Home गेस्ट ब्लॉग ब्रिटिश साम्राज्यवाद ही क्यों, कभी सोचा है ?

ब्रिटिश साम्राज्यवाद ही क्यों, कभी सोचा है ?

8 second read
0
0
1,084

ब्रिटिश साम्राज्यवाद ही क्यों, कभी सोचा है ?

ब्रिटिश साम्राज्यवाद ही क्यों, कभी सोचा है ? इकॉनमिक्स. इंटरनेशनल ट्रेड को इंटरकॉन्टिनेंटल बनाने वाले, सबसे पहले समुद्र पर अपनी सुप्रीमेसी कायम करने वाले, सबसे बडी मरचेंट नेवी खड़ी करने वाले, 400 साल पहले जब हम धर्म-जाति के गौरव में कट-मर रहे थे, वो बहू-स्वामित्व आधारित कम्पनियां बनाने वाले.

हर एक्शन में इकॉनमिक्स. यहां तक कि कलोनाइजेशन भी इकॉनमिक्स. व्यापार करने आये और राज्य कायम करने लगे. शुरू बंगाल से किया, फुटहोल्ड. क्यों ? इसलिए की बन्दरगाह थे. पुर्तगाली राजा की लड़की से ब्याह करके दहेज में मुम्बई लिया, क्यों ? क्योंकि मद्रास और कलकत्ता पोर्ट हाथ में था लेकिन अरब सागर में उनका कोई पोर्ट नहीं था.

पंजाब, यूपी, बिहार को हड़पा. क्यों ? क्योंकि हाई रेवेन्यू वाले उपजाऊ इलाके थे. रेवन्यू याने टैक्स, जो राजगद्दी में होने से ही मिलता है. वो मालवा क्यों जीतना चाहते थे ? क्योकि कपास उगता है, जो उनकी औद्योगिक क्रांति और मैनचेस्टर की मिलों का आधार था. वो दक्षिण में हैदराबाद क्यों जीतना चाहते थे ? क्योंंकि सोने हीरे की खदानें थी.

वो अफगानिस्तान से पीछे क्यों हटे ? उस इलाके से क्योंकि मिलना-जुलना कुछ था नहीं. उन्होंने नेपाल से कौन से इलाके लिए ? पहाड़ नहीं, बल्कि जो उपजाऊ और हिमालय के फुट हिल याने तराई के इलाके थे. राजस्थान, कश्मीर, नार्थ ईस्ट, दूर दक्षिण में ज्यादा जोर नहीं दिया, क्योंकि कमाई ज्यादा नहीं होनी थी. लोकल राजाओं को राज करने दिया. ये राजनीति या चक्रवर्ती राज या गौरव का मुद्दा नहीं था, ये इकॉनमिक्स थी.

कभी सोचा कि वे ट्रेन क्यों लाये ?? आम पैसेंजर की सुविधा के लिए नहीं, बल्कि माल ढोने के लिये. कहांं से कहांं – पोर्ट टू पोर्ट इसलिए मुम्बई-हावड़ा और मुम्बई- मद्रास सबसे पुरानी लाइनें हैं. भारत के अंदरूनी हिस्सों से माल पोर्ट तक लाने, या ब्रिटिश माल को पोर्ट से भारत के अंदरूनी हिस्सों को पहुंचाने को रेल आयी. बिहार के कोयले की खदान वाले क्षेत्र सबसे पहले रेल आयी, क्यों ? सोचिये. अजी, खनिज लूटने को. आज भी वो इलाके उतने ही पिछड़े हैं. वैसे ही लुट रहे हैं.

फारेस्ट की सर्विस के दौरान स्टोर की रद्दी से एक किताब उठा लाया था. लिखा था, भारत का पहला ‘इस्पेक्टर जनरल ऑफ फारेस्ट.’ कोई 1865 में नियुक्त हुआ. जर्मन बन्दा था कोई, जो घूम-घूम कर सागौन के प्लांटेशन में लगा था. क्यों ?? पर्यावरण बचाने को ??

जी नहीं, बन्दूक बनाने के लिए सागौन की लकड़ी चाहिए. दोनों वर्ल्ड वार्स में जो बंदूकें ब्रिटिश गोरे, नेटिव या गोरखा फौजियों ने यूज की, उसमें 100% भारतीय सागौन की लकड़ी होती. हमारे स्टुपिड अफसर, आज भी पीछे देखो आगे बढ़ो की बाबूगिरी में सिर्फ सागौन ही लगवाते हैं. उन्हें खुद नहीं पता क्यों.. ? घोर जंगली इलाकों में रेल का विस्तार सागौन और साल ढोने के लिए हुआ.

तो समझिए कि कश्मीर और हैदराबाद के बीच में से एक लेना हो, तो सरदार पटेल ‘कुछ थोड़ी पहाड़ियों’ के पीछे हैदराबाद को खतरे में डालने को तैयार क्यों नहीं थे ? इकॉनमिक्स. समझिए कि चीन को अफ्रीका की जमीन से क्यों मोहब्बत है ? क्यों विशाल रेलमार्ग, सड़कें, पोर्ट बनवा रहा है ? क्यों वह माले, हम्बनटोटा या ग्वादर को लीज पर ले रहा है ? अरबों फंसा रहा है. क्योंकि उसने इकॉनमिक्स को समझ लिया है. जीत भूमि के टुकड़ों पर हकदारी में नहीं, सही पोजिशन पर सही जगह को समय रहते हासिल करने में है.

इधर हम, ‘मूंछ’ के लिए कटते मरते रहे हैं. जात बाहर की लड़की से ब्याह का दम नहीं, पीओके की लड़कियों से ब्याह के ख्वाब खरीदते हैं. हम बेसिकली मूर्ख, पढ़े लिखे कबीलावासी हैं, इसलिए मुद्दा जिंदा रखने को हमारे नेता सियाचिन, सर क्रीक, करगिल, डोकलाम, अक्साई चिन के सूखे इलाके में फौजी मरवाते रहे हैं, खबरें दबवाते रहे हैं. ज्यादा मूर्ख नेता उल्टे उकसाते रहे हैं, वोट पाते रहे हैं.

किसी की हिम्मत नहीं कि आपको बता दें, कि वहां जीते भी तो मिलना जुलना कुछ नहीं. आप ‘सुई की नोक के बराबर’ भूमि न देने के लिए महाभारत को तत्पर हैं. 60 सालों से उलझे हुए हैं, ओहि में लपटाए और लुटाए पड़े हैं. हमारा तो नारा ही है- सूखी रोटी खाएंगे, पीओके को लाएंगे. खाते रहो सूखी रोटी. पीओके तबहुंं नहीं आने का. जितना आना था, तबै आ चुका.

ब्रिटिश की निगाह असल माल पर होती थी, इकॉनमिक्स पर होती थी, बस इसलिए ब्रिटिश राज में सूरज कभी डूबता न था, और हमारा..?? सूरज उगेगा, उगेगा, उगेगा .. कमल खिलेगा. जपते रहिये, सूखी रोटी खाते रहिये.

  • मनीष सिंह

Read Also –

नेपाल सीमा विवाद पर नेपाल के लोगों का नजरिया
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ही क्यों, कभी सोचा है ?
भारत की विस्तारवादी नीतियां जिम्मेदार है नेपाल-भारत सीमा विवाद में
मोदी सरकार की नाकाम विदेश नीति
आजाद भारत में कामगारों के विरुद्ध ऐसी कोई सरकार नहीं आई थी
चीन-अमरीका ट्रेड वार के बीच जोकर मोदी सरकार

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…