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अमित शाह का इतिहास पुनरलेखन की कवायद पर भड़के लोग

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अमित शाह का इतिहास पुनरलेखन की कवायद पर भड़के लोग

कहा जाता है राष्ट्रवाद गुंंडों की आखिरी शरणस्थली है. यही आज भारत में हो रहा है जब एक गुंडा राष्ट्रवाद का ढोल पीटते हुए भारतीय लोकतंत्र की टेढ़ी मेढ़ी डगर पर चलकर आज इस मुकाम तक पहुंच गया है जहां वह उसके अतीत, वर्तमान का निर्धारण करना चाहता है क्योंकि भविष्य में जनता को लूटने, हत्या करने, नरसंहार करने, माफियाओं से सांठगांठ कर अकूत दौलत हासिल करने के सिवा और कुछ नहीं है.

हजारों लोगों के हत्यारे और गुंडें अमित शाह की हिम्मत इस कदर बढ़ गई है कि अब वह इतिहास पुनरलेखन की बात करने लगा है, ताकि अपने कलंकित, कायरता और गद्दारी से भरे अतीत को झुठला कर शर्म से झुके अपने सिर को बेशर्म की भांति उठा सके. यही ब्राह्मणवाद है, जो करता कुछ भी नहीं है, लेकिन श्रेय हर चीज का चाहता है. इसके लिए वह तमाम झूठे वादे, छल-प्रपंच रच कर सत्ता की कुर्सी पर बैठ कर सर्वथा झूठा इतिहास देश के सामने पेश करने का हिम्मत करता है.

भारत के गृहमंत्री के पद पर विराजमान हत्यारा अमित शाह अपने एक भाषण को शेयर करते हुए ट्वीट करते है कि  ‘भारतीय इतिहास का भारत के दृष्टिकोण से पुनर्लेखन होना चाहिए. हमारे पास छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्षों का भी कोई शोध ग्रंथ नहीं है. सिख गुरुओं और महाराणा प्रताप के बलिदानों का भी प्रमाणिक ग्रंथ नहीं है.’

वहीं स्वतंत्रता संग्राम में जेल गये 6 बार अंग्रेजों से माफी मांगने वाले अंग्रेजों की चरणवंदना करने वाले बेशर्म माफीवीर सावरकर की तारीफ करते हुए लिखते हैं कि ‘यदि वीर सावरकर न होते तो शायद 1857 की क्रांति का भी इतिहास न होता.’ अमित शाह अपने बेशर्मी की तमाम पराकाष्ठा को पार करते हुए जिस तरह इतिहास को संघी (ब्राह्मणवादी) तरीकों से तोड़ने-मड़ोरने की कोशिश कर रहे हैं, वह पूरी दुनिया में भारत को हास्यास्पद बनाने की कोशिश के सिवा और कुछ नहीं है.

1857 के विद्रोह पर पूरी दुनिया के अनेक विचारकों ने लिखा है, यहां तक की कार्ल मार्क्स और उनके मित्र फ्रेडरिक एंगेल्स ने 1857 ई. के विद्रोह पर अनेक प्रमाणिक लेख लिखे थे, जो अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स [1], [2], [3], [4], [5], [6], [7], [8], [9], [10] में प्रकाशित हुआ था, जिसकी तुलना में सावरकर महज छिछोरे ही साबित हुए हैं.

अमित शाह के इस ट्वीट पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है. सुखदेव सिंह पंछी जवाब देते हुए लिखते हैं, ‘अमित शाह जी शायद आपने भारत का इतिहास नहीं पढ़ा. जिस देश में आज आप हिन्दू धर्म के साथ स्वतंत्रता की सांस ले रहे हैं, वह सिख गुरुओं, सिखों की कुर्बानी की ही देन है. हमें हर योद्धा का इतिहास पढ़ना है. कृपया एक बार भारत व गुरु तेग बहादुर साहिब जी का जीवन पढ़ें. आपको कुछ और पढ़ने की जरूरत नहीं होगी.’

वहीं, सपा के कपीश श्रीवास्तव लिखते हैं, ‘वीर सावरकर ? माफीनामा वाले ? 60₹ प्रति माह अंग्रेजी हुकूमत के ख़जाने से प्राप्त करने वाले ? महात्मा गांधी की हत्या में गिरफ्तार और सबूत के आभाव में सज़ा बक्श होने वाले ? इतिहास में तो जगह मिलनी ही चाहिए क्योंकि राम के चरित्र को उजागर करने के लिए रावण के कर्म भी तो जरूरी थे.

कन्हैया लाल तवानियां कहते हैं, ‘आप के हिसाब से तो महान भगत सिंह, चन्द्रशेखर इत्यादि जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, वो भी कुछ नहीं हैं. आप गद्दार हो और आपको गद्दार ही पसन्द है सावरकर, गोडसे इत्यादि. भगत सिंह भी माफीनामा लिखना जानते थे, पर वो असली वीर थे. शीश कट गया पर झुका नहीं.’

इसी तरह अमित शाह के इस मूर्खतापूर्ण टि्वट पर अनेक लोगों ने अपना गुस्सा निकाला. हां, अनेकों ने अमित शाह के इस टि्वट का समर्थन भी किया है. परन्तु, तथ्यों के साथ विरोधियों का स्वर काबिलेगौर है. आईये, देखते हैं अन्य ट्वीट.

 

गद्दारी से भरे संघियों द्वारा इतिहास पुनरलेखन की यह कोशिश नई नहीं है, परन्तु संभवतया पहली बार है जब देश के गद्दार देश के बड़े संवैधानिक पद पर बैठकर इस तरह की घोषणा करने का हिम्मत कर पाया है. विदित हो कि अमित शाह के इस संघी इतिहास के लिए किसी तथ्यों की कोई जरूरत नहीं होती. मन में जो आयेगा वही इतिहास बन जाता है. अभी गटर के गैस से चाय बनाने की बात भी पुरानी नहीं हुई है, जो एक संघी प्रधानमंत्री ने मंच से कहा था.

उम्मीद की जानी चाहिए कि देश के बड़े संवैधानिक पद पर बैठने अपराधी अमित शाह इतिहास से ही सबक लेने का प्रयास करेंगे. इतिहास बदल देने या बदल कर लिख देने से वैज्ञानिक नियम नहीं बदल जाते. मसलन, एक प्रश्न पत्र में पूछा गया प्रश्न कि ‘गांधी ने आत्महत्या क्यों की ?’ से वे केवल उपहास के ही पात्र बनेंगे और कुछ नहीं क्योंकि इतिहास तो अमित शाह को भी अपने पलड़े पर तौलेगा.

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