‘जब रोम जल रहा था तब नीरो बंशी बजा रहा था’, यह एक पुरानी कहावत है, जो एक पागल और निकम्मा शासक का प्रतीक बन गया था. परन्तु, यह कहावत भी भारत के आधुनिक पागल और निकम्मा शासक नरेन्द्र मोदी के सामने तुच्छ साबित हो गया है.
पिछले 6 सालों से नोटबंदी, जीएसटी आदि के जरिए देश के नागरिकों को लूटने-खसोटने के साथ-साथ देश भर में जिस तरह हत्या और बलात्कार का बाजार सजा दिया है, उसी का परिणाम है कि आज देश के करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये, हजारों लोग भूख से मर गये, हजारों लोगों ने आत्महत्या कर लिया और करोड़ों लोग दरबदर की ठोकरें खा रहा हैं.
एनआरसी-सीएए जैसे जनविरोधी कानूनों के जरिए लोगों को तंग-तबाह करने का पूरा इंतजाम किया और लोग उसके विरोध में सड़क पर न उतर सके, इसके लिए लॉकडाऊन जैसा आपातकाल लगाकर पुलिस द्वारा सरेआम बेईज्जत करने से लेकर पीट-पीटकर मार डालने अथवा फर्जी मुकदमों में फंसाकर जेल भेजने का उपक्रम यह पागल और हत्यारी नरेन्द्र मोदी सरकार ने किया है.
यह पागल और हत्यारा नरेन्द्र मोदी इस कदर निर्लज्ज और मगरुर है कि जब सारे देश के लोग रो-बिलख रहे हैं, पैसे-पैसे को मोहताज हो गये हैं, दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गये हैं, सीमा पर नेपाल समेत तमाम पड़ोसी राष्ट्रों के साथ विवाद पैदा कर लिया है और सेना सीमा पर मर रहे हैं, तब यह पागल हत्यारा नरेन्द्र मोदी वन्यजीव मयूर को दाना खिलाने का तमाशा कर देश के लोगों का मजाक उड़ा रहा है.
सोशल मीडिया पर भी लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. कृष्ण कांत सोशल मीडिया पर लिखते हैं, ‘रोमन शासक कहते थे कि लोगों को रोटी नहीं दे सकते तो उन्हें सर्कस दो.’ वे आगे लिखते हैंं –
महामारी की दस्तक से सहमी हमारी जनता ने भी रोटी और परिवहन मांगा था. उस समय सरकार ने कहा कि दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत देखो. हजारों ट्रेंनें और बसों के बेड़े खड़े रहे, लोग पैदल भागकर जान गंवाते रहे. अंतत: जनता ने या तो खुद अपनी जान बचाई या जान गवां दी.
सरकार ने पहले कहा ताली बजाओ, फिर कहा दिया जलाओ. फिर कहा अब घर में रहो, 21 दिन में सब ठीक हो जाएगा. फिर कहा कि अब इसी के साथ जीना पड़ेगा. अब तक 30 लाख से ज्यादा केस हो चुके हैं और 56 हजार से ज्यादा लोग जान गवां चुके हैं.
इस सर्कस में कई करोड़ की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए. कोरोना काल के पहले ही करीब पौने चार करोड़ लोग अपना रोजगार गवां चुके थे. वह महानतम सर्कस नोटबंदी का दूरगामी असर था. सोने पर सुहागा ये मुआ कोरोना आ गया.
तमाम रिपोर्ट हैं कि बेरोजगारी 45-50 साल के उच्चतम स्तर पर है. अर्थव्यवस्था 1951 की स्थिति में चली गई है. बेरोजगारी के साथ गरीबी और भुखमरी बढ़ रही है. देश के सभी कोर सेक्टर या तो डूबने की हालत में हैं या फिर मंदी से जूझ रहे हैं.
कोरोना संकट के दौरान सैकड़ों लोग भूख से, पैदल चलकर मरे हैं. इन मुसीबतों के दौर में हमारे प्रधानमंत्री मोर को दाना चुगा रहे हैं.
वहीं, अनिल कुमार रार लिखते हैं, प्रधानमंत्री ने आवासीय परिसर में मोर के साथ अपना फोटो खिंचवाकर एक कविता भी शेयर की है. कविता पर तो कुछ नहीं कहना है, क्योंकि रस, लय, वस्तु – किसी भी दृष्टि से उसे कविता कहना अपनी आस्वाद्यता पर सवाल खड़े कर लेना है.
भोर भयो, बिन शोर,
मन मोर, भयो विभोर,
रग-रग है रंगा, नीला भूरा श्याम सुहाना,
मनमोहक, मोर निराला।रंग है, पर राग नहीं,
विराग का विश्वास यही,
न चाह, न वाह, न आह,
गूँजे घर-घर आज भी गान,
जिये तो मुरली के साथ
जाये तो मुरलीधर के ताज। pic.twitter.com/Dm0Ie9bMvF— Narendra Modi (@narendramodi) August 23, 2020
लेकिन सवाल आवासीय परिसर में मोर रखने पर है. मेरी जानकारी के मुताबिक वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के मुताबिक आवासीय परिसर में वन्य जीवों को रखना अवैध और दंडनीय है. जितनी निकटता के साथ वह मोर उनके मुखचंद्र की शोभा पर मंत्रमुग्ध है, उससे उसके वन्य होने पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. सीढ़ियों पर बैठा महाकवि भी उतनी ही तन्मयता के साथ बिना कलम के काव्य-रचना में लीन है.
बहुत शोर मचने पर यह भी जानकारी दी जा सकती है कि मोर प्रधानमंत्री बिना नहीं रह पाते हैं और उड़कर भेंट करने आ जाय करते हैं. मोरों के इसी निश्छल प्रेमाघात के कारण राजनीति की हृदयहीन चट्टानों से महाकवि की काव्य-सरिता उच्छल आवेग के साथ बह पड़ती है. फिर सारे टीवी, अखबार वालों के द्वारा अनेक स्वरों में महाकवि के काव्यपाठ का जबरन रसास्वादन कराया जाएगा और इस कोलाहल में इसका कानूनी पक्ष कहीं सुबककर सो जाएगा.
दरअसल, मयूर के साथ तस्वीरें खींचना नरेन्द्र मोदी के सर्कस का नया आयटम है. इससे पहले वह नोटबंदी के समय अपनी 90 वर्षीय बुढिया मां को बैंक के लाईन खड़ा कर अपनी भद्द पीट चुका था. कल सर्कस के तमाशा में उसकी बुढिया मां थी और आज वन्यजीव मयूर है.
नीरो के तर्ज पर इस पागल निर्लज्ज शासक मोदी का तमाशा जारी है. बस देखना केवल यही है कि आखिर कबतक तमाशा देखकर ताली-थाली बजाने वाले लोग खुद को और अपने बच्चों को भूख और बीमारी से मरते देखते रहेंगे ?
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