अटल बिहारी बाजपेयी का चीन के साथ संबंधों में गहरा योगदान है. 1950 के स्वयंसेवक अटल के चीन के लिए नकारात्मक विचार मोरारजी सरकार में विदेश मंत्री अटल और बाद में प्रधानमंत्री बनते-बनते एकदम बदल गए थे. फ़रवरी, 1979 में अटल बिहारी बाजपेयी चीन के प्रभावशाली नेता तेंंग श्याओ पिंग से मिलने गए.
1962 के युद्ध के बाद 17 साल तक चलते आ रहे तनाव को वाजपेयी ने भारत-चीन के बीच ये पहली हाई-लेवल राजनैतिक मीटिंग से ख़त्म किया. यहां से ही भारत-चीन के नए सम्बन्धों की शुरुआत हुई थी, जो आज तक चल रही है. इस मुलाकात में वाजपेयी से तेंग ने कहा कि ‘हम एशिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश आपस में दोस्त क्यों नहीं हैं ?’ चीन का उद्देश्य भारत के बाजार में सामान बेचना था इसलिए तेंग ने कहा कि ‘हमारे द्विपक्षी व्यापारिक समझौते हमारी सीमाओं के विवाद के कैदी नहीं बनने चाहिए.’
व्यापारिक समझौते को अलग रखते हुए सीमा विवाद को बिना सेना का प्रयोग किये लाईन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के स्टेटस को बातचीत से सुलझाने की बात हुई. कहते हैं 1993 में सीमा पर हथियार ना प्रयोग करने वाले समझौते की नींव यही रखी गयी थी. 2004 में तेंग की जन्मदिन पर वाजपेयी ने इस मुलाकात की बातों को दोहराया भी था.
दिसंबर, 1982 में दिल्ली से इंडियन कौंसिल ऑफ़ सोशल साइंसेज रिसर्च के एक दल ने रिसर्च के दौरान जब तेंग से इस मुद्दे पे पुछा तो उन्होंने बताया की ‘जब 1979 में आपके विदेश मंत्री अटल बिहारी चीन आये थे, तब मैंने उन्हें एक ‘पैकेज समाधान’ दिया था कि चीन-भारत के बीच सिर्फ सीमा विवाद है. दोनों देशों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यदि दोनों देश थोड़ा-थोड़ा कन्शेसन देने को राजी हो जाएंं तो ये समस्या हम सुलझा सकते हैं, हम दोनों को अपनी जनता को समझाना पड़ेगा लेकिन 1950 की दोस्ती वापस कायम की जा सकती है.’
ध्यान दीजिये यहां चीन भी अपने दावे से पीछे जाने की बात कर रहा था और बॉल अटल जी के पाले में थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, अन्यथा ये समस्या तभी हमेशा के लिए सुलझ गयी होती.
2003 में अटल जी दोबारा चीन गए लेकिन इस बार चीन बिलकुल 1979 की अपेक्षा बदल चुका था. अटल जी और उनके दल ने पुडोंग डिस्ट्रिक्ट की हुआंग्पू नदी में नाव की सैर की तो किनारे के दूसरी ओर अब गगनचुम्बी इमारतें बन चुकी थी. अटल जी ने इसी विजिट के दौरान तिब्बत के स्वतन्त्र क्षेत्र को रिपब्लिक ऑफ़ चीन के ‘अभिन्न हिस्से’ का दर्जा दे दिया.
उस समय के विदेश निति जानकारों ने इसकी निंदा की, बल्कि उस समय के राजदूत वगैरह डिप्लोमेट्स की नजर में भी ये गलत था क्योंकि इसके बाद भारत ने चीन के सामने तिब्बत कार्ड खेलने का अवसर हमेशा के लिए खो दिया था. इससे पहले जब चीन हमारी जमीं पे दावा करता तो हम तिब्बत को चीन का हिस्सा ना मानने का कार्ड खेलते. तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा पहले ही भारत में शरणार्थी थे. हालांंकि वाजपेयी को ये बात जमीनी हकीकत के हिसाब से ठीक लगी और इसी दौरे में चीन ने भी सिक्किम को भारत का हिस्सा मान लिया. इसी के साथ दोनों देशों में द्विपक्षीय व्यापार के करार भी हुए और व्यापार बढ़ना शुरू हुआ.
तिब्बत देकर वाजपेयी ने भारत-चीन सीमा पर बिना हथियार प्रयोग किये LAC विवाद सुलझाने के लिए बातचीत के प्रधानमंत्रीस्तरीय प्रतिनिधि नियुक्त किये. वाजपेयी के खास राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा और बेन जियाबो के खास चाइनीज स्टेट कौंसिलर दाई बिंगगुओ को ये काम सौंपा गया.
वाजपेयी जी की मृत्यु पर वेन जिआबाओ ने कहा था, ‘वाजपेयी जी ओपन माइंडेड नेता थे. वो भूतकाल के कड़वे प्रसंगों की बजाय वर्तमान स्थिति को देखते हुए कुछ देकर कुछ लेकर सीमा विवाद को सुलझाने में विश्वास रखते थे, उन्होंने व्यापार और स्ट्रेटजी पे ध्यान दिया. मोदी उन्हीं की पार्टी के नेता हैं. उनके पास दूसरा वाजपेयी बनने का सुनहरा अवसर है.’ हालांंकि ऐसा हो ना सका क्योंकि वाजपेयी जी देश के लिए काम करते थे और मोदी जी अगले चुनाव जीतने के लिए.
भारत और चीन के बीच की सीमा संधि-समझौते :
सितम्बर, 1993 में भारत और चीन के बीच में Border Peace and Tranquillity Agreement (BPTA) साइन हुआ, जिसमें वाजपेयी के शुरू किये ड्राफ्ट पे मुहर लगी. इस एग्रीमेंट में लिखा था कि ‘दोनों देश एक कॉमन LAC को संज्ञान में लेते हैं. भारत और चाइना दोनों देश सीमा पर पेट्रोलिंग के दौरान हथियारों का प्रयोग नहीं करेंगे और जल्द ही LAC से जुड़े राजनैतिक नक़्शे एक दूसरे देश को मुहैया कराएंंगे ताकि सीमा निर्धारण हो सके.’ इसे ‘मदर एग्रीमेंट’ भी कहा जाता है क्योंकि बाकि सारे एग्रीमेंट इसके सपोर्टिव डॉक्युमेंट की तरह हैं.
हालांंकि चीन ने जानबूझ के ऐसा नहीं किया. 1996 में इसमें एक सप्लीमेंट एग्रीमेंट भी जोड़ा गया. 2005 में बॉर्डर पेट्रोल का एग्रीमेंट साइन हुआ क्योंकि दोनों के पेट्रोलिंग पॉइंट्स में बहुत कन्फ्यूजन हो रही थी. चौथा एग्रीमेंट ऑपरेशन और वार्ता के लिए सन 2012 में हुआ. आखिरी पांचवां एग्रीमेंट सन 2013 में Border Defence Cooperation Agreement हुआ.
आज जो संधियां भारत चीन के बीच है, वो उस समय की मांग थी और उस समय अटल बिहारी चीन के खिलाफ नकारात्मक विचार रखते थे, चीन से युद्ध की बात करते थे लेकिन खुद विदेश मंत्री बने तो बिना हथियार सुलझाने की बात की और प्रधानमंत्री बने तो तिब्बत चीन को दे आये. शायद उन्हें उस समय देश के लिए वही सही लगा होगा, आज भक्त लोग इसका श्रेय किसे देते हैं ?
- लक्ष्मी प्रताप सिंह
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