जब 1990-91 में कांग्रेस ने खोले लूट की छूट के दरवाजे तो कैसे बढ़ती गई अरबपतियों की संख्या और भाजपा राज में कैसे तेज गति से बढ़ने लगी अरबपतियों की संख्या. सोशल मीडिया पर एक मित्र के द्वारा लिखा गया, यह आलेख बेहद संजीदा तरह से इसे बतलाया है, नववर्ष के अवसर पर हम पाठकों के सामने इसे रखते हैं.
हम सबने एक किस्सा जरूर सुना होगा कि अम्बानी परिवार जो आज देश का सबसे बड़ा पूंजीपति है. कभी इनका पिता धीरुभाई अम्बानी पेट्रोल पम्प पर काम करता था. कुछ लोग कहते हैं कि ये मुकद्दर की ही देन है कि उनकी जिंदगी कहां से कहां पहुंच गई. अगर ये सब मुकद्दर की वजह से हुआ है तो किसानों का मुकद्दर जो दिन-रात खून-पसीना बहाकर अनाज पैदा करता है और अपने अनाज का भाव खुद तय नहीं कर पाता है, किसानों ओर मजदूरों का मुकद्दर उन्हें आत्महत्या पर क्यों मजबूर कर देता है. अगर ऐसा मुकद्दर की वजह से हुआ है तो अंबानी परिवार की सम्पत्ति एक बड़े-से आहते में रखवा दी जाए और सबको वहां बैठा दिया जाए, फिर उनसे निवेदन किया जाए कि अब आप इस सम्पत्ति में एक रूपया भी बढ़ाकर दिखाएं. यकीन मानिए वो उसमे एक पैसा भी नहीं बढ़ा सकते बल्कि जरुरत पड़ने पर उसी में से खर्च करेंगे.
जाहिर सी बात है तब ये सम्पत्ति बढ़ेगी नहीं घटेगी. इनकी दौलत बढ़ाने का काम कच्चा माल पैदा करने वाले किसान और खेत मजदूर करते हैं. इस कच्चे माल को पक्का माल बनाने वाले कारखाने के मजदूर करते हैं. इसको ढोकर ले जाने वाले और बिक्री करने वाले लोग करते हैं, और इस सबकी व्यवस्था करने वाले प्रबंधक करते हैं.
अतः मामला मुकद्दर का नहीं शोषण और लूट का है. इसी प्रकार इतिहास गवाह है. 1779 में फ्रांस में क्रांति हुई जिसमें जनता ने पूंजीपतियों के साथ मिलकर राजाओं के शासन का खात्मा कर दिया. बिना राजा के पहली बार जनता रहने लगी. आखिर इन राजाओं के किसी अदृश्य शक्ति द्वारा लिखे मुकद्दर जनता ने अपने हाथों से ही एक साथ कैसे बदल डाले ? उसके बाद 7 नवम्बर 1917 को रुस में मजदूर किसानों और नौजवानों ने मिलकर एक ऐसी क्रांति की जहां पूंजीपति और जमींदारों की लूट का पूरी तरह खात्मा हो गया. आखिर इनके मुकद्दर भी एक साथ कैसे बदल गये ? फिर सोवियत संघ की जनता को उसका कमाया हुआ पुरा हिस्सा मिलने लगा. गरीब-अमीर की चौड़ी खाई खत्म कर दी गई. इन करोड़ों लोगों के मुकद्दर एक साथ कैसे बदल गये ? मेहनत करने वालों ने अपने मुकद्दर अपने हाथों खुद कैसे लिख लिए ?
मगर बाद में साम्राज्यवादी पूंजीवादी ताकतों के तिकड़मों से ये मजदूर किसानों और नौजवानों का राज 1990 (वास्तव में नीतिगत तौर पर 1956 ई. में ही) में पलट दिया गया. खुलापन और उदारीकरण की नीतियां लागू करते ही आज फिर वहां गरीब अमीर पैदा हो गये. अब फिर से इनके मुकद्दर उटपटांग तरीके से लिखने वाला कौन पैदा हो गया ? जाहिर है व्यक्ति और समाज की समस्याओं के लिए हमें मुकद्दर जैसे ठग विचार पर ध्यान न देकर समाज की विषमताओं के वैज्ञानिक कारण खोजने होंगे.
इसी तरह हमारे यहां पिछले जन्म में किए गए कर्मों के आधार पर मौजूदा जन्म में अमीरी-गरीबी भोगने की बात की जाती है. हमें ज्ञात होना चाहिए कि मुस्लिम धर्म में तो पुनर्जन्म में विश्वास ही नहीं किया जाता है. उनके धर्म में गरीब-अमीर पिछले जन्म में किए गए कर्मों के आधार पर नहीं बनाते. अतः इस विचार के पीछे भी विशाल मेहनतकश जनता को गुमराह करना है.
इसी प्रकार कुछ लोग समाज में व्याप्त गरीबी और अभाव का कारण अंधाधुंध बढती आबादी को मानते हैं. इनकी समझ से आबादी कम होती तो गरीबी अपने आप खत्म हो जाएगी लेकिन ये बात सच नहीं है. दुसरी ओर चीन की जनसंख्या हमसे ज्यादा है. चीन हमसे 2 साल बाद आजाद हुआ और वहां खेती की जमीन भी भारत से कम है, फिर भी चीन में आज कोई भूखा नंगा नहीं है. कोई अनपढ़ नहीं है. कोई भी बिना इलाज के नहीं मरता है और आज आर्थिक विकास में दुसरे नम्बर पर पहुंच गया है.
चीन हर साल अपने सवा सौ करोड़ युवाओं को रोजगार देता है साफ जाहिर है कि अधिक आबादी और गरीबी का आपस में कोई संबंध नहीं है. बल्कि दुनियां में सबसे अधिक आबादी वाला मुल्क चीन आज विकास की रफ्तार में सबसे तेज दौड़ रहा है.
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