प्रतिरक्षा प्रणाली को नकारने वालों के लिए एक सार संक्षेप में एक रिपोर्ट कि वायरस किस प्रकार मानव पर अपना असर डालते हैं और वह कैसे प्रतिक्रिया करता है, प्रस्तुत है. अगर हमारे वातावरण में रोगजनक वायरस हैं तो सभी इंसान जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता है या नहीं भी है ? ये रोगजनक वायरस कैसे उस पर हमलावर होते हैं ? यदि उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता है तो यह दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो जाती है.
प्रथम तो हमारी कोशिकाओं को वायरस से सुरक्षित रखने के लिए वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनाना शुरू हो जाता है. यह प्रक्रिया आंशिक रूप से ही प्रभावी होती है यानी कुछ वायरस मारे जाते हैं तो कुछ कोशिकाओं को रोग ग्रस्त कर देते हैं. जरूरी नही है कि रोग के लक्षण भी प्रगट हों. परंतु इंसान फिर भी रोग ग्रस्त नहीं होता.
इसके साथ ही प्रतिरक्षण प्रणाली की दूसरी रक्षण प्रणाली कार्य करना शुरू कर देती है. और यही ऊपर वर्णित टी-सेल प्रणाली है. सफेद रक्त कोशिकाएं, बाहर से निर्धारित करती हैं जिनके पीछे छिप कर वायरस अपने अंडों का पोषण करते है. टी-सेल, पूरे शरीर में उन्हें खोज उन्हें मार डालते हैं. यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक अंतिम वायरस भी मर न जाये.
तो यदि PCR कोरोना टेस्ट एक ऐसे इंसान का किया किया जाय जिसमें प्रतिरक्षण प्रणाली सक्रिय है, तो उसमें वायरस प्रगट नहीं होगा बल्कि बचे हुए वायरस के अवशेष ही मिलेंगे. यद्यपि शरीर में लम्बे समय से मरे हुए संक्रमित वायरस मौजूद हों तो कोरोना टेस्ट फिर पॉज़िटिव आ जायेगा.श क्योंकि टेस्ट का PCR तरीका यदि शरीर में वायरस के अनुवांशिक अवशेष सूक्ष्म मात्रा में भी हो तो यह टेस्ट पॉजिटिव आ जाता है.
200 कोरियाई लोगों के कोविड-19 से दुबारा संक्रमित होने की खबर वैश्विक स्तर पर वायरल हुई और जिसे WHO ने भी प्रकाशित किया, से निष्कर्ष यह निकलता है कि इन लोगों में संभवतः वायरस के विरुद्ध प्रतिरक्षण था ही नहीं. जिन कोरियाई लोगों की प्रतिरक्षण प्रणाली पूरी तरह सक्रिय थी, वे पूर्णतः स्वस्थ रहे या उन पर वायरस का मामूली असर ही हुआ.
इस बात को लेकर WHO का स्पष्टीकरण आया और बाद में अफसोस जताया गया. यह सब टेस्ट की अति सम्वेदनशीलता के चलते हुए, जिसके कारण वायरस के कचरे के ढेर भी पॉजिटिव परिणाम दे देते हैं. सम्भव है रोज प्रकाशित संक्रमित लोगों की संख्या में वायरसों के ऐसे कचरे के कारण टेस्ट के पॉजिटिव आने वालों की संख्या के भी शामिल होने के कारण यह संख्या वास्तविक संक्रमितों की संख्या से बहुत ज्यादा दिखती है.
शुरुआती दौर में वायरस कहां-कहां फैला और मौजूद है, को जानने की लिए PCR टेस्ट अपनी अतिसम्वेदनशीलता के कारण उपयोगी था, लेकिन यह टेस्ट इस बात को प्रमाणित नहीं करता कि वायरस आज भी मौजूद है यानी कि वायरस आज भी सक्रिय है.
दुर्भाग्य से यह वायरसविदों को यह जानने के लिए कि सांस के साथ कोई व्यक्ति कितनी मात्रा वायरस को बाहर फेंकता है, की प्रचंडता की तुलना एक जीव में रक्तप्रवाह में, आमतौर पर प्रति मिलीलीटर वायरस की मौजूदगी से करने के लिए किया जाता है. सौभाग्य से, हमारे देखभाल केंद्र दिन भर फिर भी खुले रहते है.
जर्मन वायरसविद किसी व्यवस्था को यदि वह उनके अनुसार उपयोगी नहीं है तो अन्य देश क्या कर रहे हैं कि देखा देखी कोई निर्णय नहीं करते. तब भी नहीं यदि अन्य देशों में संक्रमितों की संख्या में तेजी से गिरावट ही क्यों दर्ज हो रही हो.
कोरोना प्रतिरक्षण प्रणाली की समस्याएं. इन सब की वास्तविक जीवन में क्या उपयोगिता है ?
