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आधार संशोधन अध्यादेश: मोदी सरकार इतनी जल्दबाजी में क्यों है ?

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आधार संशोधन अध्यादेश: मोदी सरकार इतनी जल्दबाजी में क्यों है ?

28 फरवरी को मोदी सरकार ने आधार और अन्य कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2019 को मंजूरी दे दी और 3 मार्च को राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिये. यह विधेयक 4 जनवरी को लोकसभा में पारित हो चुका था पर सरकार राज्य सभा में बहुमत न होने के चलते इसे पारित नहीं करवा सकी थी. अतः लोकसभा सत्र की समाप्ति के बाद सरकार ने अध्यादेश के जरिये इसे लागू करवा दिया.

इस अध्यादेश को लाने के पीछे सरकार का तर्क यह था कि पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुरूप आधार कानून में संशोधन किये जाने जरूरी थे. पर वास्तविकता यह है कि अध्यादेश कई मसलों पर खुद सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अवहेलना करता प्रतीत होता है. गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रमुख बात यह थी कि आधार संख्या का व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा. यानी प्राइवेट कम्पनियां (जैसे- बैंक, मोबाइल कंपनियां, आदि) किसी की पहचान स्थापित करने के लिए जबरन आधार नहीं मांग सकतीं, केवल सरकार ही इसकी मांग कर सकती है.




आधार अध्यादेश से संबंधित मुख्य तथ्य:

  • टेलिग्राफ एक्ट और मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में केवाईसी के लिए आधार स्वैच्छिक है। कोई भी कंपनी अगर आधार की जानकारी का इस्तेमाल करती है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट और आधार एक्ट के तहत निजता मानकों का पूरा ध्यान रखना होगा।
  • इस अध्यादेश के आने के बाद कोई व्यक्ति जो जिसके पास आधार नहीं है, उसे किसी भी योजना से वंचित नहीं किया जा सकेगा।
  • नए नियम के मुताबिक आधार एक्ट का अगर कोई कंपनी उल्लंघन करती है तो उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • नए अध्यादेश के मुताबिक, किशोरों को 18 वर्ष की उम्र पूरी होने पर आधार संख्या रद्द करने का विकल्प देने समेत कई नए नियम लागू हो जाएंगे। इसमें आधार के इस्तेमाल और निजता के लिए तय नियमों के उल्लंघन पर दंड का प्रावधान है।
  • अधिप्रमाणन या ऑफलाइन सत्यापन या किसी अन्य ढंग से भौतिक या इलेक्ट्रानिक रूप में आधार संख्या के स्वैच्छिक उपयोग के लिए उपबंध करना, आधार संख्या के ऑफलाइन सत्यापन का अधिप्रमाणन केवल आधार संख्या धारक की सूचित सहमति से किया जा सकता है।
  • अध्यादेश में यह स्पष्ट किया गया है कि आधार कार्ड न देने पर किसी को भी किसी तरह की सेवा देने से इनकार नहीं किया जा सकता, चाहे बैंक खाता खुलवाना हो या मोबाइल फोन का सीम खरीदना हो।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितम्बर 2018 को अपने फैसले में आधार कानून के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर दिया था, जिससे लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके और उनकी निजता को बरकरार रखा जा सके।
  • विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आधार अधिनियम 2016 भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों को सुशासन, विशिष्ट पहचान संख्या अनुदेशित करके ऐसी सुविधाओं और सेवाओं के कुशल, पारदर्शी और लक्षित परिदान के लिए तथा उससे संबंधित एवं अनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए लाया गया था।





इस मसले पर चालाकी पूर्ण भाषा का इस्तेमाल करते हुए अध्यादेश में अपनी पहचान स्थापित करने के लिए इसे आधार कार्ड धारक के लिए ऐच्छिक बना दिया गया है. इसी के साथ आधार कानून की सेक्शन-57 प्राइवेट कम्पनियों द्वारा आधार का इस्तेमाल करने का प्रावधान हटा दिया गया है. इस सबका कुल व्यवहारिक परिणाम यह होगा कि प्राइवेट कम्पनियां व्यक्ति की ‘इच्छा’ से व्यवसायिक कार्यों में उसके आधार का इस्तेमाल कर सकेंगी.

