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20 लाख करोड़ का लॉलीपॉप किसके लिए ?

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20 लाख करोड़ का लॉलीपॉप किसके लिए ?

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

20 लाख करोड़ के साथ गरीबों का जनाजा सीतारमण ठाकुर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में कैसे निकाल रही थी ये आप सब ने सुन ही लिया होगा. ये पहली ऐसी सरकार है जिसने गरीबों को मिटाने की कसम खायी है, वरना मोदी सरकार से पहले जितनी भी सरकारें बनी सबने गरीबी मिटाने के बारे में ही काम किया (चाहे किसी ने कम किया या किसी ने ज्यादा किया मगर किया गरीबी मिटाने का ही, गरीबों को मिटाने का नहीं).

पलायन अर्थ-व्यवस्था के लिये घातक है लेकिन ये पलायन गरीबों के लिये तो कोरोना से भी ज्यादा जानलेवा है क्योंकि एक तो पलायन में वे विभिन्न कारणों से मौतों का शिकार हो रहे हैं और सरकार इस पलायन को रोकने की दिशा में कोई कदम इसलिये नहीं उठा रही क्योंकि ये गरीब लोग बड़े शहरों में जिन जमीनों पर रह रहे थे (कुछ झुग्गियां बनाकर तो कुछ सरकारी जमीनों पर भी रह रहे थे), अब उन पर नेताओं की नजर है और अफसरों की मिलीभगत के साथ इन जमीनों पर अब लेंड माफियाओं का कब्ज़ा होगा और उन पर शॉपिंग मॉल और बड़े बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े होंगे !

मोदीजी ने पहले ही बोल दिया था कि अर्थ व्यवस्था पांच खम्बों पर खड़ी होगी, जिसमें दूसरा खम्बा इंफ्रास्ट्रक्चर होगा. लेकिन ये इंफ्रास्ट्रक्चर कहांं पर खड़ा होगा इसका खुलासा मोदीजी ने नहीं किया था. एक तरफ जहांं गरीबों को राहत देने की जगह योजनाओं का मापदंड ही बदल दिया गया है और वही दूसरी तरफ जो वास्तव में माइक्रो और स्माल उद्योग थे, उन्हें केटेगिरी से ही बाहर निकाल दिया गया है !

अब नये आवेदन के अनुसार एक करोड़ वालों को माइक्रो और 1 करोड़ से 200 करोड़ तक वाले स्माल इंडस्ट्रीज में गिने जायेंगे. अब ये तो अनपढ़ व्यक्ति भी समझता है कि माइक्रो उद्योग वाले 5 हजार का और स्माल इंडस्ट्रीज वाले 1-5 लाख तक का इन्वेस्ट करते हैं लेकिन अब नयी व्याख्या के अनुसार मोदीजी के वो दोस्त जिन पर पहले से ही बैंकों का एनपीए बकाया है, नये नाम से कम्पनियांं खोलकर बैंकों से फिर लोन लेंगे और चुकाना तो हम सबको ही पड़ेगा.

बेचारे गरीब और निम्न वर्गीय के हाथ कुछ नहीं लगा. उसे भगवान भरोसे छोड़ दिया गया और मध्यमवर्गीय के हाथ में झुनझुना थामकर खुश कर दिया ! राहत पैकेज के नाम पर जो बजटीय घोषणायें बतायी गयी, उसमें इन बेचारे पैदल पलायन करने वाले मजदूरों को खाना तक खिलाने की बात नहीं है क्योंकि सरकार जानती है कि आप और हम मिलकर उनका पेट उनके घर पहुंंचने तक तो भरते ही रहेंगे और इस तरह मोदी केयर्स का सारा पैसा फिर से सांसदों/विधायकों को खरीदने/तोड़ने और दूसरी पार्टियों की सरकारें गिराने के काम में आयेगा. आप लोग अपनी मेहनत का पैसा ऐसे ही मोदी केयर्स में लुटाते रहिये और आपकी दया और करुणा नाम की मांं-बहन को मोदीजी ऐसे ही मुस्कुराकर एक करते रहेंगे और आपको भाषण पेलते रहेंगे !

राहत देने के नाम पर सरकार कैसे होशियारी करके आम जनता को चुना लगा रही है और अपने पसंदीदा लोगों को प्रोजेक्ट और लोन देने के लिये कैसे राहत योजनाओं में पेंच डालती है उसे ऐसे समझिये, यथा – सबसे पहले तो ये जान लीजिये कि घोषणाओं में सिर्फ 3.6 करोड़ रूपये की योजनाओं की ही घोषणा की गयी है. अब समझने की बात ये है कि ये बाकी का 16.4 करोड़ रूपया किसकी जेब में जायेगा ?

