Home ब्लॉग विकास दूबे प्रकरण : सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह और संवैधानिक पुलिसिया गिरोह के बीच टकराव का अखाड़ा बन गया है पुलिसियातंत्र

विकास दूबे प्रकरण : सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह और संवैधानिक पुलिसिया गिरोह के बीच टकराव का अखाड़ा बन गया है पुलिसियातंत्र

2 second read
0
0
541

विकास दूबे प्रकरण : सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह और संवैधानिक पुलिसिया गिरोह के बीच टकराव का अखाड़ा बन गया है पुलिसियातंत्र

दबंग कहे जाने वाले एक पूर्व सांसद निजी बातचीत के दौरान बताते हैं, ‘लोग मुझे रंगदार कहता है. पर यह सच नहीं है. असलियत में हम लिच्चर है. पुलिस को पैसा देकर या मिलाकर किसी गरीब की हत्या कर देते हैं या उसकी सम्पत्ति हड़प लेते हैं. इस देश में दो ही रंगदार है. एक भारत सरकार और दूसरा माओवादी.’

पूर्व सांसद की इस बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हुए यह कहा जा सकता है कि विनय दूबे ने जिन 8 पुलिसकर्मियों की हत्या की है, वह भारत सरकार के आंतरिक पुलिसियातंत्र के अंदर मौजूद सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह और संवैधानिक पुलिसिया गिरोह के अन्तर्विरोध की व्यथा गाथा है. खासकर 2014 के बाद देश की सत्ता पर काबिज हत्यारों और बलात्कारियों का सरगना नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने जिस प्रकार अपराधियों और बलात्कारियों को पुरस्कृत करना शुरू किया, उसका परिणाम ही विकास दूबे है.

बहुत दिन नहीं बीते हैं जब भाजपा के ही एक सांसद ने अपनी ही पार्टी के एक विधायक को सरेआम चप्पल से पीटा था, और उसके कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी ने उक्त सांसद के साथ मंच साझा करते हुए उस सांसद को ‘सक्रिय और कर्मठ’ बताते हुए उसके काम की सराहना किये थे, यानी अपने ही विधायक को चप्पल से पीटनेवाले सांसद के कुकृत्यों को ‘कानूनी’ जामा पहनाये थे और उसकी पीठ थपथपाई थी.

मामला चाहे लज्जास्पद कठुआ बलात्कार कांड के बलात्कारियों के पक्ष में भाजपा सांसदों द्वारा ‘तिरंगा’ जुलूस निकालने का हो या उन्नाव में बलात्कार पीड़िता के परिवारों को ही पूरी तरह खत्म कर देने वाले भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का मामला हो, चाहे चिंमयानंद बलात्कार केस में पीड़ित को ही जेल में बंद करने का मामला हो या मालेगांव बम बलास्ट केस में भाजपा के वर्तमान सांसद का मामला हो, या फिर लड़की की जासूसी का मामला हो, तार सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जा जुड़ता है.

विकास दूबे यूं ही 8 पुलिसकर्मियों की हत्या नहीं कर दिया. ताजा खबर के अनुसार तकरीबन 200 पुलिसकर्मी विकास दूबे के साथ संबंधों में सीधे तौर पर संदिग्ध है, जिसमें 10 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया है. ये तमाम संदिग्ध पुलिसियातंत्र के भीतर की पुलिस सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह हो सकते हैं और मारे जाने वाले पुलिसकर्मी संवैधानिक पुलिसिया गिरोह के पुलिस. विदित हो कि विकास दूबे का राजनैतिक तार संघ और भाजपा सरकार से सीधे तौर पर जुड़ते हैं.

सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह के ताकत आज इस कदर बेखौफ और मजबूत है, जिसके कारण अपराधी विकास दूबे का हौसला इस कदर बुलंद है कि कानपुर एनकाउंटर केस की जांच कर रहे इंस्पेक्टर के. के. शर्मा को बकायदा फोन कर धमकी देता है. विदित हो की विकास दूबे फोन पर धमकी देते हुए कहता है कि ‘अगर मामला आगे बढ़ता है तो बिकरु गांव में कई लोग मारे जायेंगे.’ यह अनायास नहीं है कि विकास दूबे न केवल पूरी तरह सुरक्षित ही है बल्कि अपने भविष्य को लेकर भी पूरी तरह आश्वस्त है.