प्राइवेट कम्पनियों द्वारा आधार के जरिये व्यक्तियों का डाटा भारी मात्रा में पहले ही इकट्ठा किया जा चुका है. ऐसे में बीते वर्ष अदालती आदेश से उनके द्वारा इस डाटा के अपने हितों में इस्तेमाल पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया था. अब चुनावी वर्ष में मोदी सरकार ने चोर दरवाजे से उन्हें यह छूट प्रदान कर दी है. व्यक्तियों के डाटा को आज पूंजीपति वर्ग मुनाफा कमाने के बड़े स्रोत के रूप में मान रहा है. इस तरह मोदी सरकार का यह अध्यादेश चुनाव से पूर्व प्राइवेट कम्पनियों को, कारपोरेट घरानों को खुश करने का प्रयास मात्र है. काॅरपोरेट घरानों के आशीर्वाद से मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने की ललक है. अध्यादेश को लाने के पीछे जल्दबाजी इसी उद्देश्य से की गयी.




इस अध्यादेश में ढेरों मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार कर व्यवहारतः आधार को अनिवार्य करने की कवायद की गयी है. बच्चों के मसले पर अदालत ने कहा था कि विद्यालयी प्रवेश, प्रतियोगिता परीक्षा, छात्रवृत्ति के लिए आधार अनिवार्य नहीं होगा. 18 वर्ष का होने पर बच्चों को आधार से बाहर आने की छूट होनी चाहिए. अब अध्यादेश में बच्चों का आधार बनाने के लिए माता-पिता की सहमति व 18 वर्ष होने पर 6 महीने के समय में बच्चों को आधार से बाहर आने की बात की गयी है. व्यवहारतः आज स्कूलों में कहीं भी माता-पिता की सहमति से आधार नहीं बन रहे हैं, उल्टा स्कूलों में कैम्प लगवाकर आधार बनवाये जा रहे हैं. खासकर वंचित समुदायों के बच्चे जिन्हें कुछ कल्याणकारी स्कीमों से लाभ लेना है, उन्हें तो आधार से बचने का कोई रास्ता ही नहीं है.

इसी के साथ अध्यादेश में आधार प्राधिकरण के अधिकारों को बढ़ा कर उसे कहीं अधिक स्वायत्तता प्रदान कर दी गयी है. सेक्शन-21 में ‘केन्द्र सरकार की मंजूरी से’ का वाक्यांश हटाकर प्राधिकरण को अधिक स्वायत्त कर दिया गया है. इसी के साथ आधार के दुरुपयोग पर जुर्माने व सजाओं का प्रावधान किया गया है, पर इसके दुरुपयोग को साबित करना कठिन काम होगा.




कुल मिलाकर केन्द्र सरकार ने नये अध्यादेश के जरिये सुप्रीम कोर्ट के गत वर्ष के निर्णय को स्वीकारने के नाम पर आधार कानून को और मजबूती प्रदान की है. निजी कम्पनियों को आधार के उपयोग को जारी रखने, लोगों के डाटा का इस्तेमाल करने की चोर दरवाजे से छूट दी है. व्यवहारतः इस अध्यादेश से आधार को पूर्व की तरह ही आधार को सबके लिए अनिवार्य बनाये रखने का प्रयास किया गया है.

आधार सरीखी परियोजना नागरिकों के जनवादी अधिकारों का उल्लंघन करती है. यह राज्य को लोगों की निगरानी के व्यापक अधिकार देती है. यह प्राइवेट कम्पनियों को लोगों के डाटा से मुनाफा कमाने का जरिया मुहैय्या कराती है. यह सरकारी दमन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करती है इसलिए इस पूरी परियोजना के किसी पैबंदसाजी से काम नहीं चल सकता जैसा कि अदालत चाहती है, बल्कि इसे पूरी तरह रद्द किया जाना चाहिए.

(नागरिक अधिकार व अन्य से प्राप्त)




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