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आखिर यह अग्निपथ/अग्निवीर योजना सेना में आई कैसे ?

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girish malviyaगिरीश मालवीय
प्रदर्शनकारी युवक ने रोते-रोते अफसर से पूछा – आपने इस बार वोट किसको दिया था सर ?
अफसर बोला – मोदी को !
फिर अफसर बोला – बेटा ये तो बता तूने किसको वोट दिया ?
युवक बोला – मोदी को !
फिर दोनों फूट-फूट कर रोने लगे.

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कल थोड़ा वक्त मिला तो सोचा कुछ खुदाई हम भी कर लें ! हमें न तो कोई मंदिर मस्जिद खोदनी थी, न कोई खंडहर, हमें तो खुदाई कर यह पता लगाना था कि आखिर यह अग्निपथ/अग्निवीर योजना सेना में आई कैसे ? कौन लाया ? कब लाया ?

पता चला कि मूल रूप से इस योजना को ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के नाम से लाया गया था. 2020 में सेना प्रमुख जनरल एम. एम. नरवणे जी ने बड़े लाइटर मूड में पहली बार इस बात को सामने रखा. उनका कहना था कि ‘वह जब स्कूल कॉलेज के बच्चों से मिले तो उन्हें फीडबैक मिला कि बच्चे बिना स्थाई कमीशन लिए सेना के जीवन का अनुभव लेना चाहते हैं.’ यहीं से टूर ऑफ ड्यूटी की शुरुआत हुई.

जब पहली बार टूर ऑफ ड्यूटी का विचार सामने आया था तभी क्लियर कर दिया गया था कि अग्निवीरों को सेना में ट्रेनिंग के दौरान कॉरपोरेट जगत के लिए भी तैयार किया जाएगा. 2020 में आनंद महिंद्रा ने खत लिखकर कर इस बात के लिए सेना की प्रशंसा भी की थी इसलिए अभी के आनंद महिंद्रा के ट्वीट पर ज्यादा आश्चर्य मत जताइए ?

आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की कोई खास दिलचस्पी इस योजना में नहीं थी. 2020 की अमर उजाला की एक खबर हमें बताती है कि ‘बिपिन रावत ने कहा था कि टूर ऑफ ड्यूटी की अवधारणा अभी आरंभिक चरण में है और इस पर अध्ययन की जरूरत है कि यह कितनी व्यावहारिक होगी. पहले बैच में 100 अधिकारियों और 1,000 अन्य रैंक के कर्मियों को शामिल किए जाने की संभावना है. इस पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार पर ही मॉडल का मूल्यांकन और परीक्षण किया जाएगा.’

यहां स्व. बिपिन रावत एक पायलट प्रोजेक्ट की बात कर रहे हैं तो यह पुछा जाना चाहिए कि इस पायलट प्रोजेक्ट का क्या हुआ ? इसका आज का स्टेटस क्या है ? लेकिन कौन पूछेगा ? क्योंकि अब तो एक झटके में आपने अपना तानाशाहीपूर्ण निर्णय सुना दिया है.

खुदाई में इसी के साथ CDS जनरल बिपिन रावत का एक बयान का वीडियो हमें मिला जो 2018 का है. एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि ‘अक्सर मेरे पास नौजवान आते हैं कि सर, मुझे भारतीय सेना में नौकरी चाहिए. मैं उन्हें बोलता हूं कि भारतीय सेना नौकरी का साधन नहीं है. नौकरी लेनी है तो रेलवे में जाइए, पीएनटी में जाइए, अपना खुद का बिजनेस खोल लीजिए.’

रावत कहते थे कि सेना नौकरी का जरिया नहीं है. उनका कहना था कि ‘अगर भारतीय सेना में आना है तो कठिनाइयों का सामना करने के लिए आपको काबिल होना पड़ेगा, आपको शारीरिक और मानसिक रूप से काबिल होना पड़ेगा. भारतीय सेना जज्बा है देश सेवा और मातृभूमि की रक्षा का. आपका हौंसला बुलंद होना चाहिए. आपमें कठिन से कठिन समस्याओं से निपटने की ताकत होनी चाहिए.’

