हमारी सांप्रदायिक और फासिस्ट सरकार का गृहमंत्री भड़काने के लिए लोगों के सामने गलत सवाल पेश कर रहा है, हालांकि मोदी-शाह की तर्ज पर यह पूरी भाजपा और संघ की पुरानी-परिचित शैली है. शाह ने कहा है – ‘विरोध कितना भी हो, हम हर पाकिस्तानी शरणार्थी को नागरिकता देकर ही चैन लेंगे.’ कोई बताए दिल्ली, बंबई, कोलकाता या कहीं और जो रैलियां, प्रदर्शन विरोध में हो रहे हैं, उनमें कौन यह सवाल उठा रहा है, जिसका जवाब देते हुए ये दुर्जन घूम रहे हैं ? खुद ही अपनी ओर से सवाल पैदा करेंगे और फिर चुनौती भी देते फिरेंगे. यह विशुद्ध फासिस्ट तरीका है. ये भ्रमित कर रहे हैं और इनकी परेशानी यह है कि लोग धीरे-धीरे भ्रमित होने से इनकार कर रहे हैं. गया वह युग, वह जमाना.
सवाल संविधान का है महाशय, जिसकी प्रस्तावना जगह- जगह पढ़ी जा रही है. संविधान कहां धर्म के आधार पर भेदभाव की बात करता है ? फिर तुम कैसे कुछ धर्मों के लोगों को चिह्नित कर रहे हो कि इन्हें धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता देंगे. भारत की हजारों साल की धर्मनिरपेक्षता की परंपरा है, जहां जो आया, बसा, उसे भारत ने न केवल शरण दी बल्कि उसे उसका धर्म, रीति-रिवाज पालने, खानपान, रहन-सहन की स्वतंत्रता भी दी और इसी कारण हम अपने मुल्क पर गर्व करते हैं. तुम पता नहीं कहां से आए हिंदू हो, जो इस महान परंपरा को नहीं जानते. अगर तुमने नागरिकता के मसले को संकीर्ण नहीं बनाया होता, संविधान और कानून के पहले से मौजूद प्रावधानों का पालन किया होता तो कोई ऊंगली नहीं उठाता.
तुम जिस रथ पर सवार होकर अभी तक यात्रा कर रहे थे, उसके पहिए टूट चुके हैं. पहले शाह साहब आप कानून की नजर में ही संदिग्ध रहे थे, अब विशाल आबादी की नजर में संदिग्ध हो चुके हो इसीलिए देशभर में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ है. इसीलिए हमारे प्रधानमंत्री को असम जाते डर लगता है. प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल जाते हैं तो ‘गो-बैक’ के नारे लगते हैं. कश्मीर घाटी तुम जाने की हिम्मत नहीं कर पाते. तुम्हारे विरोध में इतने लंबे समय से इतना लंबा और बड़ा प्रतिरोध चल रहा है. ऐसा हुआ पहले कभी ?
और जहां तक गुमराह करने की बात है, तुम्हारी सहयोगी पार्टी जदयू को कौन गुमराह कर रहा है ? क्यों बीजू जनता दल तुम्हारे साथ नहीं आ रहा इस मुद्दे पर ?और क्या अकल का ठेका अनपढ़ शासकों ने ही ले रखा है ?? जनता को कुछ समझ में नहीं आता ? छात्रों को कुछ समझ में नहीं आता ? और शाह साहब ठीक है, आप देश के गृहमंत्री हैं मगर अंततः आप जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं. आप कैसे कह सकते हैं कि विरोध कितना भी हो, हम तो अपनी मर्जी करके ही रहेंगे ? इतना बड़ा विरोध आंदोलन शुरू हुआ है तो आओ विपक्ष से बात करो, अपने सहयोगी दलों से बात करो. विरोध में जो खड़े हुए हैं,उनसे बात करो. जो मुद्दे उठ रहे हैं, उन्हें समझो और उसके हिसाब से चलो. धमकी मत दो. धमकियां ज्यादा कारगर नहीं होतीं.
हिंदूवाद के आधार पर लोगों को लड़ाओ मत. वैसे तो अब लोग लड़ने को तैयार नहीं हैं और कहीं-कहीं (जैसे मध्यप्रदेश आदि) तुम कामयाब हो गए तो तुम्हारी पार्टी की पकड़ और कमजोर होगी. तुम्हारी नाकामयाबी और जाहिर होगी. हजारों जानें जाने से तुम्हें गुजरात में फर्क नहीं पड़ा होगा, मगर यह एक उपमहाद्वीप जितना बड़ा देश है, बहुत अंतर पड़ेगा. हजारों जानें लेनेवालों को आज नहीं, कल उनके अपने ही समर्थक माफ नहीं करेंगे. सत्ता का नशा अच्छा नहीं होता, यह सबक दुनियाभर के इतिहास ने सिखाया है. सत्ता किसी की नहीं होती और किसी की स्थायी नहीं होती. इसके अलावा यहां लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत हैं कि हिंदूवाद का यह तंबू हवा में उड़- बिखर जाएगा. कल कोई पूछने वाला नहीं होगा.
- विष्णु नागर
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