ईस्ट इंडिया कंपनी को सबसे पहले पराजित करने वाले भारत के महान योद्धा टीपू सुल्तान के बारे में संघ का कहना है कि वे हिंदू विरोधी थे, क्योंकि उन्होंने बहुत से पेशवाओं का क़त्ल किया था. संघ ने तो बता दिया कि टीपू सुल्तान ने पेशवाओं का कत्ल किया परंतु यह क्यों नहीं बताया कि सुल्तान ने कत्ल क्यों किया ?
आइए जानते हैं सच्चाई क्या थी ?
टीपू सुल्तान हिंदू विरोधी होते तो उनकी सेना में जितने मुसलमान थे, उतने हिंदू न होते. पेशवाओं की हत्याएं करने का जो आरोप टीपू सुल्तान पर है वह त्रावणकोर राज्य में है, जहां का मनुवादी राजा एक ऐय्याश और निरंकुश राजा था और उसके जुल्मों से वहां की जनता से छुटकारा दिलाने के लिए टीपू ने उसपर आक्रमण किया और युद्ध में त्रावणकोर की सेना में शामिल सारे पेशवा मारे गये.
त्रावणकोर राज्य में एक प्राचीन परंपरा के अनुसार नंबूदिरी, नायर और दलित नादर जैसी जातियों की औरतों को अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा ढ़ंकना प्रतिबंधित था. नंबूदिरी औरतों को घर के भीतर ऊपरी शरीर को खुला रखना पड़ता था. वे घर से बाहर निकलते समय ही अपना सीना ढंक सकती थीं लेकिन मंदिर में उन्हें ऊपरी वस्त्र खोलकर ही जाना होता था जबकि नायर औरतों को अपना वक्ष खुला रखना होता था.
सबसे बुरी स्थिति दलित औरतों की थी जिन्हें कहीं भी अंगवस्त्र पहनने की मनाही थी. पहनने पर उन्हें सजा भी हो जाती थी. एक घटना बताई जाती है जिसमें एक दलित जाति की महिला अपना सीना ढ़ंक कर महल में आई तो रानी अत्तिंगल ने उसके स्तन कटवा देने का आदेश दे डाला.
इस अपमानजनक रिवाज के अनुसार आदेश था कि “महल से मंदिर तक राजा की सवारी निकले तो रास्ते पर दोनों ओर नीची दलित जातियों की अर्धनग्न कुंवारी महिलाएं फूल बरसाती हुई खड़ी रहें.” उस रास्ते के घरों के छज्जों पर भी राजा के स्वागत में औरतों को ख़ड़ा रखा जाता था. राजा और उसके काफिले के सभी पुरुष इन दृश्यों का भरपूर आनंद लेते थे.
इस अपमानजनक रिवाज के खिलाफ ही टीपू सुल्तान ने त्रावणकोर पर आक्रमण किया, जिससे त्रावणकोर की सेना के तमाम लोग मारे गए, जिसे आज पेशवाओं के वध के रूप में बताकर टीपू सुल्तान का विरोध किया जाता है. अगर इसका नाम क्रूरता और नरसंहार है तो मैं तो मैं इस क्रूरता और नरसंहार का समर्थन करता हूं !
- शिवाजी
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