उपर्युक्त तस्वीर वर्तमान भारत नेपाल संबंधों पर गंभीर टिप्पणी है, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ऊंगली दिखाते और आंख से गुर्राते हुए नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से बात कर रहे हैं. इस तस्वीर को जरा और गौर से देखिये. दोनों प्रधानमंत्री की मुखमुद्रा आपको साफ दीख जायेगी, जो किसी भी रुप में नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के लिए बेहद अपमानजनक हैै.
क्या आप किसी दूसरे राष्ट्र के प्रधानमंत्री द्वारा अपने देश के प्रधानमंत्री के साथ ऐसी तस्वीर पर सहज होंगे ? प्रधानमंत्री छोड़िये, व्यक्तिगत तौर पर भी कोई आपके साथ ऐसा करे तो क्या आप सहज होंगे ? यह तस्वीर न केवल नेपाल के प्रति भारत सरकार की विदेश नीति की दुष्टता को दर्शाती है अपितु इसको हवा देने वाली भारतीय सड़ांध मीडिया की काली करतूतों को भी दर्शाती है.
दरअसल, हत्यारे और व्यभिचारी के रुप में कुख्यात भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उसके लठैत अमित शाह और संघ परिवार हत्यारों और अपराधियों का कॉकटेल है. अपराधियों का एक खास गुण होता है, वह कमजोर या छोटी ताकत के आगे चिग्घाड़ता है और मजबूत या बड़ी ताकतों के सामने कुत्ते की भांति पूंछ हिलाता और उसके तलबे चाटता है.
उपर्युक्त तस्वीर भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री की इसी गुंडईपूर्ण व्यवहार को दिखाता है, जो वह नेपाल जैसे छोटे परन्तु सम्प्रभु राष्ट्र के प्रति कर रहा है. इसके उलट यही भारत के प्रधानमंत्री चीन के सामने कुत्ते की भांति न केवल पूछ ही हिलाता है अपितु भारत के 20 जवानों के मारे जाने के बाद भी चीन को दोषी ठहराने की हिम्मत तक नहीं दीखा पाता. इसके बाद भी अगर आप चाहते हैं कि नेपाल, भारत के प्रति दोस्ताना रहे, तो या तो आप पागल हैं या फिर मनुष्य कहलाने के भी योग्य नहीं.
इसी कड़ी में हम भारतीय सड़ांध मीडिया को भी देखते हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर न केवल बदनाम ही है, अपितु हद से ज्यादा अश्लील भी है. महिलाओं के प्रति अपनी घृणित अश्लील सोच को छिपा तक नहीं पाता. यही कारण है कि उसे नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और चीन की राजदूत होउ यांकी की सामान्य राजनयिक बातचीत को अपनी अश्लीलता की भेंंट चढ़ा देता है, जिसके लिए न केवल भारतीय मीडिया अपितु वर्तमान सरकार भी दुनियाभर में कुख्यात हो चुकी है.
2014 में देश की सत्ता पर विराजमान इन आपराधिक गिरोहों का दबंगई भरा व्यवहार देश को खून और आंसुओं में डुबोने की पूरी तैयारी कर चुका है वहीं भारतीय गिद्ध मीडिया भी इसमें बराबर की हिस्सेदारी निभा रहा है. भारतीय मीडिया 2015 की भूकंप जैसी भीषण त्रासदी के वक्त भी किसी कदर गिद्ध बनकर नेपाल के आसमान में मंडरा रहा था, इसके बारे में जर्मनी की अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया ‘डच वैले‘ Deutsche Welle (DW) में लिखता है :
नेपाल के भूकंप प्रभावित इलाके में एक पीड़ित के सिर से खून बह रहा था. उसके पास एक भारतीय टीवी पत्रकार पहुंचा और सवाल किया, ‘आपको कैसा लग रहा है ?’
भारतीम मीडिया की नीचता और दुष्टता से भरा यह सवाल किसी भी सामान्य व्यक्ति का खून उबाल देने के लिए काफी है.
एक और वाकया तब सामने आया जब राहत सामग्री के बंटवारे के दौरान मारपीट होने लगी. एक भारतीय टीवी चैनल का एक कैमरा इस मारपीट को दर्ज करता रहा. पत्रकार के सामने महिला की पिटाई होती रही. उसके सिर से खून बहने लगा. कैमरा इसे रिकॉर्ड करता रहा, ताकि एक्सक्लूसिव स्टोरी हो जाए. बाद में इस घटना को दिखाते वक्त महिला के आस पास लाल घेरा बन जाए. स्टूडियो में न्यूज प्रजेंटर चीख-चीखकर कहने लगे कि ‘ये तस्वीरें आप सिर्फ इसी चैनल पर देखेंगे.’
‘डच वैले’ आगे लिखता है :
पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शोएब अख्तर ने ट्विटर पर एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें एक भारतीय पत्रकार नेपाल के सुरक्षाकर्मियों से उलझते दिख रहे हैं. ट्वीट के मुताबिक, सुरक्षाकर्मी ने कहा, ‘अपना पहचान पत्र दिखाओ.’ इसके जवाब में भारतीय पत्रकार ने कहा, ‘हमें रोकने वाला तू कौन है ?’
शोएब से जब इस तस्वीर की विश्वसनीयता पूछी गई तो एक और यूजर ने लिखा कि यह सच्ची घटना है जो पोखरा में हुई.
