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आज देश यही समझने में लगा है कि देश की सरकार सच बोल रही है या झूठ ?

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आज देश यही समझने में लगा है कि देश की सरकार सच बोल रही है या झूठ ?

अब CAA और NRC के बाद एनपीआर (NPR) भी आ गया है, और इसके लिए हजारों करोड़ का बजट भी कैबिनेट ने पारित कर दिया है (यानि हम अपने ही टैक्स के पैसों से अपने लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी चीजों के बजाय सरकार को अब लुटाने के लिए बैंकों के कर्जमाफी, NPA को वाइप आउट करने और नीरव, माल्या जैसे मित्रों के कर्ज को मिटा देने के पहले शासन काल के बाद अब खुद अपने आप को नागरिक साबित करने पर खर्च करने की अनुमति दे चुके हैं ?).

अमित शाह कुछ समय तक टीवी इंटरव्यू में, बंगाल के भाषणों में बड़े प्रेम से समझाते थे, क्रोनोलोजी को समझिये :

1. पहले NRC आएगा
2. फिर CAA

लेकिन अब वास्तव में इसे उल्टा कर दिया गया है. सरकार अपने इरादे साफ़ लागू करने में लगी है. अब पहले एनपीआर होगा, जिसे अगले साल पूरा कर लिया जाएगा. फिर उसमें से जो संदेहास्पद लगेगा उसे NRC में डाला जाएगा और फिर उसमें से जो हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी होंगे, उन्हें CAA कानून के जरिये अंततः भारतीय नागरिक बना लिया जायेगा.

अब देश के 72 साल आजाद देश के नागरिकों ! मेरा सवाल आपसे सिर्फ ये है :

आपने क्या अपने लिए, अपने वोट के जरिये, अपने टैक्स का सदुपयोग क्या इसी काम के लिए इन्हें चुना था ?

1. आपके पास रोजगार चंगा है ?

2. आपके GST जिसे आप नमक से लेकर कफन तक में दे रहे हैं, उससे आपके बच्चे को प्राइमरी से लेकर JNU तक में शिक्षा मुफ्त या सस्ते दर पर मिल रही है ?

3. आपको क्या मुफ्त (आपके ही टैक्स के पैसे से) स्वास्थ्य सुविधा मिल रही है ?

4. आपके हर खरीद पर जो 70,000 करोड़ रूपये का शिक्षा सेस से सरकार ने आपके बच्चों के लिए शिक्षा के नए केंद्र खोल दिए ? या उजाड़ दिए, और अब हर जगह शिक्षा दुगुनी, तिगुनी, और कहैं कि दस गुना कर दी गई है ?

5. आपके बुढापे के लिए पेंशन की व्यवस्था कर दी गई है, या जिन्हें वह सुविधा मिल भी रही थी, उसे खत्म कर दिया गया है ?

अगर इतनी चीजें भी नहीं मिली हैं, तो क्या यह सरकार क्या इसी तर्क पर मनमानी करते रह सकती थी, कि उसके चुनावी अजेंडे में ये सब लिखा था और वह कृत संकल्प है इसे लागू करने में ? तो मेरा सवाल है कि इससे पहले तो उसने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वायदा भी किया था. हर किसान को उसकी उपज का 50% मुनाफा देने का वायदा भी किया था. विदेशों से काले धन को जब्त कर देश में लाने (एक भाषण में तो हर भारतीय को 10-15 लाख ) का वादा भी किया था.

इनमें से एक भी वायदे का 1% भी पूरा नहीं हुआ है तो सरकार मेरे टैक्स के पैसे से यह घोषणा ही कैसे कर रही है ? उसे उल्टा अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए, और देश की गाढ़ी होती माली हालत पर सोचना चाहिए. क्या यही चन्गा है ? जिसे अमेरिका में भारत से भगोड़े भारतीयों को, जो हमारे देश की मुश्किलों को देखकर यहांं से अपना माल मत्ता समेटकर अमेरिका में मजे की जिन्दगी और उस देश को समृद्ध करने में जुटे पड़े हैं ?

  • रविन्द्र पटवाल, सामाजिक कार्यकर्त्ता

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ROHIT SHARMA

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