विकास दूबे सीधे तौर पर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की उपज है. नरेन्द्र मोदी सरकार जो सीधे तौर पर देश के संविधान से टकरा रहा है, न्यायापालिका को रखैल बना दिया है और पुलिस विभाग को किसी निजी गुंडा गिरोह में बदल दिया है. परन्तु, पुलिस विभाग में चंद ऐसे लोग जो संविधान की बात करना पसंद करते हैं और खुद को केन्द्र की मोदी सरकार के निजी गुंडा गिरोह में बदलने के लिए तैयार नहीं हैं, उनका सफाया करवाया जा रहा है. कड़करे, सुबोध कुमार और अब ये 8 पुलिसकर्मी महज एक उदाहरण है. यह सिलसिला अभी और लंबा चलेगा.

पुलिस विभाग किस प्रकार निजी (सत्ताधारी) गुंडा गिरोह और संवैधानिक गुंडा गिरोह के बीच के टकराव का अखाड़ा बन गया है, इसकी एक झलक इस पत्र में मिलता है, जिसे एक पुलिस अधिकारी ने अपने वरीय अधिकारी को पत्र लिखकर विकास दूबे और उसके पुलिसिया सांठगांठ के बारे में लिखा था. कहा जाता है अब यह पत्र गायब कर दिया गया है, पर उसकी छायाप्रति सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी है.

उक्त गायब हो चुके पत्र के अनुसार देवेन्द्र मिश्र क्षेत्राधिकारी बिल्हौर, कानपुर नगर द्वारा अपने वरीय अधिकारियों को विकास दूबे और पुलिसियातंत्र के अंदर विकसित हो चुके सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह का संबंध उजागर किया गया है. प्रेषित पत्र इस प्रकार है –

अभियुक्त विकास दुबे, पुत्र रामकुमार दुबे, निवासी ग्राम बिकरू, थाना चौबेपुर, जनपद कानपुर नगर के व सह-अभियुक्तों के विरूद्ध मु.अ.स. 65/20 धारा 386/147/148/323/504/506 भादवि का अपराध पंजीकृत हुआ था.

अभियुक्त विकास दुबे के विरूद्ध जनपद व अन्य जनपदों में करीब 150 मुकदमें संगीन धारा हत्या, लूट के अभियोग पंजीकृत होने व उसके द्वारा थाना शिवली के कार्यालय में हत्या कर देने, ऐसे अपराधी के विरूद्ध कठोर कार्यवाही करने हेतु व शान्ति व्यवस्था बनाए रखने हेतु मेरे द्वारा थानाध्यक्ष चौबेपुर को निर्देशित किया गया था क्योंकि ऐसे दबंग अपराधी के विरूद्ध सामान्य जनता में शिकायत करने का साहस नहीं है. इस सम्बन्ध में मेरे द्वारा उपरोक्त घटना के सम्बन्ध में आपको भी बताया गया था.

मुकदमा उपरोक्त की अब तक की कार्यवाही शून्य होने पर मेरे द्वारा दिनांक 14.03.20 का रोआम का अवलोकन किया गया तो विवेचक उ.नि. श्री अजहर इशरत द्वारा इस अभियोग में अपनी वापसी में 386 की धारा हटाकर पुरानी रंजिश होने के सम्बन्ध में अंकित किया गया है तथा इस कार्यवाही के सम्बन्ध में उच्च अधिकारीगणों को अवगत कराने के सम्बन्ध में भी लिखा गया है.

जब मेरे द्वारा विवेचक से इस सम्बन्ध में पूछताछ की गई तो विवेचक ने बताया कि थानाध्यक्ष महोदय द्वारा कहे जाने पर धारा हटाने व उक्त तस्करा अंकित किया गया है.

इस प्रकार ऐसे दबंग कुख्यात अपराधी के विरूद्ध थानाध्यक्ष द्वारा सहानुभूति बरतना व अबतक कार्यवाही न कराना श्री विनय कुमार तिवारी की सत्यनिष्ठा पूर्णतः संदिग्ध है, अन्य माध्यम से भी जानकारी हुई है कि श्री विनय कुमार तिवारी का पूर्व से विकास दुबे के पास आना जाना व वार्ता करना बना हुआ था. यदि थानाध्यक्ष ने अपने कार्य प्रणाली में परिवर्तन न किया तो गम्भीर घटना घटित हो सकती है. थानाध्यक्ष श्री विनय कुमार तिवारी के विरूद्ध उपरोक्त अभियोग में 386 धारा हटवाने व अब तक कोई भी कार्यवाही न कराने के सम्बन्ध में कार्यवाही किये जाने की संस्तुति की जाती है.

