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आदिवासी संरक्षित क्षेत्र और ऑस्ट्रेलिया

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[ आदिवासियों के संरक्षित क्षेत्र हेतु भारत में संविधान प्रदत्त 5वीं अनुसूची के तहत् बहुत से अधिकार दिये गये हैं, जो अबतक केवल कानून की किताबों की शोभा ही बनकर रह गया है. आदिवासियों को अपने इलाके से उखाड़कर फेंका जा रहा है, उनके गांव के गांव को आग से जलाया जा रहा है, विरोध करने पर उनके बेटों को गोलियां से उड़ाया जा रहा है, उनके बेटियों के साथ बलात्कार कर उनकी हत्या की जा रही है और ये सब इस देश की सरकार और उसकी सेना, अर्द्धसेना, पुलिसों के जरिये रोज किया जा रहा है. ऐसे में आस्ट्रेलिया में वहां की सरकार द्वारा आदिवासियों के क्षेत्रों का संरक्षण किस प्रकार कर रहा है, इसे समझना बेहद जरूरी है, ताकि हम आदिवासियों के हितों को भारतीय संदर्भ में समझ सके और उसके लिए संघर्ष की धारा को न्यायोचित मुकाम दिला सके, जिसे यहां कि सरकार चंद औद्यौगिक घरानों के हितों खातिर आदिवासियों के खून से जमीं रंग रही है. इस नजीर को सामाजिक यायावर द्वारा प्रस्तुत किया गया है. ]

आदिवासी संरक्षित क्षेत्र और ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया में आदिवासियों की कुल जनसंख्या लगभग साढ़े सात लाख है. इनके लिए ऑस्ट्रेलिया में कुल 75 आदिवासी संरक्षित क्षेत्र हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के क्षेत्रफल से दुगुने से भी बड़ा है. इन 75 आदिवासी संरक्षित क्षेत्रों में से सबसे बड़े आदिवासी संरक्षित क्षेत्र का क्षेत्रफल भारत के बिहार राज्य से भी बड़ा है. कुल मिलाकर बात यह कि ऑस्ट्रेलिया के कुल प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र का लगभग 50 प्रतिशत आदिवासियों के संरक्षण में दे दिया गया है.




ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी संरक्षित क्षेत्रों में बिना आदिवासियों की लिखित अनुमति के आम नागरिक प्रवेश नहीं कर सकता है. सरकार द्वारा लाखों रुपए के जुर्माने व सजा इत्यादि का प्रावधान है. ऐसा इसलिए है ताकि गैर-आदिवासी लोग, आदिवासी संस्कृति व जीवन को व्यवधान न दें और आदिवासी अपनी परंपराओं को अपने ढंग से जीने व संरक्षित करने के लिए स्वतंत्र रहें.

आदिवासी संरक्षित क्षेत्र और ऑस्ट्रेलिया

 

आस्ट्रेलिया में आदिवासियों के लिए निर्मित घर व उनके बच्चे

ऑस्ट्रेलिया में 1788 में अंग्रेज पहुंचे. तब तक ऑस्ट्रेलिया के लोग पाषाण काल में ही जी रहे थे. उनको ब्रोंज व लोहे का प्रयोग तक नहीं मालूम था. कपड़ा नहीं जानते थे. खेती नहीं जानते थे. पशुपालन नहीं जानते थे. गांव, नगर इत्यादि नहीं जानते थे. स्थायी कबीला तक नहीं होता था. लिपि तक नहीं थी.




बाकी दुनिया कहां से कहां पहुंच चुकी थी लेकिन 1788 में अंग्रेजों के ऑस्ट्रेलिया पहुंचने के पहले तक ऑस्ट्रेलिया के लोग पचासों हजार साल पीछे के पाषाण युग में ही जी रहे थे. उस समय वहाँ की कुल जनसंख्या लगभग सात लाख थी और बोलियां 700 से अधिक थीं, लिपि थी ही नहीं.

आस्ट्रेलिया में आदिवासियों के बच्चे की शिक्षण व्यवस्था

केवल साढ़े सात लाख लोगों के लिए राजस्थान राज्य से दुगुने से भी बड़ा जंगल पहाड़ नदी झील समुद्र संरक्षित है. आदिवासियों के लिए करोड़ों रुपये के घर, अत्याधुनिक अस्पताल, बेहतरीन स्कूल, हजारों हजार स्वीमिंग पूल, खेलने के लिए अत्याधुनिक आउटडोर, इनडोर क्रीड़ा-स्थल, ढेरसारे भत्ते इत्यादि की सुविधाएं हैं.




इतना सब होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया में सरकारी नौकरियों में विभिन्न स्तरों पर ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या का जितना प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या है, उतना आरक्षण है. जो लोग 200 साल पहले तक पाषाण काल में जीते रहे हों, उनको दिए जाने वाले आरक्षण का विरोध ऑस्ट्रेलिया के लोग नहीं करते हैं जबकि दुनिया के सबसे विकसित देश के लोग हैं, 200 साल पहले ऑस्ट्रेलिया आने के बहुत पहले ही भाप का इंजन, दूरदर्शी, सूक्ष्मदरशी, परमाणु इत्यादि जैसी खोजें कर चुके थे.




ऑस्ट्रेलिया एक बेहद परिपक्व समाज है, इसलिए आरक्षण को सामाजिक न्याय के रूप में देखता है, न कि योग्यता इत्यादि के नाम पर बेहूदगी व बेशर्मी के साथ विरोध करता है. आधुनिक ऑस्ट्रेलिया समाज अपने पूर्वजों द्वारा की गई गलतियों, हिंसा व शोषण से शर्मिंदगी महसूस करता है. सामाजिक न्याय, मानवाधिकारों व लोकतांत्रिक मूल्यों को गहरे से बिना ढोंग व बिना आदर्शों की खोखली बतोलेबाजी के समझता है, वह व्यवहार में जीने के लिए प्रयासरत रहता है.

 

सामाजिक न्याय बेहद गहरा, सूक्ष्म व ईमानदार सामाजिक व नैतिक मूल्य होता है, जिसे प्रामाणिकता के साथ जीना पड़ता है. दुनिया के बहुत कम समाज, अपवाद समाज ही वास्तव में प्रामाणिकता के साथ जीने का निरंतर प्रयास कर पाते हैं.



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ROHIT SHARMA

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