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आईये, अब हम फासीवाद के प्रहसन काल में प्रवेश करें

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आईये, अब हम फासीवाद के प्रहसन काल में प्रवेश करें

कम्युनिस्ट क्रांतिकारी, प्रगतिशील इसलिए कहलाता है कि वह भविष्य के सपने देखता है और वर्तमान को बदलने के लिए तमाम साधनों का इस्तेमाल करता है, परन्तु भारत के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी सहित तमाम प्रगतिशील इस पैमाने पर खड़े नहीं उतरते. भारत में कम्युनिस्ट क्रांतिकारी समेत तमाम प्रगतिशील हमेशा अतीत में रहतेे हैं, जहां से भविष्य उसे नजर भी नहीं आता. जब वह पराजित हो जाता है तब वह एक बार फिर और अतीत में जाकर अपना मूल्यांकन करता है. सर्वहारा के महान शिक्षक कहते हैं अगर हम इतिहास से नहीं सीखते हैं तो इतिहास अपने-आप को दुहराता है, पहली बार त्रासदी के रूप में और दूसरी बार प्रहसन के रूप में. आज भारत में कम्युनिस्ट क्रांतिकारी और प्रगतिशील ताकतें और खुद फासीवाद भी दुसरी वाली स्थिति में आ चुके हैं, वे एक प्रहसन के पात्र बन चुके हैं.

मोदी को हिटलर की संज्ञा से नवाजने वाले प्रगतिशील ताकतें भी यह सब समझती है, पर वह अपने कार्यप्रणाली से रत्ती भर भी अलग नहीं होते. जर्मनी में हिटलर के उदय से पहले एक ऐसा वक्त भी आया था जब अगर तमाम ताकतें एकजुट हो जाती तो हिटलर को चुनावी माध्यम से ही सत्ता में आने से रोका जा सकता था, पर कम्युनिस्ट ‘क्रांतिकारी’ अपने कार्यभार को समझ नहीं पाये और अपने साथ-साथ सारी दुनिया के लिए मुसीबतों का पहाड़ ला दिया और दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा त्रासदी का शिलालेख लिख गया. लाखों की तादाद में नृशंसतापूर्वक लोग मार डाले गये. यह तो गनीमत था कि इस नृशंस ताकत को रोकने के लिए विश्व पटल पर सोवियत संघ विद्यमान था, जिसने हिटलर की नृशंसता को जड़ से मिटा दिया, पर किस कीमत पर ?? बताने की जरूरत नहीं. परन्तु आज जब देश की सत्ता पर मोदी के रूप में हिटलर की वापसी हुई है, तब विश्व स्तर पर कम्युनिस्ट क्रांतिकारी की कौन बात करें, प्रगतिशील ताकतें भी न केवल ढुलमुल ही है, बल्कि राजनैतिक तौर पर भी कमजोर और हताशा का शिकार हो चुकी है और हम विश्व इतिहास के प्रहसन के काल में प्रवेश कर चुके हैं.




अब इस देश में या दुनिया के पैमाने पर जो कुछ भी हो रहा है, या होने वाला है, वह सिवा एक प्रहसन के और कुछ भी नहीं हो सकता है. आज इस देश में गांधी देशद्रोही बन जा रहा है, नेहरू के वंशज देशद्रोही का खिताब पाते हैं, भगत सिंह आतंकवादी बन गये हैं, और गांधी के हत्यारे, जो अंग्रेजों के चाटुकार थे, आज देशभक्त बनाये जा रहे हैं, आतंकवादी प्रज्ञा ठाकुर माननीय बन गयी है. न्यूटन-आईंस्टीन तक बेवकूफ करार दिये जा रहे हैं. गोबर से सोना निकाला जा रहा है. विज्ञान को अविज्ञान बताया जा रहा है. यह सब एक प्रहसन नहीं तो और क्या है ? सत्ता पर बैठे एक से बढ़कर एक फर्जी ज्ञान, फर्जी इतिहास को खुले मंचों से बोलकर मजे ले रहे हैं और लोग खुश होकर ताली पीट रहे हैं.