वायरस के अंडों के रोगोद्भेदन के लम्बे समय के अंतराल 2 से 14 दिनों के बाद 22 से 27 दिनों के भीतर किये गए टेस्ट परिणाम किसी वायरसविद को सचेत करने के लिए पर्याप्त हैं, साथ ही यह दावा कि पांच दिनों के बाद अधिकांश रोगी वायरस का स्राव नहीं करेंगे.
बारी-बारी से किये गए दोनों दावे इस निष्कर्ष पर पहुंचाते हैं कि इनकी पृष्ठभूमि में प्रतिरक्षा प्रणाली का आधार संभावित एक वायरल संक्रमण चक्र की तुलना में- अपेक्षित है. यानी कि वायरस के अंडों के रोगोद्भवन का लम्बा समय अंतराल और शीघ्र प्रतिरक्षण. यह प्रतिरक्षा रोग से गंभीर संक्रमित रोगियों के लिए भी समस्या लगती है.
हमारी एंटीबॉडी का मापांक यानी कि हमारी रक्षा प्रणाली की सटीकता हमारी उम्र में वृद्धि के साथ घटती है. लेकिन खराब खान-पान वाले लोग यानी जो कुपोषित हैं, उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है, यही वजह है कि यह वायरस न केवल एक देश की चिकित्सा समस्याओं को प्रकट करता है, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी बताता है.
यदि किसी संक्रमित व्यक्ति में एंटीबॉडी पर्याप्त मात्रा में नहीं बनती तो यह इस बात का संकेत माना जायेगा कि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है. धीरे-धीरे वायरस उसके पूरे शरीर मे फैल जाता है. जब पर्याप्त एंटीबॉडी नहीं बनती तो रक्षक प्रणाली की दूसरी रक्षण प्रणाली ही बचती है. टी-कोशिकाएं पूरे शरीर में वायरस-संक्रमित कोशिकाओं को मारना करना शुरू कर देती हैं. यह एक अतिरंजित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है.
मूल रूप से बड़े पैमाने पर वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को मारने के लिए, इसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहा जाता है. बच्चों में इसका होना बहुत ही दुर्लभ घटना है, जिसे घबराहट फैलाने के लिए हमारे देश में भी इस्तेमाल किया गया है. यह जानना भी रोचक होगा कि इसे बहुत आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है.
संक्रमित बच्चों में संक्रमण के बाद स्वस्थ हुए व्यक्ति की रक्त कोशिकाओं को चढ़ा कर एंटीबॉडीज की संख्या बढ़ाई जा सकती है. इसका मतलब है कि आबादी में प्रतिरक्षा यदि वास्तव में मौजूद नहीं है तो इसे चिकित्सीय रूप से बढ़ाया जा सकता है. अब क्या भले ही वायरस अभी चला गया हो लेकिन जाड़ों में इसकी वापसी हो सकती है. लेकिन तब इसका दूसरा दौर होगा जो कि मात्र सर्दी जुकाम तक सीमित रह सकता है.
जो युवा और स्वस्थ लोग वर्तमान में अपने चेहरे पर मास्क लगाकर घूमते हैं, इसके बजाय वे यदि हेलमेट पहने तो यह बेहतर होगा क्योंकि कोविद -19 के एक गंभीर मामले के सम्पर्क में आने से अधिक खतरनाक है उनके सिर पर कुछ गिर जाये. लॉकडाउन में दी गई ढील के बाद स्विस में यदि 14 दिनों में संक्रमण में उछाल आता है तो हम समझेंगे की लॉकडाउन के दौरान जो कदम उठाए गए, वे कारगर रहे हैं.
इसके अतिरिक्त मैं John P A Ioannidis की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने की सलाह दूंंगा जिसमें उन्होंने 1 मई, 2020 में जारी संक्रमितों के वैश्विक आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि 65 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों में मृत्यु दर सभी आयु वर्ग के संक्रमितों की मौतों की संख्या की तुलना में न्यूनतम जीरो दशमलव छः से अधिकतम दो दशमलव छः प्रतिशत ही है.
महामारी से बचाव के शीर्ष पर पहुंचने के लिए हमें 65 वर्ष और अधिक की उम्र वालों को संक्रमण से बचाने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. यदि विशेषज्ञों की यह राय है तो दुबारा लॉकडाउन लगा कर कुछ भी हांसिल नहीं होगा.
सामान्य स्थिति की बहाली के लिए अच्छा होगा यदि संक्रमितों की संख्या को लेकर तहलका मचाने वाले लोगों पर नियंत्रण के उपाय किए जाएं. जैसे कि उन डॉक्टरों पर जो 80 वर्ष से अधिक आयु के गम्भीर कोविद रोगियों के लिए वेन्टीलेटरों की तात्कालिक व्यवस्था न करने में लापरवाह हों. मीडियाकर्मी जो इटली के अस्पतालों की बदहाली जो कि वास्तविकता से उलट है, दिखा रहे हैं. वो सभी राजनेता जो नहीं जानते कि क्या टेस्ट, कब, किसलिए किये जाते हैं.
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