देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी आधार कार्ड के विरोध में बड़े बड़े बयान दे चुके थे, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री बनने के लिए जोरदार अभियान चला रहे थे. बतौर मुख्यमंत्री मोदी आधार कार्ड का विरोध करते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि ‘‘अगर वो लोग इसी तरह से अंधाधुंध आधार बांटते रहेंगे तो हमरे गुजरात में आतंकियों के घुसने का खतरा बढ़ जायेगा. आज कांग्रेस वाले जिस आधार कार्ड को लेकर इतना नाच रहे है। उसे देखकर लगता है कि देश के लोगों को पता नहीं कौन-सी जड़ी-बूटी बांट रहे हैं.’’ मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछते हुए कहते हैं, ‘‘आधार कार्ड से लाभ किसको मिलेगा ?’’
अब जब तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गये हैं और आधार कार्ड को बैंक खाते, पैन-कार्ड, राशन कार्ड, मोबाईल नम्बर आदि तमाम सरकारी योजनाओं में अनिवार्य कर दिये हैं तब उनके द्वारा ही उठाये गये सवाल आज मौजूं हैं कि ‘‘आखिर आधार कार्ड से लाभ किसको मिलेगा ?’’
भाजपा शासित प्रदेश झारखण्ड में दिनांक 22 मई, 2017 को झारखण्ड की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा द्वारा सरकार के पदाधिकारियों के साथ एक वीडियो कांफ्रेसिंग की गई थी, जिसमें जिला आपूर्ति पदाधिकारियों को आदेश दिया गया था कि ‘‘जिनके राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं हैं, उनके नाम राशन कार्ड की सूची से हटा दिए जाएं.’’ आदेश के फौरन बाद झारखण्ड सरकार 11.64 लाख राशन कार्ड को एक झटके में रद्द कर दिया क्योंकि वह आधार से लिंक नहीं था. इतना ही नहीं अपनी 1000 दिन की उपलब्धियों को गिनाते हुए खाद्य आपूर्ति विभाग ने शेखी बघारते हुए बतलाया कि ‘‘11.64 लाख ‘फर्जी’ एवं ’अयोग्य’ लोगों के राशन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं.’’ इस तरह 11.64 लाख लोगों के अस्तित्व को खत्म कर दिया परिणामतः झारखण्ड में भारी भूखमरी और राशन कार्ड के रद्द कर दिये जाने के कारण लोग भूख से मर रहे हैं. यह स्थिति केवल झारखण्ड में ही नहीं है, यह कमोवेश पूरे देश भर में खासकर भाजपा शासित प्रदेशों में खूब हो रही है. सरकारी अमला इन मौतों को केवल बीमारी या अन्य तरीके से हुई मौते से जोड़ने में व्यस्त है. मोदी ने देश की जनता को एक झटके में बता दिया कि आधार कार्ड से लाभ केवल उनलोगों को मिलेगा जो गरीबी, असहायता, बेरोजगारी, किसानी, मजदूरी से ऊपर है और देश के सम्भ्रांत और अमीर लोगों की श्रेणी में आते हैं. यही वजह है कि एक ओर आधार कार्ड राशन कार्ड से लिंक न होने के कारण लोग भूखे मर रहे हैं तो वहीं झारखण्ड के ढ़ाई साल के शासनकाल में दूसरी बार विधायकों, मंत्रियों, विधानसभा अध्यक्ष व मुख्यमंत्री का वेतन बढ़ा दिया गया है.
वहीं सुप्रीम कोर्ट बार-बार आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने के खिलाफ सवाल उठा रहा है, परन्तु केन्द्र की मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट को भी ठेंगा दिखाते हुए आधार कार्ड को देश की तमाम सरकारी या निजी मामलातों में अनिवार्य बनाने पर तुली हुई है. यह कहना न होगा कि देश के लोगों की निजी जानकारी को इकट्ठा कर व्यापारियों और निजी काॅरपोरेट घरानों के व्यवसायिक हितों में इस्तेमाल किया जा रहा है. बैंक के अकाउंट आधार कार्ड से जोड़ने पर अकाउंट से पैसे ही हेरा-फेरी हो जा रही है, राशन कार्ड से जोड़ने पर लोग भूख से मर जा रहे हैं, मोबाईल को अधार कार्ड से जोड़ने की अनिवार्यता पर लोगों की निजी जिन्दगी की जानकारी सार्वजनिक हो जा रही है.
मोबाईल फोन पर बातचीत की जानकारी इकट्ठा कर देश की जासूसी और अन्य घटनाओं को अंजाम दिया जा सकता है. सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो यह है आधार कार्ड की जानकारी रखने वाली कम्पनी सरकारी नहीं है, बल्कि वह निजी कम्पनी है, जिसकी सुरक्षा व्यवस्था तो खास्ताहाल है हीं, वह निजी कम्पनी किसी भी समय यह सारी निजी जानकारी – लोगों के आधार कार्ड से जुड़ी तमाम जानकारियां – विदेशों को या किसी अन्य दूसरी कम्पनी को बेच सकती है.
यही कारण है कि जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी कोलकाता के नजरूल मंच में पार्टी के कार्यकत्र्ताओं से अपील करते हुए आधार को मोबाईल नम्बर से लिंक करने के सवाल पर कहती हंै, कि ‘‘मैं अपने मोबाईल नम्बर को आधार से लिंक नहीं कराऊंगी, अगर वो लोग मेरा मोबाईल नम्बर बंद करना चाहते हैं, तो कर दें.’’ तब आधार कार्ड को लेकर संदेह का बादल मंडराने लगते हैं. ममता बनर्जी आगे इसका कारण बताते हुए आगे कहती हैं कि ‘‘मैं बांकी लोगों से भी इस मामले में आगे आने की अपील करती हूं. मोबाईल नम्बर से आधार को लिंक कराकर हमारी व्यक्तिगत गोपनियता पर हमला किया जा रहा है. अगर आधार मोबाईल नम्बर से लिंक हो जाएगा तो पति-पत्नी तक के बीच की बात सार्वजनिक हो जायेगी. कुछ ऐसे निजी मामले होते हैं, जिन्हें आप सार्वजनिक नहीं कर सकते.’’
सुप्रीम कोर्ट तक ने व्यक्ति की निजता का सम्मान करने को मौलिक अधिकार माना है, और आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने के खिलाफ बार-बार सवाल उठाया है. सुप्रीम के एक बेहद अहम फैसले में संविधान पीठ के 9 जजों ने अपने फैसले में कहा है कि निजता कोई अभिजात्य कंस्पेप्ट नहीं है, जो सिर्फ अमीरों के लिए हो. निजता का अधिकार समाज के सभी वर्गों की आकांक्षा है. सिविल या राजनीतिक अधिकारों को सामाजिक आर्थिक अधिकारों के अधीन नहीं रखा जा सकता. भारत के लोकतंत्र को ताकत स्वाधीनता और स्वतंत्रता से मिलती है. देश में निजता को संविधान का संरक्षण प्राप्त है. इसे कोई नहीं छीन सकता.परन्तु केन्द्र की मोदी सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है.
यूं तो एक सवाल और मौजूं है कि अगर आधार कार्ड इतना ही अनिवार्य है और सरकार की हर योजनाओं में आधार का इस्तेमाल जरूरी है तब मतदान में आधार कार्ड क्यों गैर-जरूरी है ? उसे क्यों न आधार से लिंक कर दिया जाता है, फर्जी और अयोग्य लोग क्या वहां नहीं होते हैं ?