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अग्निपथ स्कीम सेना के निजीकरण का प्रयास है

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अग्निपथ स्कीम सेना के निजीकरण का प्रयास है
अग्निपथ स्कीम सेना के निजीकरण का प्रयास है
girish malviyaगिरीश मालवीय

‘अग्निपथ स्कीम सेना के निजीकरण का प्रयास है.’ जी हां ! यदि कुछ ही शब्द में इसका विश्लेषण करना हो तो उपरोक्त वाक्य बिलकुल सही है. भारतीय सेना का आदर्श वाक्य है – स्वयं से पहले सेवा. कोई बंदा जो मात्र 4 साल के लिए अपॉइंट हो रहा है, कई-कई साल चलने वाली ट्रेनिंग 6 महीने में कर रहा हो, वो इस मोटो को कैसे आत्मसात कर पाएगा ? ‘अग्निवीर’ जैसा हल्का शब्द ‘जवान’ को रिप्लेस कर रहा है. यह सही नहीं है. यह उसकी डिग्निटी को मैच नहीं कर रहा. सेना, सेना होती हैं, उसे सरकार रोजगार योजना चलाने में इस्तेमाल करना चाहती है.

आप जो सोच रहे हैं न कि 4 साल बाद जो अग्निवीर सेना से रिटायर होकर बाहर निकलेगा उसके सामने क्या विकल्प होगा ? तो अपने दिलोदिमाग की खिड़कियां जरा खोल लीजिए. अगले चार पांच सालों में देश के अधिकांश पीएसयू बिक चुके होंगे, सैकड़ों एकड़ में फैले हुए इनके परिसर की देखभाल का जिम्मा जो अभी सरकारी एजेंसियों के जिम्मे है, वो बड़े प्रायवेट ऑपरेटर्स के पास चला जायेगा. बड़े प्रायवेट ऑपरेटर्स यानी अडानी अम्बानी.

एयरपोर्ट इनके कब्जे में है. देश के महत्वपूर्ण बंदरगाह इनके कब्जे में है. हर प्रकार के खनिज की खदानें इनके कब्जे में है. ये रेलवे स्टेशन खरीद रहे हैं तो इन्हें सुरक्षाकर्मियों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ? आखिरकार उन्हें भी तो यंग और ट्रेंड लड़ाकों की जरूरत पड़ेगी ही क्योंकि उन्हें अपना साम्राज्य बचाना है. तो शुरआती चार पांच सालों में जितने भी अग्निवीर रिटायर होंगे वहीं खप जाएंगे. अडानी-अम्बानी को भी तो अपनी प्रायवेट आर्मी बनानी है. जी हां प्रायवेट आर्मी ! यह दशक खत्म होते-होते यह सब आप देखने वाले हैं.

प्राइवेट आर्मी को देश की सरकार ठेके देगी. संभवतः यह आपको गृह मंत्रालय के अंतर्गत भी काम करते हुऐ नजर आएंगे. सब तैयारी हो चुकी है. इस योजना के ड्राफ्ट बन चुके हैं. उत्तर प्रदेश में इसे जल्द ही इंप्लीमेंट किया जाना है. विदेश में यह कॉन्सेप्ट बहुत पहले ही आ चुका है. यह अग्नि वीर आगे चलकर भाड़े के सैनिक बनेंगे, भाड़े या किराए के सैनिक को अंग्रेजी में mercenaries कहा जाता हैं. बीसवीं शताब्दी से पहले इनका एक अलग ही इतिहास रहा है. कभी और इस विषय पर चर्चा करेंगे.

दुनियाभर में जब भी युद्ध होते हैं तो कई देश किराए की सेना का सहारा भी लेते हैं. साल 2020 में प्रकाशित सीएसआईएस की रिपोर्ट के मुताबिक, शीत युद्ध के बाद, देश की सरकार और गैर सरकारी संस्थानों में प्राइवेट सिक्यूरिटी कंपनी (पीएससी) और प्राइवेट मिलिट्री कंपनी (पीएमसी) की मांग में तेजी आई. ये मिलिशिया (पार्ट टाइम सैनिक या नागरिक सेना) आमतौर पर ‘फ्रीलांस सैनिक’ होते हैं. ये सस्ते और अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम देते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी छोटी संख्या को किसी खास मिशन पर भेजा जा सकता है. इसके साथ ही, इस तरह के ग्रुप की जवाबदेही कम होती है.

अग्निवीर भी इसी कॉन्सेप्ट के आधार पर बनाई गई योजना है और एक तरह से यह सब न्यू वर्ल्ड आर्डर का हिस्सा है. अभी जो युक्रेन में युद्ध चल रहा है, वहां भी पुतिन द्वारा रूस की प्राइवेट सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप के सैनिक, यूक्रेन की राजधानी में तैनात किए गए हैं. युद्ध में प्राइवेट आर्मी की मदद लेने की शुरुआत इराक युद्ध में हुई. इराक के खिलाफ अमेरिका ने किराए की सेना का इस्तेमाल किया था. अमेरिकी सरकार ने इसमें प्राइवेट सैन्य कंपनी ‘ब्लैकवाटर’ का सहारा लिया और बाद में उन्हें वहां तैनात भी किया.

ब्लैकवाटर के सैनिकों के पास पॉल स्लॉग, इवेन लिवर्टी, डस्टिन हर्ड और निकोलस स्लाटर मशीन गन, ग्रेनेड लॉन्चर जैसे हथियार और स्नाइपर से लैस एक बख्तरबंद काफिला था. यानी वो सारी सुविधाएं और आर्टलरी थी जिनका सेना इस्तेमाल करती है. इस काफिले ने इराक की राजधानी बगदाद में निसौर चौर पर निहत्थे और निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसाईं थी. इस घटना में दो बच्चों समेत 17 लोगों की मौत हो गई थी.

