अच्छा हुआ वशिष्ठ बाबू चले गए. वे रह कर भी क्या करते ? जिस देश और प्रदेश के लिए वे अमेरिका की शान ओ शौकत और नासा जैसी प्रतिष्ठित संस्थान की नौकरी छोड़कर आये थे, उस देश और प्रदेश ने उन्हें बहुत पहले छोड़ दिया था. जिस वशिष्ठ नारायण सिंह को अमेरिका के विद्वत समाज ने तलहथी पर बैठा कर रखा था, उसकी हमने कदर नहीं की. भले ही उन्होंने आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी हो, उनका दिमाग कम्प्यूटर को भी मात देने वाला क्यों न रह हो, विश्व के सबसे बड़े गणितज्ञ क्यों न रहे हों, हमें उससे क्या ?
नेताओं के जयकारे लगाना और बेईमान-शैतान के पीछे भागना जिस समाज की नियति हो, जहां हत्यारे और घोटालेबाजों के स्मारक बने हों, सरकारी संरक्षण में चलनेवाले बालिका गृहों में यौनाचार होता हो, सामूहिक नकल और सेटिंग से बच्चे टॉप करते हों, वहां डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे जीनियस की जरूरत ही क्या है ? उन्हें तो हमने जीते जी ही मार डाला था! न सरकार ने सुध लेने की जरूरत समझी न समाज को उनकी याद आई. हां, उनके मरने के बाद श्रद्धांजलि देनेवालों की बाढ़ आ गई है. दिल्ली से पटना तक शोक की बयार चलती दिख रही है.
वह तो भला हो न्यूज चैनलों का जिनके शोर मचाने पर सरकार को दायित्व बोध हुआ. देर से ही सही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजकीय सम्मान से वशिष्ठ बाबू के अंतिम संस्कार की घोषणा की और उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित किया. लेकिन नामी-गिरामी डॉक्टरों वाले पटना मेडिकल कालेज अस्पताल (PMCH) ने उन्हें अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. अपने चिर-परिचित अंदाज में इस महान गणितज्ञ के शव को बाहर सड़क पर ला छोड़ा. यह अस्पताल अपने इसी तरह के अमानवीय और क्रूर व्यवहार के लिए जाना जाता है. खबर दिखाए जाने के बाद एम्बुलेंस से लेकर सम्मान देने तक कि व्यवस्था हुई लेकिन तबतक पूरे देश में हमारी थू-थू हो चुकी थी. सच पूछिए तो हम इसी थू-थू के पात्र हैं.
नायकों की हम उपेक्षा करते हैं और खलनायकों के पीछे भागते हैं. यही हमारा चरित्र बन गया है. ऐसे समाज में जीवित रहकर भी वशिष्ठ बाबू क्या करते ?
महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह, एक नजर में
- 2 अप्रैल 1946 : जन्म.
- 1958 : नेतरहाट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान.
- 1963 : हायर सेकेंड्री की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान.
- 1964 : इनके लिए पटना विश्वविद्यालय का कानून बदला. सीधे ऊपर के क्लास में दाखिला. बी.एस-सी.आनर्स में सर्वोच्च स्थान.
- 8 सितंबर 1965 : बर्कले विश्वविद्यालय में आमंत्रण दाखिला.
- 1966 : नासा में.
- 1967 : कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिक्स का निदेशक.
- 1969 : द पीस आफ स्पेस थ्योरी विषयक तहलका मचा देने वाला शोध पत्र (पी.एच-डी.) दाखिल.
- बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें “जीनियसों का जीनियस” कहा.
- 1971 : भारत वापस.
- 1972-73: आइआइटी कानपुर में प्राध्यापक, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (ट्रांबे) तथा स्टैटिक्स इंस्टीट्यूट के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन.
- 8 जुलाई 1973 : शादी.
- जनवरी 1974 : विक्षिप्त, रांची के मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती.
- 1978: सरकारी इलाज शुरू.
- जून 1980 : सरकार द्वारा इलाज का पैसा बंद.
- 1982 : डेविड अस्पताल में बंधक.
- नौ अगस्त 1989 : गढ़वारा (खंडवा) स्टेशन से लापता.
- 7 फरवरी 1993 : डोरीगंज (छपरा) में एक झोपड़ीनुमा होटल के बाहर फेंके गए जूठन में खाना तलाशते मिले.
- तब से रुक-रुक कर होती इलाज की सरकारी/प्राइवेट नौटंकी.
- अक्टूबर 2019 : पीएमसीएच के आईसीयू में (ठीक होकर घर लौटे).
- 14 नवंबर 2019 : निधन.
– रियाज वामी
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