Home गेस्ट ब्लॉग अमरीका-परस्ती ने हमें सिर्फ़ महामारी और पड़ोसियों से दुश्मनी दी है

अमरीका-परस्ती ने हमें सिर्फ़ महामारी और पड़ोसियों से दुश्मनी दी है

2 second read
0
0
649

अमरीका-परस्ती ने हमें सिर्फ़ महामारी और पड़ोसियों से दुश्मनी दी है

Subroto Chaterjiसुब्रतो चटर्जी

कोई भी जंग सिर्फ़ फ़ौज नहीं लड़ती, समूचा देश लड़ता है. देश आज बंटा हुआ है और इसका फ़ायदा हर दुश्मन लेगा. बाहरी दुश्मनों के ख़िलाफ़ एका की बात महज़ नारेबाज़ी के सिवा कुछ भी नहीं है.

तथाकथित राष्ट्रवादियों की चीन के रवैये से घिग्घी बंधी हुई है. पिछले छ: सालों में मोदी सरकार ने जिस तरह से सामाजिक सामंजस्य, संविधान, क़ानून का राज, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति में अमरीका और पश्चिमी ताक़तों और बेईमान देसी पूंंजीपतियों के इशारे पर पलीता लगाया है, उसका असर आज दिख रहा है.

कोरोना जैसे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा बनकर मोदी सरकार ने देश को जिस तबाही में धकेला है, उस से नोटबंदी के बाद दूसरा सबसे बड़ा झटका भारतीय अर्थव्यवस्था को लगा है, जिससे हम आसानी से नहीं उभर पाएंंगे.

सीएए और एनआरसी जैसे ग़ैर संवैधानिक क़ानून ने इतनी बड़ी आबादी के मन में संशय और विद्रोह का बीज डाल दिया है कि वह इस सरकार का साथ किसी भी मुद्दे पर अब नहीं देगी.

राफाएल से लेकर प्रवासी मज़दूरों के मुद्दे तक सुप्रीम कोर्ट का ग़ैरक़ानूनी और ग़ैर संवैधानिक रवैया उसकी विश्वसनीयता को जनता के बीच शून्य कर दिया है. कोरोना महामारी के नाम पर निर्लज्ज लूट और राजनीति ने मोदी सरकार को पूरी तरह से नंगा कर दिया है.

पचास सालों में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी और भुखमरी झेलते देश के पास 1962 का मनोबल भी नहीं रह गया है कोई भी निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए. सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार, बजट में कटौती और उसके राजनीतिकरण ने उसे अंदर से खोखला कर चुका है.

अमरीकापरस्ती ने हमें सिर्फ़ महामारी दी है और पड़ोसियों से दुश्मनी. पाकिस्तान भी अब अमरीका को कोई ख़ास तबज्जो नहीं देता. नेपाल के साथ चीन खड़ा है. चीन जानता है कि भारत दवा से लेकर सुरंग बनाने तक के लिए उस पर निर्भर है. चीन के कुल निर्यात का मात्र ढाई प्रतिशत भारत में होता है. भारत का बाज़ार उसके लिए कोई ख़ास महत्व नहीं रखता.

ऐसी हालत में चीन के साथ भारत युद्ध करने की स्थिति में नहीं है. मैंने पहले भी लिखा था कि चीन के साथ नूरा कुश्ती चल रही है. भारत के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री के चहुंंओर फेल हो जाने के बाद राष्ट्रवाद के बुझते शोलों को फिर से हवा देने की ज़रूरत है. इसके लिए गवलान घाटी इस बार चुना गया है. पुलवामा पर आज तक किरकिरी हो रही है. उसे बार-बार दुहराया नहीं जा सकता.

यही कारण है कि जिस दिन चीनी कंपनी को बारह सौ करोड़ का ठेका मिलता है, उसी दिन हमारे पांंच जवान शहीद होते हैं चीनी सीमा पर.

फ़ासिस्ट बहुत महीन हरामी होते हैं; बिना क्रिमिनल मनोविज्ञान पढ़े इनको समझना असंभव है. शायद चीन भारतीय सैनिकों को मार कर भारतीय सत्ता का अहसान उतार रहा है. वह जानता है कि हम सरकार को देश मानने वाले मूर्खों की जमात हैं.

Read Also –

क्या अब नेपाल के खिलाफ युद्ध लड़ेगी मोदी सरकार ?
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ही क्यों, कभी सोचा है ?
विज्ञान हमें जलवायु परिवर्तन समझा सकता है, तो उसे रोकता क्यों नहीं है ?
मोदी सरकार की नाकाम विदेश नीति 

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…