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आम आदमी की शिक्षा के लिए देश में दो नीतियां

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भारत के संविधान सहित विश्व के तमाम विकसित देशों में शिक्षा को नागरिकों के मौलिक अधिकार में शामिल किया गया है तथा शिक्षा पर बजट का 5 प्रतिशत राशि खर्च करने का न्यूनतम प्रावधान बनाया है. इसके वाबजूद धरातल पर भारत सरकार शिक्षा को नागरिकों का मौलिक अधिकार कतई नहीं मानती. यही कारण है कि एक ओर शिक्षा के बजट में लगातार कटौती की जा रही है, तो वहीं बेहतरीन शिक्षण संस्थानों को केवल उच्च वर्ग तक आरक्षित करने की मंशा के तहत शिक्षा को धन पर तौले जाने वाली वस्तु में बदल दिया है, ताकि बड़ी तादाद में गरीब व कमजोर वर्गों के बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित हो जाये. इसके अलावे देश भर उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता को कम करने के लिए एक तरफ शिक्षकों के रिक्त पदों को खत्म किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ ठेके पर बहुत ही कम पारिश्रमिक पर शिक्षकों को नियुक्त किया जा रहा है.

भारत सरकार इसके लिए बजट कम होने का बहाना बनाती है, जबकि उसके खुद के ऐसे हजारों अनावश्यक काम हैं, जिसमें किसी भी प्रकार बजट कम नहीं होता और लाखों करोड़ों का बारा-न्यारा होता रहता है, चाहे खुद प्रधानमंत्री मोदी के 10 लाख के सूट के पहनावे की बात हो या लाखों करोड़ के घोटाले की, बजट कभी कम नहीं होता, पर शिक्षा के बात करते हीं बजट कम पड़ जाता है. इससे स्पष्ट होता है कि शिक्षा के लिए बजट का लगातार कम किया जाना कमजोर वर्गों के बच्चों को शिक्षा से दूर धकेलने की साजिश है.

केन्द्र की भारत सरकार के उलट आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार का स्पष्ट मानना है कि शिक्षा देश के हर नागरिकों का मौलिक अधिकार है. उसका मानना है कि नागरिकों को सशक्त बनाने में शिक्षा एक महत्वपूर्ण माध्यम है. यही कारण है कि एक ईमानदार आम आदमी पार्टी की सरकार अपनी बजट का 50 प्रतिशत तक शिक्षा पर खर्च करती है, जिसके महज दो साल के परिणाम को देश भर की जनता बेहद सुखद व सुकून भरी निगाह से देख रही है.

विदित हो कि निजी शिक्षण संस्थान देश में बड़े पैमाने पर आम आदमी को लूटने का एक बड़ा व्यवसाय बन गया है. इस व्यवसाय में बड़े-बड़े उद्योगपति, मंत्री आदि कूद पड़े हैं. इन लोगों ने शिक्षा माफिया का एक पूरा तंत्र बना लिया है. इसके खिलाफ डट कर खड़ी हुई आम आदमी पार्टी की सरकार ने सरकारी शिक्षण संस्थान में बजट का 25 प्रतिशत तक निवेश कर उच्चस्तरीय सरकारी शिक्षण संस्थान में बदल दिया है. इसका परिणाम पिछले दो सालों में यह निकला कि यहां के छात्र-छात्राओं ने अपने अद्भूत कौशल का परिचय दिया और मंहगे निजी शिक्षण संस्थानों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया.

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने सरकारी स्कूलों का आधुनिक ढांचा बनाया. कक्षा को आधुनिक स्तर पर उन्नत बनाया. शिक्षकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए 15 हजार से अधिक शिक्षकों का स्थायीकरण किया. शिक्षकों को ‘शिक्षा को कैसे उन्नत बनाया जाये’, इसके प्रशिक्षण के लिए विदेशों में भेजा. छात्रों और शिक्षकों के सुविधाओं को बढ़ाया. वातानुकूलित कक्षा, बैठने के लिए बेहतरीन डेस्क, बोर्ड, बेहतरीन तकनीक शिक्षा आदि को आधुनिक स्तर पर बनाया. सबसे महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित किया कि शिक्षा का यह अधिकार हर नागरिकों को पूर्णतः निःशुल्क मिलें. जिसकारण बड़े पैमाने पर कमजोर वर्ग के छात्र स्कूलों की ओर आर्कषित हुए, जिसके सिर्फ वे सपने ही देखा करते थे.