इसके अलावा अब तो सरकार ने स्पष्ट रूप से ऐलान करवा दिया है कि लोन बिना गारंटी वाला होगा और लोन का मूलधन चुकाने की जरूरत भी नहीं होगी. इसका फायदा किसको मिलेगा, इसे लिखने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि पिछले 400 वर्षोंं से भारत ऐसे ही मगरमच्छों द्वारा लूटा जा रहा है और ये लूटेरा वर्ग इतना ज्यादा ताकतवर है कि बेचारी छोटी मछलियों की तो हिम्मत ही नहीं होगी इन मगरमच्छों के रास्ते में आने की. और रही सही कसर सरकारी नेता अपने कमीशन के चक्कर में पूरी कर देते हैं !

मेरे दिमाग में हमेशा ये विचार आता है कि आखिरकार कैसे सिर्फ अति धनवान लोग ही माफियाओं की गिनती में आते हैं ? गरीब लोग उनके गुर्गे तो हो सकते हैं, मगर माफिया नहीं बन पाते. विचार करते-करते ये बात भी दिमाग में आयी कि कोई दूसरा व्यक्ति काबिल होने के बावजूद इन माफियाओं को टक्कर क्यों नहीं दे पाता ?

सोचते-सोचते इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सभी माफ़ियाज आपस में मिले हुए होते हैं और अन्दरखाने में सरकारें इनकी सहयोगी होती है. जैसे मान लीजिये कि कोई खनन माफिया है (पहले स्पष्ट कर दूंं कि आज के समय में खनन बिना आधुनिक मशीनरी के इस्तेमाल के संभव ही नहीं और ये मशीनरी सिर्फ गिनी-चुनी कम्पनियांं ही बनाती है और सिर्फ माफिया कनेक्टेड लोगों को ही इसकी सप्लाय की जाती है). सरकारें दिखावे के लिये कम क्षमता वाली खराब मशीनरी खरीदती और इस्तेमाल करती है ताकि नेता कमीशन खाकर टेंडर उठवा सके !

ये टेंडर वाली प्रक्रिया में भी बहुत ही सूक्ष्म पेंच डाले जाते है, जिसे आम जनता न तो समझ पाती है और न ही पकड़ पाती है. इसे उदाहरणार्थ ऐसे समझिये – तेल निकालने की तकनीक दुनिया में सिर्फ 25-30 कंपनियों के पास ही है, अतः जिस कम्पनी को इन कम्पनियों के मालिक ये मशीनरी देते हैं, वही कम्पनी तेल निकाल पायेगी और ये वही कम्पनिया होती है जो चुनावों में या नेता के पद पर बने रहने तक उनका सारा खर्चा वहन करती है (जैसे मुकेश अम्बानी की रिलायंस मोदीजी का सारा खर्च उठाती है), क्योंकि इन्हें देश की संपदा लूटने के लिये ऐसे ही नेता चाहिये जो इनके इशारे पर सरकारी स्कीमें निकाले और हस्ताक्षर भी करे (जैसे मोदीजी ने टाटा से लेकर अम्बानी-अडानी और बिड़ला तक के प्रोजेक्ट सीएम रहते साइन किये और वो बाद में घोटाले निकले लेकिन चूंंकि खुद की ही सरकार है, अतः जांंच कौन करे ?).

ये ही वे बड़े माफ़ियाज (अम्बानी-अडानी-टाटा इत्यादि) हैं, जो कॉर्पोरेट का मुखौटा लगाये संपदाओं की लूट करते हैं और इसलिये वे राजनैतिक पार्टियों का खर्चा उठाते हैं और उन्हें स्पॉन्सर करते हैं, और बड़े बड़े चंदे भी देते हैं क्योंकि इन्हे देश की संपदाओं की लूट करने के लिये पीएम पर अपना कंट्रोल चाहिये, जो कि अभी है. क्योंकि पीएम के जरिये वे इस लूट की किसी भी कार्यवाही की प्रक्रिया में पुलिस से लेकर जजों तक को पीएम (सरकार) के जरिये नियंत्रित कर अपने अनुकूल करवा लेते हैं (इन सबकी असलियत ट्रैक करने के लिये आपको संबंधित चीज़ों पर गूगल करना होगा और आप घर बैठे परिणाम जान जायेंगे).

आम आदमी क्योंकि इतने झमेले में पड़ता ही नहीं इसलिये उसे कुछ भी मालूम नहीं होता. और चूंंकि न्यूज मीडिया चैनल और अखबार भी ज्यादातर इन्ही माफ़ियाज की कम्पनियांं होती है, तो पेड मीडिया इस बिंदु को क्योंकर टच करेगा ? अगर कोई स्वतंत्र पत्रकार अपने स्तर पर कोई जांंच करके कोई खुलासा करता है तो या तो उसे खरीद लिया जाता है या उसे मिटा दिया जाता है (जज लोया की तरह) अथवा मामला तूल पकड़ लेवे तो उसे दूसरी किसी खबर को सेंसनात्मक बनाकर या हिन्दू-मुस्लिम/ नेशनल-एंटी-नेशनल की डिबेट में दबा दिया जाता है !