इस घटना पर बहुत हल्ला मचा और इस मामले की जांच की गई. जांच में यूएस फेडरल कोर्ट ने 2014 में ब्लैकवाटर कंपनी के 4 गार्ड्स को दोषी पाया था और सजा सुनाई थी. लेकिन दिसंबर 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन चार दोषियों को माफी दे दी. अमेरिकी कोर्ट ने ब्लैकवाटर को प्रतिबंध लगा दिया था. इस प्रतिबंध के बाद कंपनी ने अपना नाम बदल कर एक्सई सर्विस रख लिया है. आज भी यह प्राइवेट सेना अपनी सर्विसेस दे रही है.

अब आप समझ ही गए होंगे कि आगे जाकर अग्नि वीर सैनिक क्या करेंगे और अग्निपथ योजना किस चिड़िया का नाम है ? दरअसल यह सब न्यू वर्ल्ड आर्डर का हिस्सा है.

आप बड़ा खेल समझ नहीं पा रहे हैं. आपको पता नहीं होगा कि सेना के पास देश में रेलवे से भी अधिक संपत्ति है. रक्षा मंत्रालय के अधिकार में देश भर में कुल 17.95 लाख एकड़ जमीन है, जिसमें से 16.35 लाख एकड़ जमीन देश भर में फैली 62 छावनियों से बाहर है. आने वाले संसद सत्र में एक ऐसा बिल पास होने जा रहा है है, जिसकी सहायता से देश भर में फैली हुई छावनी की जमीनें नीलाम की जा सकती है, वो भी औने पौने दाम पर. इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है. लाखों एकड़ रक्षा भूमि के सर्वेक्षण के लिए ड्रोन इमेजरी (ड्रोन के जरिये चित्र) आधारित सर्वेक्षण तकनीक का उपयोग कर सर्वेक्षण को पूरा कर लिया गया है.

सेना से जुड़ी बाकि सरकारी संस्थाओं का भी निजीकरण किया जा रहा है. कुछ दिन पहले की ख़बर है कि सेना की बेस वर्कशॉप का संचालन निजी कंपनियों को सौंपा जा सकता है. इसके लिए प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है. शुरुआत दिल्ली की वर्कशाप से हो सकती है. कहने को वर्कशॉप सरकार के नियंत्रण में ही रहेंगी, लेकिन उनका संचालन निजी कंपनियां करेंगी और जरूरत पड़ने पर वह बाहर का कार्य भी ले सकेंगी.

220 साल पुराने देश भर में फैले 41 आयुध कारखाने एक अक्तूबर 2021 से सात कंपनियों में विभाजित हो गए हैं. 2021 में रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए साजोसामान बनाने वाले ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ‘ओएफबी’ को भंग कर दिया है. ओएफबी की संपत्ति व कर्मचारी भी अब सात सरकारी कंपनियों में ट्रांसफर कर दिए गए हैं. इन कंपनियों को सेना से काम मिलेगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है.

इसकी पूर्ति के लिए जनता के सामने मेक इन इण्डिया जैसे जुमले फेंक कर अपने मित्र उद्योगपतियों की फैक्ट्रीयां खुलवाई जा चुकी है. उपरोक्त सरकारी आयुध कारखानों का निगमीकरण कर उन्हें ठिकाने लगाने की पूरी तैयारी है और इसीलिए बाबा कल्याणी जैसे उद्योगपति सरकार की ‘अग्निविर योजना’ का जमकर समर्थन कर रहे हैं. आप पूछेंगे कि इन सब बातों का अग्निपथ/अग्निवीर का क्या संबंध है ? इसके लिए आपको मनोविज्ञान को समझना होगा.

दरअसल हम और आप भी किसी निजी संस्थान या फैक्ट्री में दस बारह साल लगातार काम कर ले तो उस संस्था के साथ लगाव-सा महसूस करते हैं. उस संस्थान को अपना ही मानने लगते हैं, और फौज के साथ तो राष्ट्र सेवा और देश की रक्षा जैसी लेगेसी जुड़ी हुई है. अभी जो फौजी है, वो अपनी रेजीमेंट से अपनी सेना से अटूट जुड़ाव महसूस करते हैं.

सेना में नई भर्तियों का निकाला जाना वर्षो से बंद है और अभी जो अग्निवीर योजना निकाली गई है उसमें सैनिक मात्र चार साल की सर्विस देकर रिटायर कर दिए जाएंगे. वह सेना के साथ वह जुड़ाव महसूस बिल्कुल भी महसूस नहीं कर पाएंगे जो दशकों की सेवा के बाद एक जवान को महसूस होता है. इसलिए सेना से जुड़े संस्थानों को बेचे जाने पर उन्हें कोई आपत्ति भी नही होगी और सरकार यही चाहती है न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.

अग्निवीर मामले में एक बड़ी दिक्कत आईटी सेल के सामने है. अब देखिए. नोटबंदी हुई, लोगों को तकलीफ हुई तो बैंककर्मियों को चोर बताया गया. जब जीएसटी लागू हुई तो बड़ी मुश्किल पेश आई पर उसमें व्यापारी को चोर बता दिया गया. कोरोना का मिसमेनेजमेंट सामने आया तो डॉक्टर बकरा बने, डॉक्टरों को चोर बोला गया. लेकिन अब मामला इन्डियन आर्मी का है, फौज का है. अब क्या फौजियों को … ?

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