दिल्ली की ईमानदार आम आदमी पार्टी की सरकार पतन की ओर जा रहे सरकारी शिक्षण संस्थानों को बेहतर संसाधन प्रदान कर सहारा दिया तो वही निजी स्कूलों की मनमानी लूट-खसोट पर रोक लगाई. इससे बौखलाई शिक्षा माफिया सरगना दिल्ली सरकार पर हमला बोल दिया जिसकी ओर से केन्द्र की मोदी सरकार ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को सही करने के प्रयास के खिलाफ दिल्ली की आम आदमी पार्टी के विरूद्ध ही संघर्ष छेड़ दिया और तरह-तरह रोड़े अटकाने लगी. इसके लिए उसने दिल्ली के उपराज्यपालों के माध्यम से दिल्ली सरकार के हर निर्णय को अटकाने लगी. दिल्ली सरकार के खिलाफ सीबाआई, ईडी, आयकर विभाग, खुफिया विभाग यहां तक दिल्ली सरकार के मातहत आनेवाली एसीबी तक को छीन कर दिल्ली सरकारद के ही खिलाफ खड़ा कर दिया. इतना कुछ करने के बाद भी केन्द्र की मोदी सरकार को दिल्ली सरकार के खिलाफ एक भी आपराधिक मामला नहीं मिल सका.

आम आदमी पार्टी की सरकार ने आम आदमी के शिक्षा पाने के अधिकार को सुनिश्चित करने के बाद उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थानों में कमजोर वर्गों के प्रतिभाशाली छात्रों को बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों में निःशुल्क कोचिंग करवा रही है और अपनी गारंटी पर 10 लाख रूपये तक का शिक्षा-ऋण देन रही है. इसके लिए बकायदा एक एससी/एसटी मंत्रालय बनाकर समाज के गरीब बच्चों को बड़े व नामी कोचिंग संस्थानों में मुफ्त में सिविल सेवा परीक्षा, ज्यूडिशियल सेवा परीक्षा, उच्च सेवा परीक्षा, बैंकिंग, ग्रुप ए, बी आदि की कोचिंग कराने का निर्णय लिया है, जिसका पूरा खर्च दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार वहन करेगी. इसके उलट भाजपा की राजस्थान सरकार ने कोटा में मेडिकल-इंजिनीयरिंग कोचिंग की तैयारियों के लिए आने वाले बाहर के छात्रों पर नगर निगम के माध्यम से टैक्स गांठ रही है, यानि शिक्षा में भी कमाई का नया जरिया ढूंढ लिया है.

भारत में उच्च शिक्षा की खास्ताहाल स्थिति के कारण भारत से दूसरे देश में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या काफी बढ़ गई है. करीब 2 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए अकेले अमरिका जाते हैं. उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों का खर्च जोड़ने पर यह राशि करीब 66 हजार करोड़ रूपये हो जाते हैं जबकि भारत की यह सरकार इस देश की कुल उच्च शिक्षा बजट ही 33 हजार करोड़ का बनाती है.

यदि भारत में ही उच्च शिक्षा की व्यवस्था गुणवत्तापूर्ण हो जाये और देश की सरकार शिक्षा को मौलिक अधिकर केवल कथनी में ही नहीं करनी में भी करने लगे तो देश से बाहर जाने वाले 66 हजार करोड़ रूपये यों ही बच जायेंगे. परन्तु बजट का बहाना बनाकर शिक्षा को देश की आम आदमी की पहुंच से दूर करने की कोशिश करने वाली देश की केन्द्र सरकार को आज दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार से सीखने की जरूरत है, न कि अपनी मूढ़ता का परिचय देते हुए दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को ही नष्ट कर देने की सनकी मुहिम चलाने की, जो इनके नंगे व्यवहार से रोज जाहिर हो रहा है.

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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