भारत की तथाकथित आजादी के बाद से ही पुलिसियातंत्र के भीतर संवैधानिक पुलिस और सत्ताधारी पुलिस का विभाजन साफ तौर पर देखा जा सकता है. परन्तु 2014 के नरेन्द्र मोदी सरकार के पहले यह सरकारी यानी सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह ढ़के छुपे तौर पर काम करती थी, और 2014 के बाद निर्लज्जतापूर्वक खुल्लमखुल्ला काम करती है.

सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह की यह निर्लज्जता जेएनयू के छात्र कन्हैया कुमार और जेएनयू के शिक्षकों को वकीलों के भेष में छुपे संघी गुंडों द्वारा पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में पिटाई के बाद दर्ज पुलिसिया एफआईआर में भी दीख जाता है, जिसमें कन्हैया कुमार की पिटाई को सीधे तौर पर नकार दिया गया था और गिरने से लगी चोटों में तब्दील कर दिया था. बाद में यही सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह जेएनयू के अंदर गुंडों को भेजकर जेएनयू के छात्र छात्राओं की पिटाई करते हैं और सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह किसी भी तरह के बाहरी जनप्रतिरोध को रोकने के लिए मुस्तैद रहती है ताकि गुंडों को किसी तरह की परेशानियां न हो.

सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह और संवैधानिक पुलिसिया गिरोह के बीच का यह अन्तरविरोध अभी और तीखा होगा क्योंकि सत्ताधारी केन्द्र सरकार भाजपा खुद ही हत्यारों, बलात्कारियों और लुटेरों की सरकार बनकर उभरी है, जो अपनी मजबूत और 56″ की छाती के लिए दुनियाभर में कुख्यात हो चुकी है.

संवैधानिक पुलिसिया गिरोह जहां संविधान के दायरे में रहकर और संविधान के आदेशों का पालन करते हुए लोगों पर जुल्म ढ़ाती है तो वहीं सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह सत्तारूढ़ पार्टी के निजी हितों को ध्यान में रखकर आम लोगों को लूटती, खसोटती, हत्या करती और बलात्कार करती है. यह गिरोह आम जनता के लिए बेहद खतरनाक और क्रूर है.

संवैधानिक पुलिसिया गिरोह तो संविधान के तहत आम आदमी को दिये गये अधिकार को एक हद तक तो मानता है परन्तु, सत्ताधारी पुलिसिया गिरोह न तो किसी संविधान को मानता है और न ही किसी आम आदमी को मानव ही समझता है. यह बेहद ही क्रूर और खूंखार होता है. यही वह गिरोह होता है जो भूूखेे भेेड़ियोंं की भांति आम आदमी पर टुट पड़ता है और पुलिस लॉक अप में क्रूरतम तरीके से उसकी हत्या करता है, उसके शरीर में करेंट दौड़ाता है, औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार करता है. तूतीकोरिन जैसी घटनाओं का जिम्मेदार होता है.

देश के आम आदमी को ऐसे खूंखार सत्ताधारी पुलिसिया गिरोहों से यथाशीघ्र छुटकारा पाना चाहिए अन्यथा, न तो उसकी जान ही बचेगी और न ही सम्मान. धन-दौलत तो खैर यह दोनों ही पुलिसिया गिरोह मिलकर लूटते हैं और मौज मस्ती करते हुए आम आदमी के ‘सेवक’ कहलाते हैं.

Read Also –

माओवादियों के नाम पर आदिवासियों की हत्या क्या युद्धविराम का पालन कर रहे माओवादियों को भड़काने की पुलिसिया कार्रवाई है ?
छत्तीसगढ़ः आदिवासियों के साथ फर्जी मुठभेड़ और बलात्कार का सरकारी अभियान
लेधा बाई का बयान : कल्लूरी का “न्याय”
कौन है अरबन नक्सल ?’ संघी दुश्प्रचार का जहरीला खेल
क्रूर शासकीय हिंसा और बर्बरता पर माओवादियों का सवाल
और अब पुलिस ने घायल जेएनयू प्रेसिडेंट के ऊपर एफआईआर दर्ज कर ली !
गढ़चिरौली एन्काउंटर: आदिवासियों के नरसंहार पर पुलिसिया जश्न

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…