-बार बताया जा रहा है कि भारत में बाहर से आने वाले उत्पीड़ित लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान पहले से मौजूद रहा है. इसके लिए विशेष कानून की जरूरत नहीं थी लेकिन जब भाजपा सरकार की मंशा कुछ और हो तो उसे इस तरह के भेदभाव वाले कानून की जरूरत पड़ जाती है.
हुआ यह कि असम में एनआरसी लागू करने के बाद पाया गया कि जो 19 लाख लोग गैर-नागरिक पाये गये, उनमें से ज्यादातर गैर-मुसलमान हैं (दो तिहाई से ज्यादा). यह भाजपा सरकार के लिए बहुत परेशानी वाला बन गया क्योंकि वह प्रचारित कर रही थी कि असम में सारे ‘घुसपैठिए’ बांग्लादेशी मुसलमान हैं. यहां असम के लोगों की मूल मांग राष्ट्रीयता की मांग थी यानी यह कि असम में सारे गैर-असमी लोगों को बाहर किया जाए (चाहे वे भारत के हों या बांग्लादेश के, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान). वहीं भाजपा ने इसे साम्प्रदायिक रूप देकर मुसलमानों के खिलाफ मोड़ दिया था. अब एनआरसी में ज्यादातर गैर-मुसलमानों (ज्यादातर हिन्दुओं) के फंसने पर वह छटपटाने लगी. इससे मुक्ति के लिए वह नागरिकता संशोधन कानून ले आयी. इसके द्वारा असम में एनआरसी में फंसे 19 लाख लोगों में से मुसलमानों को छोड़कर बाकियों को नागरिकता फिर से दे दी जायेगी. केवल मुसलमान गैर-नागरिक या ‘घुसपैठिए’ के रूप में बच जायेंगे. इन्हें विशेष जेलों (डिटेंशन सेण्टरों) में डाल दिया जाएगा, क्योंकि बांग्लादेशी सरकार तो पहले ही कह चुकी है कि उसका कोई नागरिक भारत में नहीं है.
भाजपा सरकार यही असम माॅडल पूरे देश में लागू करना चाहती है. गृहमंत्री अमित शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात लगातार करते रहे हैं, यहां तक संसद में भी. यह योजना एकदम साधारण-सी है. पूरे देश में एनआरसी लागू करो, जो हिन्दू इसमें फंसे उन्हें नागरिकता संशोधन कानून के तहत फिर नागरिकता दे दो. बाकी मुसलमान बच जायेंगे जो अपने ही देश में शरणार्थी या ‘घुसपैठिया’ हो जाएंगे. देश के मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने की पुरानी संघी योजना परवान चढ़ जायेगी.
भाजपा सरकार औपचारिक तौर पर चाहे जो कहें, निचले स्तर पर भाजपाई इसी को खुलेआम प्रचारित कर रहे हैं. उन्हें यह कहने में जरा भी झिझक नहीं है कि यह भारत को हिन्दुओं का देश बनाने की योजना है. कुछ हिंदू इस झांसे में आ भी रहे हैं, पर झांसे में आने वाले हिन्दुओं को यह समझने की जरूरत है कि एनआरसी का शिकार हर भारतीय होगा, खासकर गरीब हिस्सा जो आबादी का विशाल बहुमत है. हर भारतीय को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए हैरान-परेशान होना पड़ेगा. इसे साबित करने के लिए गरीब आबादी के पास कागज-पत्र नहीं होंग.असम की तरह पूरे देश में भी एनआरसी में फंसने वाले लोगों में हिन्दू ही ज्यादा होंगे. उसके बाद वह क्या करेंगे ?
एक बार भारतीय नागरिक होने का दावा निरस्त होने के बाद फिर ‘उन्हें’ नागरिकता पाने के लिए खुद को शरणार्थी बताना पड़ेगा. भाजपा सरकार देश के हिंदुओं को भी अपने ही देश में शरणार्थी बनाने की व्यवस्था कर रही है. जहां तक मुसलमानों की बात है, एनआरसी उन्हीं को फंसाने के लिए है. गृहमंत्री खुलेआम कह रहे हैं कि यह देश में घुस आये ‘घुसपैठियों’ को पहचानने के लिए है. केवल मुसलमान ही ‘घुसपैठिए’ हैं क्योंकि बाहर से आये बाकी धर्मों के लोग तो ‘शरणार्थी’ हैं. अब एनआरसी में जो मुसलमान फंसेंगे, उनका क्या होगा ? क्या उनके लिए भी असम की तरह ‘डिटेंशन सेंटर’ बनाकर उनमें उन्हें रखा जाएगा ? क्या करोड़ों लोगों को ऐसे रखना संभव होगा ? यदि ऐसा किया जाता है तो पूरे समाज के ताने-बाने पर उसका क्या असर पड़ेगा ? क्या ऐसा समाज चल पाएगा, जिसके करोड़ों लोग डिटेंशन सेंटर में बंद हों ?
इतिहास में एक बार ऐसा करने का प्रयास किया गया था. आज सभी लोग हिटलर के नाजी जर्मनी के घृणित कारनामों को जानते हैं जिसमें लाखों यहूदियों को ऐसे ही ‘डिटेंशन सेंटर’ में रखा गया था. उससे भी आगे जाकर उन्हें गैस-भट्टियों में भून दिया गया था. तब जर्मनी में ‘यहूदी समस्या’ के इस समाधान की संघ के आदि गुरूओं ने बहुत तारीफ की थी.
संघ के आज के उत्तराधिकारी आज उसी समाधान को भारत में भी लागू करना चाहते हैं. इसे ही हिंदू फासीवाद का नाम दिया गया है यानी हिन्दू धर्म के मानने वालों की देश में तानाशाही. ध्यान देने की बात है कि यह पुराना हिन्दू धर्म नहीं है बल्कि यह ‘हिन्दुत्व’ वाला हिन्दू धर्म है, जो इस धर्म को मानने वालों को एक खास कट्टरता में ढालता है. यह धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक परियोजना है.
हिटलर के नाजी जर्मनी के अनुभव से सभी यह जानते हैं कि यह हिन्दू फासीवादी परियोजना खुद हिन्दुओं के लिए बहुत घातक है. यह उनके जनवादी अधिकार छीन लेगी. यह उनके रोजी-रोटी के अधिकार छीन लेगी. सारे अधिकारों से वंचित कर यह उन्हें बस फासीवादी तानाशाहों का चारा बना देगी.
जहां तक अल्पसंख्यकों की बात है, मुसलमान तो इसके खास निशाने पर हैं ही. समय के साथ यह बाकी अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाएगी. जो भी विरोध करेगा, जो भी असहमति जतायेगा वह ‘राष्ट्र विरोधी’ घोषित कर मन का शिकार बनाया जाएगा, इसलिए सीएए और एनआरसी का हर सम्भव विरोध किया जाना चाहिए. यह पूरे भारतीय समाज के लिए हर तरीके से बेहद खतरनाक है, खासकर मजदूरों, गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों के लिए.
– इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा जारी पर्चा
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