“हमारे समाज का आधा हिस्सा महिलाएं हैं. हमारा समाज तब तक पिछड़ा और बेड़ियों में जकड़ा रहेगा जब तक महिलाएं आजाद, शिक्षित और ज्ञान से भरी नहीं होंगी”-सद्दाम हुसैन
इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन जिनकी हत्या अमेरिका ने महज इसलिए कर दी कि वह इराक को दुनिया के पटल पर सुन्दर, स्वस्थ और आजाद देखना चाहते थे. वे अमरीकी सम्राज्यवाद के आगे घुटने टेकने से साफ इंकार कर रहे थे.
समाजवादी मुल्कों के बाद सद्दाम हुसैन खासकर मुस्लिम जगत में वे पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने महिलाओं के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर स्वस्थ वातावरण का न केवल निर्माण ही किया अपितु इराक को एक नयी पहचान भी दी. सद्दाम हुसैन ने महिलाओं के लिए मुख्यतः 5 कानून देश में बनाए थे और उसे लागू भी किये थे, जिस कारण इराकी महिलाओं के जीवन में अमूल्य बदलाव आये थे. 8 मार्च के मौके पर हम महिलाओं के जीवन में बुनियादी बदलाव लाने वाले इन 5 कानूनों के बारे में जानते हैं –
1. प्रत्येक महिला अनिवार्य तौर पर कम से कम ग्रेजुएट होंगी अर्थात महिलाओं के लिए ग्रेजुएशन तक की शिक्षा अनिवार्य होगी.
2. नौकरी करने वाली महिला की सैलरी उसी काम को करने वाले पुरुष सहकर्मी के बराबर होगी परन्तु कार्यावधि आधी होगी क्योंकि महिला जनित काम जैसे खाना बनाना, बच्चों का पालन-पोषण को, जिसे महिला करती है, राष्ट्रीय कार्य में शामिल किया गया.
3. महिलाएं रात्रि ड्यूटी नहीं करेगी.
4. नौकरी करने वाली महिला की पदस्थापना वहीं होगी जहां उनका पति कार्यरत होंगे.
5. महिला के गर्भ धारण करने का पता चलते ही उनको सवैतनिक छुट्टी दी जायेगी जो बच्चे के जन्म के बाद भी तब तक लगातार जारी रहेगी जब तक कि बच्चा दो वर्ष का नहीं हो जाता.
सद्दाम हुसैन के महिलाओं के हित में बनाये इन 5 नियमों ने इराकी महिलाओं के जीवन में बुनियादी बदलाव ला दिया था, जिसे अमेरिकी साम्राज्यवाद ने अपने क्रूर बूटों तले बेरहमी से रौंद डाला. परन्तु उनके ये बुनियादी ढांचे व नियम महिलाओं के हितों में हर देश में लागू किया जाना चाहिए, खासकर भारत जैसे दकियानूसी देश में तो निश्चित तौर पर.
भारत महिलाओं के लिए सर्वाधिक असुरक्षित देश बन चुका है. दिल्ली रेप कैपिटल के तौर पर दुनिया भर में कुख्यात हो चुका है. भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां बलात्कारी केन्द्रीय मंत्री बन जाता है. प्रधानमंत्री भी बन जाता है. ऐसा लगता है मानो में राजनेता बनने का आवश्यक योग्यता ही बलात्कार और छेड़छाड़ बन गई है.
भारत में कामकाजी महिलाओं का कार्यस्थल भी सुरक्षित नहीं है. आवागमन के रास्ते से महिला कब उठा ली जायेगी कोई नहीं जानता. महिलाओं के वेतन पुरुष सहकर्मी की तुलना में असमान होता है तो वहीं उसके पास काम का बोझ ज्यादा होता है. कार्यस्थल पर छेड़छाड़ की घटनाएं बेहद ज्यादा है. महिलाओं को रात्रि ड्यूटी करने को मजबूर करने के मामले भी बढ़ रहे हैं तो वहीं गर्भावस्था के दौरान भी काम करने को बाध्य किया जाता है अथवा अवैतनिक छुट्टी दी जाती है.
वक्त के ऐसे अंतराल में सद्दाम हुसैन को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर याद किया जाना चाहिए.
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