हालांंकि ये मेरी इस पोस्ट का विषय नहीं है और मैं विषय से भटक रहा हूंं क्योंकि मुझे ये बताना था कि कैसे सरकारी टेंडर में पेंच रखकर कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाया जाता है, मगर बात की बात निकली है तो एक और बात दिमाग में चल रही है कि कांग्रेस को कोल ब्लॉक घोटाले के लिये भक्तों ने बहुत वायरल किया था हालांंकि बाद में कांग्रेस कोर्ट में सभी 60 मामलो में से 57 में बरी हो गयी थी और 3 का फैसला अभी आया नहीं है लेकिन उसमें भी बीजेपी के ही तीन नेता फंसे हुए हैं (शायद इसीलिये वो फैसला रुका हुआ है).

कांग्रेस ने तो कोल ब्लॉक घोटाला किया या नहीं यह तो आगे पता चलेगा, मगर मोदीजी ने जरूर किया है. और ये 2019 में मोदी सरकार द्वारा आवंटित की गयी कुछ कोयला खदानों का उदाहरण देख लीजिये (आंकड़े भारत सरकार की अधिकृत वेबसाईट से उठाये हैं, आप वहां जाकर जांंच सकते हैं), यथा –

₹154 प्रति टन
₹156 प्रति टन
₹185 प्रति टन
₹230 प्रति टन
₹715 प्रति टन
₹755 प्रति टन
₹1100 प्रति टन
₹1230 प्रति टन
₹1674 प्रति टन

154 रुपये से 1674 रुपये तक लगभग 11 गुना फर्क है ! (समझने की बात ये है कि इनकी दरों में इतना फर्क क्यों है ?).

भक्त और बीजेपी समर्थक कहेंगे कि कोयले की गुणवत्ता इसका कारण हो सकता है, लेकिन जो असल कारण है वो ये कि असल में इन माफ़ियाज का सरकारी गठजोड़, और यही बताना मेरा ध्येय था कि कैसे स्कीमें बनाकर नीलामी की शर्तों को सरकार द्वारा इस तरह से ड्राफ्ट किया जाता है ताकि सिर्फ चुनिंदा कम्पनी (जिसको असल फायदा पहुंंचाना होता है वही) को ही अत्यल्प दामों में सारे राइट्स दिये जा सके और इसे समझने के लिये आप कोल मिनिस्ट्री की वेबसाइट चेक कीजियेगा, जिसमें लिखा है कि कोई भी बोली लगा सकता है लेकिन साथ में उन्होंने यह शर्त भी जोड़ी है कि उनके पास स्टील या सीमेंट का संयंत्र होना चाहिये (यही शर्तें या टी एंड सी ही वो पेंच या घोटाले होते हैं, जो संबंधित कम्पनी को फायदा पहुंचाते हैं क्योंकि ये तो पहले ही तय होता है कि वो क्षमता सिर्फ उसी कम्पनी के पास है).

ठीक इसी तरह इस राहत पैकेज में भी ऐसी शर्तों को जोड़ दिया गया है जिससे सिर्फ कुछ खास लोग ही इसका फायदा उठा ले जायेंगे और आम आदमी के हाथ लगेगा ‘बाबाजी का ठुल्लू’. अर्थात अगर आपकी क्षमता एक करोड़ से दो सौ करोड़ की होगी तभी आप माइक्रो या स्मॉल इंडस्ट्रीज की गिनती में आयेंगे और ये तो सभी को पता होगा कि जिन्हें असल में राहत चाहिये, उनके पास एक करोड़ तो क्या अभी एक लाख भी नहीं होंगे !

माफ़ियाज द्वारा नियंत्रित सरकार जानबूझकर अपनी हर स्कीम में ऐसी कई शर्तें जोड़ती है जो कहती है कि यदि आपके पास अमुक क्षमता होगी तो ही आप इसके अधिकारी होंगे वरना आप स्कीम का लाभ नहीं उठा पायेंगे और अंत में आम जनता के हाथ लगता है बाबाजी का ठुल्लू क्योंकि उन स्कीमों में या तो सिर्फ वे कुछ बड़े खिलाड़ी ही फायदा उठाते हैंं जिन्हें लाभ देने के लिये यह शर्तेंं जोड़ी जाती है अथवा नेता लोग उन राहत पैकेजों को सरकारी कागजों में दिखाकर उनका पैसा खुद हजम कर जाते हैं !

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