भारतीय मीडिया के इस गिद्ध चरित्र का परिणाम यह हुआ कि नेपाली जनमानस के मन में भारतीय मीडिया के प्रति घृणा उपज गई और एक नेपाली नागरिक ट्वीट कर ‘भारतीय मीडिया वापस जाओ’ का हैसटैग चलाते हुए अपने ट्वीट पर साफ लिखा :
भारतीय मीडिया वापस जाओ. आजतक, एबीपी न्यूज़ टीवी, इंडिया टूडे को श्रीमान नरेन्द्र मोदी मेहरबानी कर वापस बुलायें. वे हमें और अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं.’
#GoHomeIndianMedia @aajtak@abpnewstv @IndiaToday
Mr. @narendramodi please call your media back. They r just hurting us more— Nishan (@Nishan_LFC) May 3, 2015
सन्, 2015 भूकंप से त्रस्त नेपाल में वह दौर था, जब उन्हें सबसे अधिक मदद की जरूरत थी. परन्तु, न केवल भारतीय मीडिया ही बल्कि भारत से गये ‘मददगार’ भी नेपाल में इस कदर खुराफात मचाया कि न नेपाल के प्रधानमंत्री को बकायदा इन भारतीय संघी गुंडों को भगाना पड़ा, या यों कहिये बकायदा निकाल बाहर किया. बावजूद इसके न तो कभी भारतीय मीडिया ने और कभी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही कभी इस पर ध्यान दिया, उल्टे नेपाली आवाम के साथ इस कदर दुर्व्यवहार किया मानो वह गुलाम हो.
काठमांडू पोस्ट के मुताबिक़, नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने कहा कि उन्होंने भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य को भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने कड़ी आपत्ति दर्ज कराये. नीलांबर आचार्य ने कहा कि भारतीय मीडिया नेपाल और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को और ख़राब कर रहा है और भारत दिल्ली में नेपाल दूतावास ने विदेश मंत्रालय को एक पत्र सौंपा.
बीबीसी के अनुसार, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कॉम्युनिकेशन में प्रोफ़ेसर आनंद प्रधान कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं है. भारतीय मीडिया की रिपोर्टिंग में पत्रकारिता की जो बुनियादी चीज़ होती है उसका भी पालन नहीं किया गया है. आपकी रिपोर्टिंग तथ्यों के आधार पर होनी चाहिए. आप गल्प नहीं गढ़ सकते. आप अपने शो की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किसी राजनयिक को प्रधानमंत्री के साथ हनी ट्रैप की बात कैसे चला सकते हैं? ये तो बहुत ही आपत्तिजनक है.’
आनंद प्रधान कहते हैं, ‘दरअसल, दिक़्क़त यह है कि भारतीय मीडिया को लगता है कि नेपाल भारत का एक्स्टेंशन है. ये आज तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि वो एक संप्रभु राष्ट्र है और ख़ुद फ़ैसले ले सकता है. नेपाल अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से चला सकता है. भारतीय मीडिया को उपनिवेशवादी मानसिकता से बाज़ आने की ज़रूरत है. अगर इनकी रिपोर्टिंग ऐसी ही जारी रही तो दोनों देशों के संबंधों में लोगों के बीच जो गर्मजोशी है उसे भी नुक़सान होगा.’
नेपाल में नया पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार नरेश ज्ञावली कहते हैं कि ‘अगर भारतीय मीडिया बताता है कि नेपाल चीन की गोद में बैठ गया है तो उसे इसके पक्ष में तथ्य भी देना चाहिए.’
वे कहते हैं, ‘भारत नेपाल की राजनीति में 2015 तक माइक्रो मैनेजमेंट करता रहा. नेपाल की राजनीति को नेपाल के लोग तय करेंगे न कि भारत. हमारा संविधान कैसा होगा ये भारत नहीं तय करेगा. ये नेपाल के लोग तय करेंगे. अगर नेपाल में मधेसी संविधान को लेकर सहमत नहीं थे तो ये नेपाली जनता का नेपाल की सरकार के ख़िलाफ़ विरोध था. भारत का मीडिया मधेसियों को भारतीय मूल का बताता है. ऐसा क्यों करता है ? क्या मधेसी भारतीय मूल के हैं ? मधेसी नेपाली हैं और उन्हें अपने अधिकारों को पाने के लिए भारत की ज़रूरत नहीं है. लेकिन भारत ने इसी को लेकर अघोषित नाकाबंदी लगा दी.’
ज्ञावली कहते हैं, ‘नाकाबंदी के बाद नेपाल में ज़रूरत के सामानों की किल्लत हो गई. हम लैंड लॉक्ड देश हैं. भारत को ये बात पता है और फिर भी नाकाबंदी की. तो क्या हम भूखे रहते ? चीन के अलावा विकल्प क्या था ? हमें तो किसी से मदद लेनी थी. चीन के क़रीब भेजा किसने ? जिस ओली को भारतीय मीडिया ने विलेन बना दिया है, उसी ओली को भारत का क़रीबी कहा जाता था.
लैंड लॉक्ड नेपाल की मजबूरी को भारतीय गिद्ध मीडिया और भारत के गुंडों की सरकार ने कमजोरी समझ लिया था. फिर 2015 से शुरू हुआ यह सफर आज नेपाल में भारतीय गिद्ध मीडिया को न केवल प्रतिबंधित ही कर दिया गया है बल्कि अब नेपाली आवाम भारत से दो-दो हाथ करने को भी तैयार हैं. अगर भारत के साथ नेपाली आवाम युद्ध छेड़ देती है तब वह दिन भी दूर नहीं जब भारत टुकड़ों में बिखर जायेगा, जिसे समेटने में नेहरू-पटेल और भारतीय सेना ने खून पसीना एक किया था क्योंकि गुंडों का गिरोह भारतीय शासक युद्ध में टिक नहीं पायेगा.
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