इस बयान से जनरल बिपिन रावत की विचारधारा स्पष्ट हो जाती हैं. अफसोस इस योजना पर उठते सवालों का जवाब देने के लिए बिपिन रावत आज हमारे बीच मौजूद नहीं है. बेहद संदिग्ध परिस्थितियों में Mi-17 हेलीकॉप्टर दुर्घटना में दिसम्बर 2021 में जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और अन्य 11 लोगों की मृत्यु हो गई.

दुनिया के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले Mi-17 हेलीकॉप्टर से हुई इस दुर्घटना पर कई सवाल उठे, पर सब पर धूल डाल दी गई. जैसे –

  • जब मौसम खराब था तो हेलिकॉप्टर ने उड़ान क्यों भरी ?
  • VVIP उड़ान से पहले क्या किसी ने मौसम की जानकारी नहीं ली ?
  • Mi-17V चॉपर में ऑन बोर्ड वेदर सिस्टम है, क्या पायलट ने इसे नहीं देखा ?
  • इसमें स्वचालित पायलट प्रणाली की भी सुविधा है, इसका इस्तेमाल क्यों नहीं हुआ ?
  • इस हेलिकॉप्टर में दो इंजन थे, क्या दोनों ही इंजन खराब हो गए थे ?
  • क्या इस हादसे की वजह तकनीकी गड़बड़ी थी ?

कुछ विशेषज्ञों ने हेलिकॉप्टर क्रैश होने के बाद इसके पीछे भी साइबर हमले की भी आशंका जाहिर की थी. साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट मुकेश चौधरी ने कहा था कि –

‘CDS जिस हेलिकॉप्टर में ट्रैवल कर रहे थे, इस तरह के चॉपर को डिजिटली हैक करना संभव है. साइबर वॉरफेयर की दुनिया में ये आसानी से किया जा सकता है. साइबर हैकर्स या अटैकर्स इस तरह के हमले को अंजाम दे सकते हैं. रेडियो सिग्नल जैम करना, पायलट को गलत सिग्नल्स या कमांड देना, फ्लाइंट डेटा गलत देना ये सब कुछ साइबर तरीके से किया जा सकता है. रेडियो सिग्नल्स से जो कम्युनिकेशन होता है उसमें हैकिंग आसानी से की जा सकती है.’

खैर जो भी हो, भारतीय राजनीती में हम ऐसी घटनाएं पहले भी देख चुके हैं. कम से कम मुझे तो इस पर कोई आश्चर्य महसूस नहीं होता.

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तैयारी कर रहे युवाओं की रही सही उम्मीद भी खत्म कर दी गई. इस बार नेताओं से नहीं कहलवाया गया बल्कि तीनों सेनाध्यक्ष को सामने कर दिया गया. उनकी प्रेस कांफ्रेंस में साफ़ कह दिया गया है कि तीनों सेनाओं में अफ़सर रैंक से नीचे की सभी भर्ती अग्निपथ स्कीम से ही की जाएंगी, और अग्निपथ योजना वापस नहीं ली जाएगी.

आपने कभी ठीक से सोचने की कोशिश की है कि तैयारी कर रहे युवा देश भर में इतना उग्र प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं ? क्यों हिंसा पर उतारू है जबकि वे आपसे हमसे ज्यादा जानते हैं कि सेना का दूसरा नाम अनुशासन है. दरअसल अभी दो तरह के युवा है जो प्रदर्शन कर रहे हैं – एक वे हैं जो तैयारी कर रहे थे और एक वे हैं जिनका चयन सेना में हो गया था और वे अपने बुलावे का इंतजार कर रहे थे.

अधिकतर हिंसक प्रदर्शन में मुब्तला वे युवा है जो पिछ्ले दो तीन सालो में आयोजित आर्मी भर्ती रैली में शमिल होकर फिजिकल फिटनेस टेस्ट दे चुके हैं. अनेक युवा तो लिखित परीक्षा भी दे चुके हैं, उसमें पास हो गए हैं, उनका पुलिस वेरिफिकेशन हो चुका है. उनका मेडिकल भी हो चुका है.

इन युवाओं को कितना बड़ा धक्का लगा होगा ये आप अपने ड्राइंग रूम में बैठे कल्पना भी नहीं कर सकते. अगर अग्निपथ स्कीम सरकार को लाना ही था तो आप एक पायलट प्रोजेक्ट भी कर सकते थे, लेकिन नहीं आपको तो तानाशाही चलानी है.

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