एक वक्त था जो अब हाथ से निकल चुका है, वह था मोदी के खिलाफ तमाम प्रगतिशील ताकतों का एकजुट होकर उसे वापस सत्ता में आने से रोकना. परन्तु जर्मनी की कम्युनिस्ट क्रांतिकारी और प्रगतिशील ताकतें जिस प्रकार बिखरकर हिटलर को सत्ता में आने से नहीं रोक पायी, उसी तरह भारतीय कम्युनिस्ट क्रांतिकारी और प्रगतिशील ताकतें भी बिखरकर मोदी को सत्ता में आने से नहीं रोक पायी. अब सारा देश इस बात का इंतजार कर रहा है कि कब मोदी देश में चुनाव को कानूनन असंवैधानिक घोषित करते हैं ? हलांकि इसकी घोषणा तो वह लोकसभा चुनाव से पहले ही विभिन्न मोहरों के माध्यम से कर चुका है. हम अब इंतजार करेंगे फासिस्टों के नये हमलों का कि कब वह मनुस्मृति को भारत का संविधान घोषित करते हैं. हलांकि इसके लिए उसके पास अभी भी पूरे पांच साल का वक्त है.




आईये, अब हम फासीवाद के प्रहसन काल में प्रवेश करें और अतीत के ‘रामराज्य’ का आनन्द लेने को तैयार हो जाये. यह वही रामराज्य है, जहां दलितों, पिछड़ों, महिलाओं पर जुल्मतों का पहाड़ टुटता था और सारा देश सिवा उस पीड़ित के, असीम आनन्द की प्राप्ति करता था. फासिस्ट भाजपा ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ही दलितों, पिछड़ों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों पर हमले शुरू किये थे. शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त करने का पूरा प्रयास किया था. चिकित्सा के तमाम जनसुलभ पहुंच को दूर कर दिया था. अब मोदी के दूसरे व सर्वाधिक ताकतवर काल में इन प्रयासों को शत-प्रतिशत करने का जोरदार कदम उठाया जायेगा. दलितों पर हमले बढ़ेंगे, पिछड़ों और महिलाओं को शिकार बनाया जायेगा और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के नाम पर शिक्षा, उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को जनपहुंच से दूर करने हेतु पूरा कदम उठाया जायेगा. जिस प्रकार जर्मनी में हिटलर की नृशंसता को जर्मन खुशी-खुशी झेलता रहा और प्रतिरोध के तमाम ताकतों को इस प्रकार जड़ समेत नष्ट कर दिया कि उसके सामने सिवा पलायन या खत्म हो जाने का कोई रास्ता न छोड़ा, ठीक उसी दौर में हम प्रवेश कर रहे हैं.

भारतीय फासिस्ट ताकतें ऐसा नहीं है कि वह हिटलर के अंत के कारणों को नहीं जानती है. वह पूरी तरह सचेत है. उससे सबक भी ले चुकी है. अपनी 90 सालों से जमी-जमाई जमीन को पूरी तरह सींच रखा है और वह हिटलर की ही तरह पूरी नृशंसता के वाबजूद खुद को उन कम्युनिस्ट क्रांतिकारी और प्रगतिशील ताकतों के साथ भिड़न्त में पूरी सावधानी बरतेगी क्योंकि वह हिटलर की तुलना में ज्यादा धूर्त और बईमान है यही कारण है कि वह अपनी हिंसा को बेहतर और क्रांतिकारी की हिंसा को अवैध ठहराने में ज्यादा कुशल है. वहीं भारतीय कम्युनिस्ट ‘क्रांतिकारी’ तो हिंसा का नाम सुनते ही थर-थर कांपने लगता है और दुगुने जोश-खरोश के साथ क्रांतिकारी हिंसा को अवैध ठहराने में सबसे आगे निकल जाता है, शायद फासिस्ट हिटलर से भी आगे.




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4 Comments

  1. Jagmohan

    May 25, 2019 at 3:43 pm

    आंखे खोल देने वाला लेख 👍👍

    Reply

  2. Rajkishor

    May 25, 2019 at 3:46 pm

    इसी उम्मीद पर तो मानवता अभी तक सांस ले रही है।

    Reply

  3. Anil

    May 25, 2019 at 3:47 pm

    वो सुबह कभी तो आएगी?

    Reply

  4. Devasis

    May 25, 2019 at 3:51 pm

    सहि कहा भाई…

    Reply

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